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लाभचंद ने क्यों सिलवाई थैली?
राजा कृष्णदेव राय जितने उदार हृदय के थे, उतने ही न्यायप्रिय भी। गरीब प्रजा को न्याय दिलाने के लिए कई बार उन्हें कठोर निर्णय लेने पड़ते थे। इसलिए प्रजा उनका जय-जयकार करती थी। अकसर राजा खुद सारे मामलों की सुनवाई करते थे, पर कभी कोई ज्यादा पेचीदा मामला आ जाता तो वे तेनालीराम की मदद लेते थे। तेनालीराम की चौकन्नी निगाहों से कोई अपराधी बच नहीं पाता था। वह न्याय करने बैठता तो दूध का दूध, पानी का पानी कर देता। इस कारण प्रजा तो उसे चाहती ही थी, दरबारियों की निगाह में भी उसका कद ऊँचा उठता जा रहा था।
एक दिन की बात, राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक अजीब सा मामला आया। गंगाराम नाम के एक आदमी ने आकर कहा, “महाराज, व्यापारी लाभचंद ने मेरे साथ ठगी की। मेरे सोने के सिक्के लेकर बदले में मुझे लोहे के नकली सिक्के पकड़ा दिए।”
राजा कृष्णदेव राय के पूछने पर उसने सारी बात बताई, “महाराज, मैंने बड़ी मुश्किल में बुढ़ापे के लिए धन जमा किया था। कुछ समय पहले मैं तीर्थ-यात्रा करने निकला, तो मैंने लाभचंद से कहा कि वह मेरे रुपयों की थैली रख ले। लौटकर मैंने थैली ली और खुशी-खुशी घर लौट आया। पर घर आकर देखा, तो उसमें लोहे के सिक्के भरे हुए थे। मैंने तुरंत वापस जाकर व्यापारी से कहा, तो उसने उलटे मुझे फटकारा। इसीलिए अब दरबार में आकर कहना पड़ रहा है।”
गंगाराम रोंआसा होकर बता रहा था। बताते हुए उसकी आँखें भी छलछला आईं।
सुनकर राजा एकदम गंभीर हो गए। उन्होंने कुछ देर सोचा, फिर तेनालीराम को सचाई का पता लगाने के लिए कहा।
तेनालीराम ने गंगाराम के हाथ से नकली सिक्कों की थैली ली। उसे गौर से उलट-पुलटकर देखा। थैली में उसे कोई जोड़ या अलग से सिलाई नजर नहीं आई। उसने गंगाराम से पूछा, “जब थैली तुम्हें मिली, तो वह किस हालत में थी? क्या उसे खोला गया था?”
इस पर गंगाराम ने कहा, “थैली तो वैसी ही थी, जैसी मैंने दी थी। पर सिक्के बदले हुए थे।”
सुनकर तेनालीराम सोच में पड़ गया। उसने सिक्के निकालकर थैली अलग की। फिर शहर के सब दर्जियों को बुलाकर सबको वैसी ही थैली सीकर लाने के लिए कहा।
अगले दिन तक सबने अपनी-अपनी थैली सीकर दी। सबमें कुछ न कुछ फर्क था, पर एक ठीक वैसी ही थी, जैसी गंगाराम की थी। उसे सिया था सुम्मा दर्जी ने। तेनालीराम ने सुम्मा दर्जी को अलग बुलाकर पूछा, “क्या तुमने पहले भी ऐसी कोई थैली सी है?”
सुम्मा बोला, “हाँ, कुछ रोज पहले व्यापारी लाभचंद के कहने पर मैंने ठीक ऐसी ही एक थैली सीकर दी थी। सेठ जी रात के समय मेरे पास वह थैली सिलवाने के लिए आए थे। उन्होंने उस थैली को सीने के मुझे दोगुने पैसे दिए थे और कहा था कि देखो सुम्मा, यह बात किसी को बताना मत!”
उसी समय तेनालीराम ने लाभचंद को बुलाया। सुम्मा दर्जी को सामने बैठाकर पूछा, “इन्होंने आपके लिए हू-ब-हू वैसी ही थैली सीकर दी थी, जैसी गंगाराम की थी। आप जरा बताइए तो, आपको वैसी ही दूसरी थैली की क्यों जरूरत पड़ गई? और आपने चोरी-चोरी, रात के अँधेरे में यह थैली क्यों सिलवाई?”
सुनकर लाभचंद के चेहरे का रंग उड़ गया। असलियत खुल चुकी थी। उसने उसी समय अपना अपराध कुबूल कर, राजा कृष्णदेव राय से क्षमा माँगी। राजा के आदेश पर उसे सोने के दोगुने सिक्के लौटाने पड़े।
न्याय पाकर गंगाराम खुश-खुश चला गया। राजा कृष्णदेव राय ने उसी समय अपने गले से सोने का हार उतारकर तेनालीराम को पहना दिया। बोले, “सचमुच तेनालीराम, तुम्हारी सूझ-बूझ का जवाब नहीं!”
विजयनगर की प्रजा के बीच भी यह किस्सा पहुँचा। लोग तेनालीराम की बड़ाई करते हुए एक-दूसरे से कह रहे थे, “सचमुच तेनालीराम विजयनगर का रत्न है!”