Golu Bhaga Ghar se - 3 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | गोलू भागा घर से - 3

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गोलू भागा घर से - 3

3

गोलू के आशीष भैया

यह बात आपको बड़ी अटपटी लगेगी, पर सही है कि गोलू के घर से भागने का एक कारण और था—उसके आशीष भैया!

सुनने में यह बात बड़ी अजीब लगेगी और गोलू तो अपने मुँह से कभी कहेगा नहीं। क्योंकि आशीष भैया तो इतने अच्छे हैं कि कभी किसी ने उन्हें कड़वा बोलते नहीं सुना। सब उनकी टोकरा भर-भरकर तारीफ करते हैं। सभी बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि आशीष सचमुच लायक है, कुछ बनकर दिखाएगा!...गोलू के सब दोस्त भी आशीष भैया की जमकर तारीफ करते हैं। पर सचमुच आशीष भैया का यह अच्छा होना ही उसके लिए मुसीबत बन गया जाएगा, यह कौन जानता था?

“देख गोलू, तेरे आशीष भैया कितना पढ़ते थे। तू तो कुछ भी नहीं है उनके आगे...!” सुजाता दीदी, मम्मी-पापा और अड़ास-पड़ोस वालों का यह डंडा उसके सिर पर जब-तब बजता ही रहता था।

“देख गोलू, तेरे आशीष भैया कितने इंटलीजेंट हैं। हाई स्कूल के पूरे बोर्ड में सातवाँ नंबर आया था उनका। और एक तू है, तू...निरा गावदू!”

“तेरे आशीष भैया तो साल भर में इंजीनियर बनकर आ जाएँगे गोलू, और तू...? सड़क पर झाड़ू देता नजर आएगा!”

ये बातें जब-जब गोलू के कानों में पड़तीं, उसे लगता, किसी ने उसके कान में गरम, उबलता तेल डाल दिया है।

पर न मम्मी ये बातें कहते हुए कभी सोचतीं, न पापा और न सुजाता दीदी। और कभी-कभी तो ये बातें आशीष भैया के सामने भी कही जाती थीं। तब आशीष भैया के चेहरे पर अपूर्व सुख-शांति छा जाती। अपनी प्रशंसा सुनकर चेहरा खुशी के मारे लाल हो जाता। गोलू के दिन में क्या बीत रही होगी, इसका उन्होंने कभी ही नहीं किया। कभी आगे बढ़कर नहीं कहा कि ऐसी बात मत कहो, इससे गोलू के दिल पर चोट पहुँचेगी!

गोलू ऐसे क्षणों में एकदम चुप्पी साधकर बैठ जाता। जैसे उसे कुछ सुनाई न दे रहा हो। तो भी ‘आशीष भैया...आशीष भैया!’ का यह जो राग था, यह हर क्षण बढ़ता हुआ, चारों ओर से भूचाल की तरह उसे लपेट लेता।

और ऐसे भी क्षणों में एक बार वह जोर से चिल्ला पड़ा था, “मम्मी, बंद करो यह राग। आशीष भैया जो हैं सो रहें। पर मुझे आशीष भैया जैसा नहीं बनना, नहीं बनना...नहीं बनना।”

सुनकर मम्मी का चेहरा फक पड़ गया था। और सुजाता दीदी चौंककर गोलू की ओर ऐसे देखने लगी थीं, मानो उसे कोई दौरा पड़ गया है।

*

जिस दिन गोलू घर से भागा था, उस दिन यों तो कोई खास घटना नहीं घटी थी। बस, पापा ने उसे एक चाँटा मारा था और गुस्से से कहा था, “देख गोलू, तेरी वजह से मेरी कितनी किरकिरी हो रही है। अब मुझे तेरे गणित के मैथ्यू सर से मिलने जाना पड़ेगा। इतना नालायक तू कहाँ से आ गया हमारे घर में? मुझे तो शर्म आ रही है। एक तेरा आशीष भैया है कि सारे टीचर उसे प्यार से याद करते हैं और एक तू है, तू...नालायक कहीं का!” उनका चेहरा हिकारत से भरा हुआ था।

हुआ यह था कि उसी दिन गोलू को छमाही इम्तिहान की रिपोर्ट मिली थी। रिपोर्ट कार्ड में गणित के उसके नंबरों पर बड़ा-सा लाल गोला लगा हुआ था। नंबर थे भी बहुत कम...सौ में से केवल इकत्तीस। मैथ्यू सर सिर्फ मैथ्स के ही टीचर नहीं थे, गोलू के तो क्लास टीचर भी थे। गुस्से में कड़कते हुए बोले थे, “कल अपने पापा को बुलाकर लाओ। नहीं तो मैं क्लास में दिन भर बेंच पर खड़ा रखूँगा!”

