Kota - 19 in Hindi Fiction Stories by महेश रौतेला books and stories PDF | कोट - १९

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

Categories
Share

कोट - १९

कोट-१९

मैं २०१७ में नैनीताल आया था। और झील के चिंताजनक कम जल स्तर को देखकर लिख बैठा था-

झील की जुबानी एक कहानी:

"प्रिय,
मैं तुम्हारी याद में सूखे जा रही हूँ।कहते हैं कभी सती माँ की आँखें यहाँ गिरी थीं।नैना देवी का मंदिर इसका साक्षी है। कभी मैं भरी पूरी रहती थी।तुम नाव में कभी अकेले कभी अपने साथियों के साथ नौकायन करते थे।नाव में बैठकर जब तुम मेरे जल को छूते थे तो मैं आनन्द में सिहर उठती थी।मछलियां मेरे सुख और आनन्द की सहभागी होती थीं।बत्तखों का झुंड सबको आकर्षित करता था। "वक्त" फिल्म का गाना" दिन हैं बहार के...। का आकर्षक फिल्मांकन" तुम्हें अब भी रोमांचित करता होगा। बहुत सी फिल्मों की मैं साक्षी हूँ।प्यार का मिलना-रूठना मेरे साथ-साथ चलता था। मेरी लहरें जीवन की मधुरता की साक्षी हैं। स्नेहिल आँखें जब आसपास की पहाड़ियों, चोटियों को देखती थीं तो उन्हें हरियाली ही हरियाली दिखती थी। अपूर्व सौन्दर्य छाया रहता था। नौका विहार मन को, प्राणों को परिपूर्ण करता था। मैंने आशापूर्ण जीवन देखा है जहाँ आशाओं का जन्म होता था,नैनादेवी के सानिध्य में।
प्रिय, अब मैं तुम्हारे कार्य कलापों से दुखी हूँ,विचलित हूँ।तुमने गर्जों,गुफाओं में बड़े-बड़े होटल और कंक्रीट की सड़कें बना दी हैं।मेरे जल भरण क्षेत्रों को नष्ट कर दिया है।गंदगी से आसपास के क्षेत्रों को मलिन कर दिया है। यही गंदगी बह कर मुझमें समा जाती है।प्रिय, यह सब दुखद है।मेरे मरने का समय नहीं हुआ है लेकिन तुम मुझे आत्महत्या को विवश कर रहे हो। मैं मर जाऊँगी तो तुम्हारी भावनाएं, प्यार अपने आप समाप्त हो जाएंगे और तुम संकट में आ जाओगे।जो प्यार मेरे कारण विविध रंगी होता है, वह विलुप्त हो जायेगा।प्रिय, मेरे बारे में सोचो।अभी मैं पहले की तरह जीवंत हो सकती हूँ, यदि भीड़ , गंदगी और अनियंत्रित निर्माण को समाप्त कर दो।तुम मेरे सूखे किनारों से भयभीत नहीं हो क्या? मैंने बहुत सुन्दर कहानियां अतीत में कही हैं और बहुत सी शेष हैं। मेरे जल को पीकर प्यार की अनेक अमर कहानियां बनी हैं। मैं जीना चाहती हूँ , यदि तुम साथ दो। मेरे प्राण तुम्हारे हाथों में है।मेरी सांसों को स्वतंत्र कर दो।मैं प्राकृतिक हूँ, मुझे कृत्रिमता से नष्ट मत करो। तुम्हारा वैभव ही मेरा वैभव है।मेरी कीर्ति में तुम्हारी कीर्ति है।
तुम्हारी
प्यारी नैनी झील।"

पर्यावरण के संदर्भ में, मैं अपनी संवेदनाओं को फिर पढ़ता हूँ। झील के किनारे बैठना-उठना,घूमना-टहलना अनुभूतियों को थपथपता है। विद्यालय का प्यार खींचता रहता है।
हम भिनभिनाते लड़के,लड़कियां विद्यालय को हमेशा जीवंत बनाये रखते थे। एक-दूसरे का प्रतीक्षारत स्नेह बना रहता था। प्रतीक्षारत स्नेह में अद्भुत सुगंध होती है।
तब एक ही कोट होता था, ठंड को हराने के लिए। उसी कोट में हम समझते थे कि हम निखर रहे हैं। और कहने को मन करता है-
"अभी-अभी मैंने
प्यार की बातों में मिठास घोली है,
पहाड़ की लम्बी पगडण्डी को
प्यार से जोड़ा है।
जिस नदी में नहाते हैं
उसमें पवित्रता का बोध मिलाया है,
दिन की प्रकृति से
पवित्र रिश्ते का योग किया है।
अभी-अभी वर्षों को
तुम्हारी याद से मीठा कर,
बहुत लम्बा किया है।
ध्यानमग्न, प्यार से आच्छादित
बातों को खड़ा किया है,
शब्दों को खोल
यात्राओं में मिठास भरा है।"
****