Teen Ghodon Ka Rath - 7 in Hindi Motivational Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | तीन घोड़ों का रथ - 7

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तीन घोड़ों का रथ - 7

एंग्री यंगमैन युग की मारधाड़, हिंसा, प्रतिशोध, धोखाधड़ी, हेराफेरी वाली फ़िल्मों के लगातार आने और सफल होने के कारण कुछ समय के लिए ऐसा लगने लगा कि फ़िल्मों से मनोरंजन तत्व ही गायब हो रहा है, मधुर संगीत गायब हो रहा है, निस्वार्थ निश्छल प्रेम गायब हो रहा है और कोमल भावनाएं फिल्मी पर्दे के साथ साथ जीवन से भी ओझल होती जा रही हैं।
इनकी जगह मुखर मुद्दे उछल रहे हैं, हिंसा भड़क रही है, प्रतिशोध धधक रहा है, लापरवाही फैल रही है और बेरुखी पनप रही है।
मनोरंजन उद्योग में मनोरंजन न रहा।
कुछ लोग इस तरह की फ़िल्मों का समर्थन करते हुए यह कहते थे कि हर जगह धुआं उठ रहा हो तो नशीले सुरीले गीत कैसे गाए जा सकते हैं? भूख, बेकारी, असुरक्षा के माहौल में रास - रंग रचाने का क्या औचित्य है? यदि जीवन से ही रंग गायब हो रहे हों तो सिनेमा के परदे पर रंगीनियत कैसे रुचेगी?
लेकिन इसके विपरीत कुछ लोग ये भी कहते थे कि हिंसा, बदला, क्रोध,दुश्मनी, मारपीट देखने के लिए कोई जेब से पैसे ख़र्च करके क्यों जाए? जब वास्तविक जीवन में ये सब तल्खियां इंसान देख ही रहा है तो सिनेमा का रुख क्यों करे? वहां तो उसे कुछ मन बहलाव का जरिया मिले, चाहे काल्पनिक ही सही।
और इस बात की हकीकत को हमारे फिल्मकारों ने समझा।
फ़िल्मों का ट्रेंड एक बार फिर से बदलने लगा। प्रेम कहानियां, अर्थवान गीत - संगीत और दिनचर्या की सौंधी मिठास एक बार फिर से फिल्मी पर्दे पर लौटे।
इसी बदलाव को चरितार्थ करने के लिए नायकों की नई खेप अाई। कुछ अच्छी, अर्थवान स्क्रिप्ट्स लिखी जाने लगीं।
सभी इंतजार करने लगे कि देखें अब रेस की अगली बग्घी आए तो उसमें कैसे लोग हों, कौन लोग हों? जाती हुई पुरानी सदी और आती हुई नई सदी में हमारी फ़िल्में कौन से मौसम का रुख करें?
और तभी जाती हुई सदी के आख़िरी दशक में आया कई नए नायकों का सैलाब। इस खेप में मिले - जुले नायक थे। कुछ स्टार पुत्र थे तो कुछ अपनी प्रतिभा तथा संघर्ष के बलबूते पर आए हुए नौजवान भी थे।
अच्छे चेहरे मोहरे, मज़बूत कद काठी और प्रशिक्षित अभिनय क्षमता का मिला जुला सरमाया लेकर शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, अक्षय कुमार, ऋतिक रोशन, अजय देवगन जैसे नायकों का पदार्पण एक के बाद एक करके हुआ। ऐसा लगने लगा कि फ़िल्म संसार को ताज़ा, दमदार, असरदार, नायकों की एक पूरी की पूरी पीढ़ी ही मिली है।
इससे पहले एक दौर तो ऐसा भी आ गया था जब फ़िल्म निर्माण से जुड़ा हर व्यक्ति अपने बच्चों को फिल्मी हीरो बनाने की दौड़ में कूद पड़ा। लेकिन इनमें से कई सितारा पुत्रों को पब्लिक ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। कई ऐसे चेहरे आए जो एक दो फिल्मों में अपनी चमक बिखेर कर तिरोहित हो गए। मजे की बात यह थी कि इन संदिग्ध उम्मीदवारों की फ़िल्मों में ख़ुद उनके ही परिवार का पैसा लगा हुआ था। लेकिन बड़े घर के ये लाड़ले अभिनय के कोर्स सीख कर, प्रशिक्षण लेकर, तैयारी कर के आए थे तो दर्शकों ने इनकी एक दो फ़िल्मों को सफ़ल भी बना दिया। किंतु इसके बाद ये अंतर्ध्यान हो गए और अन्य कार्यों में लग गए।
मोहनीश बहल, बॉबी देओल, राजीव कपूर, संजय कपूर, अक्षय खन्ना, सुमीत सहगल, अयूब खान, राज टंडन, होशांग गोविल, सुनील आनंद, कुणाल कपूर, जावेद जाफरी, कुणाल गोस्वामी जैसे कितने ही नए- पुराने चेहरों को दर्शकों ने किसी झूले की तरह आते और जाते देखा।
किंतु अंगद की तरह पांव जमा कर फ़िल्म नगरी के भव्य दरबार में कदम जमाने वाले दमदार नायकों के रूप में दर्शकों ने शाहरुख, आमिर, सलमान, अक्षय और ऋतिक रोशन को देखा।
एक बेहद प्रतिस्पर्धी युग की शुरुआत हुई। महंगी और तकनीकी भव्यता वाली बड़ी फ़िल्मों का सूत्रपात हुआ। एक एक फ़िल्म जैसे सही स्क्रिप्ट चुनकर, पूरी तैयारी के साथ देश विदेश के नयनाभिराम लोकेशंस पर फिल्मा कर, अच्छे गीत संगीत से सजा कर पेश की जाने लगी।