सूर्य बनकर जो चमका था चौहान वंश का,
प्रचंड आंधी सा जो काल बना विदेशी लुटेरों का।
था पुत्र कपूरी देवी व सोमेश्वर चौहान का,
बन गया जो लाडला पूरे भारत महान का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरो का।
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
जंगलों में शेरों संग खेलना खेल था जिसका,
खेल में ही फाड़ा जबडा उसने एक उत्पाती शेर का।
अब बुलावा आया दिल्ली से नाना के दरबार का,
चला लाल अजमेर का बनने सम्राट दिल्ली के दरबार का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरो का,
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
वहां पहुंचकर पृथ्वी ने शासन संभाला दिल्ली का,
जहां दिखाया शौर्य वीर ने अपने तीर कमान का।
मिलन हुआ कवि चंद्र से इस तीरंदाज का,
मिले दो अभिन्न मित्र सौभाग्य बढा दरबार का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरो का ,
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
आया एक रोज संदेशा कन्नौज का ,
वहां पर रचा था स्वयंवर संयोगिता का।
नहीं बुलाया था पृथ्वी को यह अपमान था उसका,
पृथ्वी और संयोगिता ने माना दोनों को एक दूजे का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरों का
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
पहुंचे वे कन्नौज जहां पर
पृथ्वी का पुतला बना खड़ा द्वारपाल कन्नौज का,
सोचा जयचंद ने होगा उपहास पृथ्वी की औज का।
किंतु संयोगिता ने बुला पृथ्वी को वरण किया मूरत का
मूरत से हुए पृथ्वी अवतरित हुआ हरण संयोगिता का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरो का।
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
उधर गौरी प्रतिशोधी बना बैठा था पृथ्वी का,
लेना था बदला उसे पिछली सोलह हारों का।
फिर मिलाया हाथ जयचंद ने गौरी से यारी का,
सेना भेज गौर उसने परिचय दिया गद्दारी का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरों का,
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
तराइन में युद्ध हुआ गौरी और पृथ्वीराज का,
इस बार नियति ने भी साथ न दिया चौहान का।
हाय अब शेर बन गया कैदी गौर के सुल्तान का,
उसकी क्रूरता ने छीना प्रकाश पृथ्वी के नैनो का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरों का,
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
यह सुन संयोगिता ने भी गला काट लिया स्वयं का
क्योंकि उसने माना खुदको अपराधी पृथ्वी का।
उधर हुए चंद्र रवाना चुकाने कर्ज़ चौहान का,
गौर के सुल्तान को कहा पृथ्वी है धनी धनुष बाण का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरों का,
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
वहां गौर पहुंचा जयचंद बनने राजा दिल्ली का
क्योंकि उसने किया था प्रदर्शन यारी का ।
सुल्तान मिला गले उससे वार किया कटार का ,
यही होता है हश्र एक गद्दार का
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरों का ,
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
वहां पहूचकर चंद्र ने प्रदर्शन करवाया शब्दभेदी बाण का,
कवित्त सुन चंद्र का बाण चलाया पृथ्वी ने कमाल का।
पहला बाण घंटे पर और दूसरे ने किया काम तमाम सुल्तान का,
अंत किया आपस में दोनों ने कटार से रखा मान हिंदुस्तान का।
यूं तो जन्म हुआ इस धरती पर कई वीरों का,
पर जन्मा ना कोई पृथ्वी पर पृथ्वी सा।
सृष्टि तिवाड़ी