Teen Ghodon Ka Rath - 6 in Hindi Motivational Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | तीन घोड़ों का रथ - 6

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

Categories
Share

तीन घोड़ों का रथ - 6

सदी के नवें दशक की शुरुआत में पुराने स्थापित नायकों के साथ ही राज बब्बर, गोविंदा, कुमार गौरव, कमल हासन, सन्नी देओल, फारुख शेख, विजय अरोड़ा, संजय कपूर आदि कई नए नायक सक्रिय थे। यहां बनने वाली फ़िल्मों की तादाद भी बेतहाशा बढ़ी।
इसी दौर में अनिल कपूर, संजय दत्त और जैकी श्रॉफ का नाम चंद बड़ी सफलताओं के साथ जुड़ा।
बेहद सफ़ल फ़िल्मों वो सात दिन, रामलखन, मिस्टर इंडिया, बेटा आदि ने अनिल कपूर को उस वक़्त का मिस्टर इंडिया बना दिया। वे एक समय के लिए नंबर वन सितारों की महफ़िल में जा बैठने की कोशिश करते हुए दिखाई देने लगे। अनिल कपूर की फ़िल्म तेज़ाब से बनी छवि उन्हें युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाती रही। वो सदी के अंत में ताल जैसी कामयाब फ़िल्म में भी अपनी दमदार उपस्थिति के साथ दिखाई दिए। जैकी श्रॉफ के साथ उनकी कुछ फिल्में बहुत सफ़ल रहीं।
संजय दत्त के अभिनय में भी शुरुआत से ही एक चिंगारी दिखाई दी। लगभग उन्हीं के साथ आए उनके बहनोई कुमार गौरव जहां पहली फ़िल्म की जबरदस्त कामयाबी के बावजूद जल्दी ही अंधेरों में गुम हो गए थे वहीं रॉकी जैसी सामान्य सफ़लता के साथ आए संजय दत्त ने लगातार अपने को एक बड़ा अभिनेता सिद्ध किया। निजी जिंदगी में गलतियों के कारण झंझावातों में घिरे होते हुए भी संजय दर्शकों के दिल में अच्छी जगह बनाए ही रहे। नाम फ़िल्म से जो जिज्ञासा उन्होंने जगाई वो एक दिन देश की शिक्षा व्यवस्था को झकझोरने वाली उनकी फ़िल्म मुन्ना भाई एमबीबीएस से उनकी छवि को लेकर एक अलग मुकाम पर आ गई। एक समय ऐसा लगा कि सचमुच उनसा कोई नहीं। अग्निपथ में उन्होंने नकारात्मक भूमिका करने से भी गुरेज नहीं किया। खलनायक के सफ़ल नायक भी वही बने। उनके लिए भी इस प्रतिष्ठित क्लब का रास्ता खुला और उनकी लोकप्रियता दिनों दिन बढ़ती चली गई। निजी ज़िंदगी की कानून व्यवस्था संबंधी अड़चनों ने भी कई बार उनके निर्माताओं की जान सांसत में डाली पर उनके चाहने वालों को उनकी फ़िल्मों का इंतज़ार लगातार बना ही रहा। दर्शक इस बात से कतई विचलित नहीं हुए कि वो नायक हैं अथवा खलनायक। लेकिन कुछ लोगों ने यह भी माना कि यह आधुनिक भारतीय समाज के लिए बेहद चिंता की बात है जो दर्शक आपराधिक गतिविधियों में लिप्त अभिनेताओं को भी दिल में बैठा रहे हैं। इसे अवाम के चरित्र को भी मैला हो जाने की संज्ञा दी गई। अच्छे चरित्र निभाने वाले अभिनेता फिल्मी पर्दे पर हाशिए के लोग समझे जाने लगे।
जैकी श्रॉफ ने भी विविध भूमिकाओं से दर्शकों के बीच बड़े सितारे का सम्मान पाया। कुछ फ़िल्मों में उनकी जोड़ी दूसरे नायकों के साथ जमी और कुछ में तो वे अपने किरदारों के कंधे पर जा बैठे। देवदास, रामलखन जैसी फिल्मों में उनके रोल काफ़ी सराहे गए। जैकी श्रॉफ ने अपनी फ़िल्म हीरो से मीनाक्षी शेषाद्रि के साथ साथ अपार सफलता पाई।
इस बीच राजबब्बर की सफ़लता भी लगातार ध्यान खींचने वाली थी। निकाह, इंसाफ का तराजू, अगर तुम न होते और राज जैसी फ़िल्मों का यह नायक चिकने मीठे नायकों के बाद ज़िंदगी के कड़वे कसैले किरदारों को भी परदे पर लाया। बारीक, जीवंत अभिनय की बदौलत राज बब्बर को पसंद किया गया। वैसे भी बदलते ज़माने में लोग आदर्श हीरो की जगह व्यावहारिक हीरो को पसंद कर रहे थे। कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा की विद्रोही हिंसा से इतर राजबब्बर एक आंतरिक हिंसा के हिमायती घुन्ने कुटिल नायक को परदे पर ले आए।
ये जैसा भी था, बहरहाल एक नयापन तो इसमें था ही। स्मिता पाटिल जैसी भाव प्रवण अभिनेत्री से परदे की जोड़ी और फ़िर निजी ज़िंदगी की जोड़ी बनाना यह तो सिद्ध करता ही था कि राजबब्बर के अभिनय में कोई करेंट तो है।