feeling buried in Hindi Women Focused by Riya Jaiswal books and stories PDF | अहसास दबे-दबे से

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अहसास दबे-दबे से


सुबह के आठ बज रहे थे। अरे! लीना, तुम अभी तक सो रही हो। उठो, याद है न! आज पार्टी में जाना है। वहां लड़के वाले तुम्हें देखने आएंगे। "लीना की मामी ने अंदर आते हुए कहा"। हां मामी, याद है। पर, मैं आपको कैसे बताऊं कि, मेरा शादी करने का अभी बिल्कुल मन नहीं है। अभी मैं कुछ करना चाहती हूं, कुछ बनना चाहती हूं। "लीना ने महत्वाकांक्षी लहजे में कहा।" अरे, मन का क्या है! उसे तो जरूरतों के आगे झुकना पड़ता है। फिर, सब आदत के मोहताज हो जाते हैं। एक बार शादी हो जाए फिर, वो सब कर लेना जो तुम करना चाहती हो। ऐसा लीना की मामी ने कहा। तब मामी को भी ये कहां पता था कि वो बच्ची को झूठी बात बता रही हैं। उन्होंने कभी ऐसी बंदिशें देखी ही नहीं थीं। वो तो शादी के बाद जब चाहे मायका चली जातीं और जब चाहे ससुराल। मामा जी ने उनकी आज़ादी पर कोई पाबंदी नहीं लगाई थी। वो अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे।
खैर, पार्टी जाना तय हुआ। लीना और लड़के वालों का एक-दूसरे से मिलना हुआ। थोड़ी दूर से ही उसने उस लड़के को भी देखा। लीना को वो पसंद न आया। हर लड़की के मन में अपने भावी पति को लेकर एक छवि या तस्वीर बनी होती है। पर, लीना ने उसे बिल्कुल अपोजिट पाया। लड़के में कोई स्टाइल नहीं थी, न चेहरे पर रौनक। शरीर से भी एकदम दुबला-पतला। घरवालों के अनुसार बस,एक ही खासियत थी कि लड़का मेहनती और कमाऊ है। शादी भी तय हो गयी। लेन-देन सब तय हो गया। इन सब से लीना बिल्कुल खुश नहीं थी। उसे न लड़का पसंद था, न वो जगह जहां उसे जीवन-भर ठहरना था। सब कुछ इतनी जल्दी-जल्दी हो रहा था कि उसे कुछ सोचने समझने का मौका ही नहीं मिला।
सारे रिश्तेदार ऐसे जुड़े थे मानो, वो कोई सामान हो और उसे दूसरी जगह शिफ्ट करनी हो।‌ बिन बाप की बच्ची थी न, मां भी एकदम गाय। पिता ने जीते जी कुछ नहीं किया, नतीजा लीना को उसकी मां ने ही जैसे-तैसे कर पाला। अब बेटी की शादी उनके वश का न था। ऐसे में सारे रिश्तेदार लीना के मां-बाप की भूमिका निभा रहे थे। तब उसने ये सोचा न था कि वो लोग सिर्फ उसकी शादी के लिए जुड़े हैं।
लीना बचपन से अपनी मां के साथ रह रही थी। पिता के जीते जी सरकारी स्कूल से पढ़ाई जारी थी जिसमें उसके पिता का कम और मां का ज्यादा योगदान था। किसी तरह उसने इंटर तक की पढ़ाई कर ली थी, थोड़ी मां के साथ रहकर और थोड़ी मौसी के यहां। उसके बाद वो अपनी मां के साथ रहने लगी और पास ही कहीं छोटी-सी नौकरी कर ली थी। उसने अपनी सैलरी से घर ख़र्च के साथ अपनी आगे की पढ़ाई भी मैनेज कर रखे थे। ग्रैजुएशन कम्पिलीट करते ही ये रिश्ता तय हो गया था।
दीदी-जीजा जी, मामा-मामी, मौसा-मौसी, चाचा-चाची सब ऐसे लगे पड़े थे उसकी शादी के लिए मानो वो कोई बहुत बड़ा बोझ हो, उन सब के ऊपर। जबकि, उसने खुद को कभी किसी पर बोझ बनने नहीं दिया और ना ही किसी ने उसे अपनी जिम्मेदारी समझी। जिसने उसके प्रति जिम्मेदारी निभाई, वो उसकी मां थी जिसे शादी वाले मामले से किनारा कर रखा था सबने। लीना की पढ़ाई में थोड़ी-बहुत मदद उसकी दीदी ने भी की थी जिसे शादी की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई। या यूं कहें कि जानबूझकर सबने पॉलिटिकल चाल चली ताकि, लेन-देन या शादी में कोई कमी रह जाए या बखेरा हो जाए तो किसी को परेशानी न झेलनी पड़ जाए और वही हुआ भी। लड़के की मां के अनुसार उसे कुछ नहीं मिला जिसकी उसने डिमांड की थी और लड़की वाले का कहना था कि शादी ब्याह में थोड़ी-बहुत कमी चलता है। लड़के की मां ने एकदम बौखलाई नजर और आवाज से पूरे माहौल को गमगीन कर दिया। लीना चुपचाप बस, मंडप पर बैठी रही। लड़के ने भी कोई आपत्ती नहीं जताई। कैसे भी कर शादी आखिर संपन्न हो ही गयी।
इस बीच लीना के मन में कई सवाल थे, पर वो किससे पूछती। किसी ने उसे इंसान समझा ही नहीं। ज्यादातर लड़कियां अपनी ही शादी में ऐसे मामलों को झेलते हुए अपने पूरे परिवार को देखती है और चुप रहती है, खासकर मां-बाप को।‌ कुछ कहना भी चाहे तो घर वाले "तुम चुप रहो", कहकर चुप करा देते हैं। कोई भी उससे राय-मशवरा नहीं करता। कोई ये नहीं सोचता कि ऐसे में वो क्या"फील" करती है। ये वो वक्त होता है जब लड़की न खुश रह पाती है और ना अपना दर्द बयां कर पाती है।
सगाई तक तो सब ठीक-ठाक रहता है। जैसे-जैसे शादी की तारीख नजदीक आती है वैसे-वैसे लड़के वालों की डिमांड बढ़ती जाती है। कभी लेन-देन को लेकर तो कभी डेकोरेशन और अरेंजमेंट को लेकर। लड़की वाले अपनी पूरी जान लगा देते हैं शादी की तैयारी में पर, लालची और घमंडी लड़के वाले तो जैसे अपनी शान समझते हैं उनकी तैयारी में नुक्स निकालना।