नीम का बलिदान अमित कुमार दवे, खड़गदा
एक समय की बात है । मोहन नाम का लड़का था, वह अत्यंत विनम्र ,सरल, मेधावी एवं अपने कार्य में लगनशील था। वह अपने दोस्तों के साथ हर आयोजन में सम्मिलित होता । खेल खेल एवं चहलकदमी में वह धीरे धीरे बडा हो रहा था।अपने गाँव के ही किसी बडे आयोजन के लिए अपनी मित्र मण्डली के साथ सामग्री जुटाने में लगा। सभी साथियों ने मिलकर बहुत कुछ कार्य संपन्न कर दिया। अब क्या होता है...? कुछ मित्र तेज धारदार कुल्हाड़ी ले कर लकडियों की व्यवस्था हेतु निकल पड़े। इसमें मोहन भी सक्रिय रूप से सम्मिलित था।
सभी साथी मिलकर लगभग 15 - 20वर्ष पुराने नीम को काटने का इरादा बनाते हैं। क्रमशः सभी साथी हाथ की आजमाइश करते हुए नीम के लगभग डेड फीट के घेरे पर लगालग वार करने लगे....अबोध,अनजान किंतु आयोजन के उन्माद में अंध वे किशोर परिणाम की पर्वाह किए बगैर तने पर वार पे वार किए जा रहे थे। वार सहता वह युवा नीम मूक ही मानो बहुत कुछ कह रहा था....बालकों यह तुम क्या कर रहे हो? अपने ही कल को हाथों से क्यूं काट रहे हो? मानो वह मौन ही मौन एक एक को झकझोर रहा हो....कह रहा है.... कि मेरा अपराध क्या है कि तुम बारी बारी से प्रहार पर प्रहार कर रहे हो.... मैं गर्मी में तुम्हें छाया देता हूँ...भूल गए! कितने ही छोटे मोटे जीवों और पक्षियों को आश्रय देता हूँ उसे भी अनदेखा कर गए..... तुम तो हमेशा कक्षाओं में पढते हो कि पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए ...। पेड-पौधे अपने अडौस पडौस में लगाने चाहिए.... सब भूल गए और प्रहार पर प्रहार करते जा रहे हो... तनिक भी मुझ पर दया नहीं आ रही ! देखो! कैसे निष्ठुर निर्दयी तुम हो गए हो । हाथों ही अपने कल को आज काट रहे हो। अनजाने में भी किया गया आत्मघाती कार्य पीढियों के लिए सीख का कारण बनता है। तुम जो कर रहे हों.. ऊसका विरोध करने का मुझ में सामर्थ्य तो बहुत है..पर मैं अपने हाथों कल का काल नहीं बन सकता। अब तुम बालकों जो भी करो ..पूरा करना मेरा जीवन अधूरा न छोडना।
सभी बच्चे अपने कार्य में व्यस्त थे... नीम आघात पे आघात से संतप्त था। इतने में कुछ बालक नवीन ऊर्जा के साथ उस स्थल पर आते हैं...नवीन जोश के साथ पूर्व कार्य को सतत् रखते हैं। अब मोहन के हाथ में था हथियार... कर रहा वह भी नीम के तने पर वार पे वार। नीम खडे रहने की हिम्मत छोड ..जहाँ बालकों को कोई नुकसान न हो ऐसी दिशा में धीरे धीरे झुकने लगा...झुकता हुआ मानो कह रहा था...मेरे इस मूक बलिदान को व्यर्थ न जाने देना बालकों...तुम्हारी असमझ का परिणाम मेरे प्राण ले गया मगर मेरे प्राण भी तुम्हें कुछ समझा दें तो मैं मेरा बलिदान सार्थक मानूँगा। यूँ कहता 20वर्षों का जीवन 80से अधिक वर्ष का जीवन छोड धराशायी हो गया।
धराशायी विशाल नीम देखकर बालक सब अन्दर ही अन्दर सहम गए... मानो नीम की मूक व्यथा और कथा सहज ही समज गए।डरे सहमें बालक सब छोड़ वहीं नीम को निकल पड़े।
अब क्या था बालकों का उद्देश्य अधूरा किन्तु नीम का जीवन पूरा हो गया था। नीम का जीवन कुछ के मन में बहुत कुछ कह गया था। सच कहता हूँ...उन बालकों में हर कोई अपने किए पर व्यथित था...एक के बदले दस नीम लगाने का संकल्पी था। मोहन तो अन्दर ही अन्दर दुःखी था। अपराध बोध में दबा था। किन्तु हराभरा जग करने में योगदान देने को सहज ही संकल्पित खड़ा था।
धन्य है वह नीम जो स्वयं कटकर समझ बालकों की हरी कर गया। हर बालक को वास्तविक जीवन का पाठ पढा गया। अपने जीवन के बदले सैकडों हजारों जीवन आबाद करने की नींव हाथों से अपने रख गया। मोहन के साथ उसके सभी मित्र नीम के वृक्ष लगाने हेतु आज भी संकल्पित हैं।
आओं मिलकर समझ बनाएँ पृथ्वी को फिर हराभरा बनाएँ।
©अमित कुमार दवे,खड़गदा