गोलू की हालत यह कि काटो तो खून नहीं। किसी तरह डरते-डरते घर आया। मम्मी को सारी बात बताई। रात में डरते-डरते पापा के आगे रिपोर्ट कार्ड रखा। सोचा था कि पापा कुछ कहेंगे तो उनसे ‘प्रॉमिस’ करूँगा कि आगे से गणित में ज्यादा मेहनत करके, बढ़िया नंबर लाकर दिखा दूँगा।

पापा यों तो सब समझते हैं, गोलू को प्यार भी करते हैं, पर उस दिन जाने क्या हुआ कि वे बिना कुछ सुने बरस पड़े, “ईडियट...नालायक कहीं का! एक तू है और एक तेरे आशीष भैया। उसने कितना मेरा सिर ऊँचा किया और तूने...डुबा दिया! घोर नालायक, कहाँ से आ गया तू हमारे घर में!”

पापा के चाँटे से ज्यादा पापा के इन शब्दों की मार ने गोलू को बौखला दिया। चेहरा लाल सुर्ख हो गया गोलू का।

यों तो गोलू का गुस्सा अधिक देर तक नहीं रहता था, पर आज...! जाने क्या बात थी, गोलू खुद पर काबू ही नहीं कर पा रहा था। जैसे अंदर-ही-अंदर किसी ने उसे छील दिया हो।

वह गुमसुम हो गया।

चुपचाप उठा और गणित की किताब खोलकर बैठ गया! पर किताब में आज पहली बार उसे शब्द और अक्षर नहीं दिखाई पड़ रहे थे। वे मानो कीड़े-मकोड़े और जहरीले साँपों में बदल गए थे और उसे डसने लगे थे। हर शब्द, हर अक्षर के पीछे बस एक ही आवाज सुनाई देती थी,

“गोलू...गोलू...भाग...भाग...!!”

कभी-कभी वह आवाज चेहरा बदलकर किसी दोस्त की तरह उसके कँधों पर हाथ रखकर कहती, “गोलू, ये दुनिया लिए नहीं है। तू इससे दूर चला जा। यह दुनिया तो आशीष भैया की है। सुजाता दीदी की है, मम्मी-पापा की है! अपने लिए दुनिया तुझे खुद बनानी है गोलू, इसलिए भाग...भाग...भाग!!”

लेकिन भागकर वह जाएगा कहाँ? करेगा क्या...? गोलू को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह चाहकर भी कुछ सोच नहीं पा रहा था। उसे तो बस इतना ही पता था कि उसे जल्दी-से-जल्दी घर से भाग जाना है! भागकर ऐसी दुनिया में चले जाना है, जहाँ गणित का डर न हो!

उफ, एक सींग वाले दानव ने जिस तरह कई रातों तक सपने में उसका पीछा किया, गोलू का एकाएक उसकी याद हो आई और वह बुरी तरह सिहर उठा।

उसे लग रहा था, वह एक सींग वाला जानवर तो अब भी उसके पीछे दौड़ रहा है, दौड़ रहा है...दौड़ रहा है! और उससे बचने के लिए एक ही रास्ता उसके पास है कि वह घर से भाग जाए।

पर वह भागेगा कैसे?

घर वालों को मालूम पड़ गया तो? उसकी सारी योजना बीच में लटक जाएगी। और यह कहीं अधिक शर्म और परेशानी वाली होगा।

गोलू ने तय किया कि वह किसी को कुछ नहीं बताएगा। कल ठीक समय स्कूल के लिए निकलेगा। फिर स्कूल न जाकर अपने अलग रास्ते पर चल देगा। वह रास्ता जो उसे घर से दूर, बहुत दूर ले जाएगा! और वह घर में तभी लौटेगा, जब कुछ बन जाएगा।

लेकिन बस्ता...! बस्ते का क्या करेगा गोलू? और फिर बस्ता देखकर किसी ने झट पहचान लिया तो? यह तो कोई भी कहेगा कि बेटा, कहीं तुम स्कूल से भागकर तो नहीं आए?...बस्ता होगा तो सौ मुसीबतें होंगी। इसलिए बस्ते को कहीं छोड़ा जाए!...

हाँ, यह तो ठीक है! गोलू ने मन ही मन अपने आपसे कहा।

तो?...तो फिर एक तरीका यही बच रहता है कि गोलू बस्ता लेकर घर से निकले और बस्ता स्कूल में ही छोड़ दे। इंटरवल के समय स्कूल से निकलकर बाहर आए...और फिर लौटकर अंदर न जाए।

“यों अब इस स्कूल को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा। अब यहाँ लौटकर नहीं आऊँगा। नहीं, कभी नहीं...!”

खुद से बातें करते-करते गोलू के चेहरे पर एक चमक आ गई। खुद को ही जैसे शाबाशी देता हुआ बोला, “हाँ ठीक है, यही ठीक है...बिल्कुल ठीक!”

और फिर कहानी आगे चल पड़ी। चली तो चलती ही गई और चलते-चलते वहाँ पहुँची कि जहाँ...? लेकिन ठहरो, कुछ छूट गया है। पहले उसकी बात करें।