Apang - 23 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 23

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अपंग - 23

23

बाबा गोद में मुन्ने को चिपकाए बैठे थे | माँ डाइनिंग टेबल पर बैठकर उसका इंतज़ार कर रही थीं |

"काकी ---" उसने बिम्मो को छोड़कर महाराजिन काकी का पल्लू पकड़ लिया था |

"कैसी हो बिटिया ?" उन्होंने भानु के सर पर हाथ फेरा |

"आपकी चाय के बिना कैसी हो सकती हूँ काकी ---?"

"तो चलो, आओ चाय पीयो ---" महाराजिन ने कहा |

"चलिए, पिलाइए --अरे ! आपने तो क्या-क्या सजा दिया काकी --इतना सारा रोज़ खिलाओगी तो फट जाऊँगी मैं ?" कहकर वह ज़ोर से हँसी और कुर्सी खिसकाकर बैठने लगी ;

"ओय ! फिरंगन ! वॉश-बेसिन क्या यहीं मँगवाएगी ?" बाबा ने उसे इशारा किया कि वह सीधे बाहर से आकर खाने बैठ गई है |

"जाती हूँ बाबा, आप भी आइए, इसे बिम्मो को दे दीजीए न, वह बच्ची की तरह मचली | बिम्मो तो कब से तैयार बैठी थी |

"मैं साबुन से हाथ धोकर आई हूँ, देखिए --" बिम्मो ने बड़े ईमानदार स्वर में बाबा से कहा और बच्चे को अपनी गोद में समेट लिया |

माँ जैसे आज ही उसे सब-कुछ खिला देना चाहती थीं ;

"देख तो सही, क्या हालत बना रखी है ! ये राज कुछ ध्यान नहीं रखते क्या तेरा ?" माँ प्लेट भरते हुए बोलीं |

"आप माँ हो, आपको तो लगेगा ही मेरी बच्ची बेचारी कितनी दुबली हो गई है | ऐसा कुछ नहीं है माँ, फिर पुनीत को आए भी तो अभी कितने दिन हुए हैं ! आप भी न माँ ! बाबा, देखिए ये माँ आज भी वैसी ही हैं जब पकड़-पकड़कर मुझे खिलाती रहती थीं | " भानु ने ठठाकर हँसने की कोशिश की लेकिन उसकी आँखें छलक आईं | कितना मिस कर रही थी वह ! कितनी अकेली पद गई थी ! ये सब बातें वह किसी के साथ साझा भी नहीं कर सकती थी |

बच्चों के लिए माँ की आँखें उसके भीतर आत्मा में होती हैं, वह बिना कुछ कहे भी मौन से ही बच्चों के भीतर उतर जाती है | नाश्ता करते ही भानु अपने लगेज की तरफ़ भागी |

"क्या हुआ भानु ?" माँ ने पूछा जिसके बदले में वह अपना बैग खोलकर बैठ गई | ढेर सारे गिफ़्ट्स निकालकर उसने बाहर पड़े हुए दीवान पर फैला दिए | एक-एक करके सबको गिफ़्ट्स देने शुरू किए उसने | इतनई सारी चीज़ें थीं कि बाबा को बौलना ही पड़ा ;

"हाँ, हमारे भारत में तो कुछ मिलता ही नहीं है ---और बाज़ार उठा लाती |" बाबा ने मुँह चढ़ाकर बोला |

" अब --मैंने कुछ थोड़े ही किया है बाबा, जिसने किया है उसे डॉंट लीजिएगा जब मिलेगा | देखो तो माँ, कैसे मुँह बना रहे हैं बाबा ---" भानु बच्चों की तरह मुँह बनाकर बोली |

"देखना माँ, कैसी है ये ? 'भानु के हाथ में चमकदार फूलों की साड़ी थी |

"ये किसके लिए ले आई भानु ?" माँ को अजीब इसलिए लगा कि उसने कभी भी भानु को ऐसे कपडे खरीदते नहीं देखा था |

"क्यों माँ, लखी नहीं है क्या ?उसे भूल जाऊँगी क्या ?"

"यहाँ कहाँ है लाखी, अपनी ससुराल में ही है ---"

"तो क्या हुआ ? मिलने जाऊँगी तो ले जाऊँगी |" भानु बड़ी ख़ुशी से बोली |

"दुखी ही होगी, वहाँ जाकर --"

"क्यों ? खुश नहीं है क्या वो ? "

"कहाँ से खुश होगी ?जब उसके बाप की उम्र वाले से लड़की को बाँध दिया तो ?" माँ दुखी थीं |

"आपने तो बताया नहीं। मुझे लगा जिस लड़के को वह पसंद करती थी, उससे उसकी शादी हुई है |" भानु भी माँ की बात सुनकर उदास हो उठी |

"क्या करती तुझे बताकर ? इतनी दूर बैठकर तू कुछ कर नहीं सकती थी बस परेशान होने के !"

"तो आफ़त क्या थी उन्हें ? " भानु ने अनमनी होकर पूछा |

"ऐसे केसेज़ में पैस ही होता है, और क्या ? बुढ्ढ़े ड्राइवर ने इनकी झोली भर दी और इन्होंने अपनी फूल सी बिटिया उसकी झोली में डाल दी, अब वो खूब पीता है और फूल सी बच्ची को रौंदता है | बच्चा नहीं हुआ तो ये दोष भी उसीका है| "

भानुमति को बहुत दुख हुआ | अच्छा ! उसके अपने जीवन में और लाखी के जीवन में क्या-क्या समानता होगी और क्या भिन्न होगा ?उसके तो बच्चा भी है फिर भी वह अकेली है और लाखी बच्चा न होने पर अकेली यानि चैन कहीं पर भी नहीं है |

उसने चारों ओर मुँह घुमाकर देखा, कहाँ है पुनीत ? उसने कुछ अधिक नहीं सोचा, यहाँ वह आश्वस्त थी, किसी के पास होगा, मस्ती ही कर रहा होगा |

"माँ -बाबा, अपने कमरे में जा रही हूँ --"

"कहाँ हैं बाबा ?" उसने देखा बाबा तो वहाँ थे ही नहीं | जब वह माँ से बातें कर रही थी वे तभी उठकर कहीं चले गए थे |

" हाँ, पापा तो कबके चले गए मुन्ना को लेकर, उसके लिए प्रैम मंगवाकर रखी है न, गैराज में रखवा दी थी | अभी मलकान से निकलवा रहे होंगे | जा तू, मुन्ने की फ़िक्र मत कर, उसके दूध का टाइम बता दे, दूध का पावडर भी मँगवा लिया था | अब यहाँ के दूध पैट ही रहना होगा न !" माँ ने एक साँस में ही बहुत सी बातें कह दीं थीं |

कहते ही हैं न, मूल से ज़्यादा ब्याज़ प्यारा होता है | उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह अपने घर में है | अपने कमरे में जाकर एक-एक चीज़ को सीने से लगाकर रोने का मन हो रहा था उसका |