unknown person.... in Hindi Short Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अज्ञात व्यक्ति....

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अज्ञात व्यक्ति....

ये क्या पंडित जी, फिर इतने सारे बतासे ले आए,अभी तो बहुत रखें हुए हैं, पंडिताइन निर्मला अपने पति से बोली।।
नहीं, पंडिताइन बतासे घर में कभी खत्म नहीं होने चाहिए,क्या पता कब कौन पीने का पानी मांग बैठे, वैसे भी इतनी भीषण गर्मी पड़ रही है और हमारा घर भी तो गांव में सबसे आखिरी में पड़ता,आते जाते कोई भी पानी मांग बैठता है तो खाली पानी पिलाते हुए अच्छा नहीं लगता,कम से कम जिसे पानी पिला रहे हैं उसकी आशीष तो पहुंचनी चाहिए हम तक,पंडित रामआसरे बोले।।
हमें तो आपकी बात कुछ भी पल्ले नहीं पड़ती,बस आपको अच्छा लगता है तो हमें भी अच्छा लगता हैं, निर्मला बोली।।
अरे,ये हम अभी से थोड़े ही कर रहे हैं,जब तुम नहीं आई थी इस घर में उसके और पहले से,ऐसा समझो बचपन से, हमारे दादाजी सबको पानी पिलाते थे और दोने में कुछ मीठा देते थे,हम उन्हें देखते थे तो अच्छा लगता है,उनके जाने के बाद हमने इस परम्परा को बरकरार रखा और हमारे बाद हमारे बच्चे भी बरकरार रखेंगे, पंडित जी बोले।।
समय बीतता गया, पंडित जी ने अपने इस कार्य को जारी रखा, किसी भी जाति पांति का इंसान उनसे जल मांगता तो फौरन पंडित, पंडिताइन निर्मला या बच़्चे कोई भी जल और दोने में बतासे देना ना भूलते।।
अब पंडित जी की उम्र हो चली थी, पंडिताइन भी स्वर्ग सिधार चुकी थीं,अब पंडित जी के घर पर बहु भी आ चुकी थी और बेटियां ब्याह कर अपने अपने ससुराल चलीं गईं थीं।।
पंडित जी का ज्यादातर समय अब द्वार के चबूतरे पर बीतता, क्योंकि अब वो चलने फिरने में असमर्थ हो चुके थे,बूढ़ा शरीर सैर करने में भी कठिनाई होने लगी थी इसलिए जो भी गली से गुजरता उसे टोंक कर दो चार बातें करते,पानी पिलाते और बतासे खिलाते,इस तरह उनका मन बहल जाता।।
लेकिन अब घर की चाबी बहु के हाथ में आ चुकी थी और वो बतासो के लिए कुड़ कुड़ करने लगी थी पति से कहती कि मीठे पानी का कुआं भी तो दूर है और बाबूजी के मेहमान जब देखो तब द्वार पर बिराजे रहते हैं।।
खबरदार,जो आज के बाद ऐसा कुछ कहा तो, मैं इसलिए बतासे लाता हूं कि बाबूजी घड़ी भर को खुश हो सकें,ये परम्परा उन्होंने ना जाने कब से बना रखी है और मैं उनकी ये परम्परा कभी भी तोड़ना नहीं चाहूंगा और रही पानी भरने की बात तो मैं किसी पनिहारी को लगवा देता हूं लेकिन तुम आज के बाद बाबू जी को कुछ नहीं कहोगी।।
दिन बीतते गए,उस दिन के बाद बहु ने पति से तो कुछ नहीं कहा लेकिन ये बात भूल ना सकीं।।
इसी तरह एक दिन रामआसरे जी का बेटा,दो चार दिन के लिए कहीं किसी काम से बाहर गया था,घर में केवल बहु थी और रामआसरे जी द्वार पर बैठे थे तभी एक भिखारी आया और बोला।।
मालिक! थोड़ा पानी मिलेगा।।
रामआसरे जी बोले,हां.. हां क्यो नहीं।।
उन्होंने बहु को आवाज लगाई कि एक लोटा पानी और दोने में बतासे ले आओ।।
लेकिन बहु ने अंदर से ही दो-टूक जवाब दे दिया कि__
यहां ना जाने कहां कहां से मुफ्त का पानी पीने चले आते हैं,अभी नहीं मिलेगा पानी वानी।।
उस भिखारी ने सुना और कहा__
माफ करना मालिक, लगता है गलत घर में आ गया और इतना कहकर वो बिना पानी पिए रामआसरे जी के द्वार से लौट गया।।
रामआसरे जी को इतना बड़ा आघात लगा कि वो धरती पर गिर पड़े और कभी भी ना उठ सकें,क्योंकि आज उनके द्वार से कोई बिना पानी पिए लौटा था,वें अब अपने परिवार के लिए अज्ञात व्यक्ति थे।।

समाप्त__
सरोज वर्मा.....