जहाँ खुफिया एजेंसी से सिर्फ 4-5 आतंकवादियों के सीमा पार से कश्मीर के एक गांव में छुपने की खबर मिली थी, तो श्रीनगर आर्मी बेस के ब्रिगेडियर साहब ने भी मेजर के नेतृत्व में 8 सैनिकों की टीम भेजी थी, जिसमें एक कैप्टन सहीत 7 और जवान शामिल थे, लेकिन जब टारगेट वाली जगह पर टीम पहुंची तो वहां का नजारा देखकर हर किसी के चेहरे पर टेंशन अपने आप आ गई, मेजर साहब ने हमला करने से पहले ब्रिगेडियर साहब को यहां के माहोल की सूचना दे दी और साथ ही कुछ और जवानों की टुकड़ी जल्दी से भेजने की बात बोल दी, मेजर साहब अपनी टीम को बिना खौफ खाए आगे बढ़ने को तैयार कर रहे थे, लेकिन यहां एक जवान ऐसा भी था जो सामने के हालातों से घबराएं बगैर आगे बढ़ चुका था वह कोई और नहीं कैप्टन ही थे, वह देखते ही देखते आतंकवादियों पर काल बनकर बरस पड़े, हर तरफ से आती गोली-बारूद की आवाज से और उठते धुंए से आसमां तक काला नजर आने लगा, आतंकवादियों की संख्या कोई 20-25 के आसपास थी और कुछ और के छुपे होने की आंशका भी थी, सारे आतंकवादी हथियारों से लबरेज थे, और कोई बहुत बड़े हमलें के फिराक में थे, दोनों तरफ से गोलियों की आवाज से हर तरफ खोफ था, देखते ही देखते कहीं आतंकवादी ढेर हो चुके थे और साथ ही आर्मी के भी 3 जवान शहीद हो चुके थे, और दो बुरी तरह से घायल लेकिन कैप्टन साहब जिस तरीके से आतंकवादियों को मौत के घाट उतार रहे थे उनके जज्बे को देख घायल जवानों में भी जोश आ गया था, कैप्टन साहब के कंधे और हाथ में एक-एक गोली लग चुकी थी लेकिन उन्हें देख लग रहा था जैसे इस टाइम मौत भी आ जाएं तो उसे भी वह साइड कर दें, आर्मी वालो की बाकी टीम भी पहुंच चुकी थी लेकिन तब तक सब आतंकवादी ढेर हो चुके थे, जब सब आतंकवादी मारे जा चुके थे तो उस जगह की तलाशी ली जा रही थी और घायल जवानों और जो शहीद हुए थे उनको सेना की गाड़ी से वापस ले जाया रहा था, सब कुछ चेक करने के बाद जब सब वापस जाने को हुए तो मेजर साहब ने देखा कि कैप्टन यहां नहीं है वह सब कैप्टन को ढुंढ ही रहे थे की पीछे की तरफ से तीन गोलियां चलने की आवाज आई, जैसे ही सब उस तरफ गए तो सामने से लहुलुहान कैप्टन आते दिखे, सब जल्दी से उनको संभालने गए लेकिन तब तक कैप्टन साहब नीचे गिर गए थे, उन्हें जल्दी से उठा कर आर्मी हॉस्पिटल की तरफ ले गए लेकिन बेहोश होने से पहले उन्होंने मेजर सर को एक कागज, कुछ फोन, एक लेपटॉप और एक नक्शा पकड़ा दिया था, इधर हॉस्पिटल में कैप्टन साहब जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे तो दूसरी तरफ मेजर सर ने वह सारे गेजेट्स जो कैप्टन ने उनको पकड़ाए थे वह लेकर ब्रिगेडियर साहब को दिखा दिए थे दोनों ही उसे देखकर हैरान थे, ब्रिगेडियर सोमेश प्रसाद और मेजर आगे का प्लान बना चुके थे, दोनों कैप्टन से मिलने जाते हैं क्योंकि उन्हें होश आ चुका था, जिस रूम में कैप्टन थे वह वहां जाते हैं, उनको देखते ही कैप्टन उठने की कोशिश करते हैं लेकिन ब्रिगेडियर साहब उन्हे रोक देते हैं, ब्रिगेडियर:- कैप्टन करनवीर सिंह थोड़ा रेस्ट भी कर लिया करो, मौत से तो तुम डरते नहीं हो, अब तो बेचारी मौत खुद तुमसे खौफ खाने लगी है, ,,,,,, ब्रिगेडियर और मेजर सर हंसने लगते हैं लेकिन कैप्टन बस मुस्करा देते हैं, मेजर:- यार कैप्टन आपको सच में ही मौत से डर नहीं लगता, करनवीर:- सर मौत से डर लगता तो फौज में आता ही क्यों, ब्रिगेडियर:- बात तो सही है ऐसे भी हम फौजियों को तो ऐसे भी मौत हर राह पर बाहें फैलाए खड़ी रहती है, लेकिन कैप्टन आज जो काम आपने किया वह गोली लगने के बाद शायद ही कोई और करता पर आप जितने ब्रेव हो उतने ही इंटेलिजेंट भी, आज तो तुमने आतंकवादियों के सारे मनसूबों पर पानी फेर दिया, कैप्टन बस बदले में थोडा मुस्कुरा देते हैं