Itihaas ka wah sabse mahaan vidushak - 7 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 7

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इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 7

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जब मंत्री ने खुदवाए जादू वाले कुएँ

एक बार की बात, मौसम सुहावना था। न ज्यादा सर्दी न गरमी। सर्दियों का मौसम तो चला गया था, पर गरमी अभी तेज नहीं हुई थीं। बीच-बीच में दो-एक बार बारिश भी हो चुकी थी। आसमान में हलके ऊदिया बादल थे और मन को खुश कर देने वाली ठंडी हवा चल रही थी। राजा कृष्णदेव राय बोले, “आज को दिन कुछ अलग सा है। इसे कुछ अलग ढंग से बिताना चाहिए।”

मंत्री ने कहा, “महाराज, बढ़िया मौसम की खुशी में आज एक बढ़िया दावत हो जाए, तो सबको अच्छा लगेगा।”

सेनापति गजेंद्रपति ने कहा, “और महाराज, बढ़िया दावत के बाद बढ़िया उपहार भी मिल जाए, तो क्या कहने!”

राज पुरोहित ताताचार्य का पेटूपन जगजाहिर था। उसे लगा, “मंत्री ने बिल्कुल मेरे मन की बात कह दी है। बोला, हाँ, महाराज, दावत जरा अच्छी हो, ताकि बाद में भी उसे याद करें। हाँ, उसमें खीर और कलाकंद तो जरूर हो।”

सुनकर राजा कृष्णदेव राय को हँसी आ गई। वे कुछ कहते, इससे पहले ही तेनालीराम बोला, “महाराज, इस दिलखुश मौसम में तो जंगल हरियाली और फल-फूलों से लद जाता है। क्यों न आज राजधानी के साथ वाले जंगल में घूमने जाया जाए? यह वनविहार आपके साथ-साथ हमें भी ताजगी से भर देगा। वैसे इसी बहाने आप अपनी प्रजा की खुशहाली भी देख लेंगे। आप प्रजा के लिए इतनी योजनाएँ बनाते हैं और राज खजाने ससे इतना धन खर्च होता है, तो जरूर प्रजा की हालत भी बदली होगी।”

बात राजा कृष्णदेव राय को पसंद आ गई। उन्होंने मंत्री, सेनापति, राज पुरोहित और अपने कुछ प्रिय दरबारियों के साथ जंगल में सैर करने का कार्यक्रम बनाया।

राजा कृष्णदेव राय का आदेश मिलते ही आनन-फानन में तैयारियाँ होने लगीं। राजा के लिए विशेष रथ तैयार किया गया। बाकी सब अपने-अपने घोड़ों पर सवार थे। यह शाही काफिला महल से निकला और धूल उड़ाते हुए जंगल की ओर चल दिया। कोई दो-ढाई घंटे बाद राजा कृष्णदेव राय अपने दरबारियों के साथ राजधानी से काफी दूर घने जंगल में पहुँच गए।

साथ में खासा लाव-लश्कर था। खाने-पीने का सामान भी। दोपहर का समय था। एक बरगद के पेड़ के नीचे वे विश्राम के लिए ठहरे। अब तक सूरज खासा तपने लगा था। हवा भी गरम हो गई थी। फिर इतनी लंबी यात्रा की थकान। राजा कृष्णदेव राय को बड़े जोर की प्यास लग आई। उनके संकेत पर एक दरबारी चाँदी की सुराही में से पानी निकालकर देने लगा। पास ही सुगंधित केवड़े से भरा पात्र भी था। राजा कृष्णदेव राय जब भी पानी पीते तो उसमें सुगंधित केवड़ा जरूर डाला जाता।

राजा कृष्णदेव राय पानी पीना चाहते थे, पर एकाएक ठिठक गए। उन्हें तेनालीराम की बात याद आई कि इस वनभ्रमण के बहाने वे अपनी प्रजा की हालत भी देख लेंगे। राजा ने कहा, “यह पानी तो हम अपने महल में रोज पीते हैं। आज बाहर निकले हैं, तो हमारे राज्य की जनता जो पानी पीती है, आज हम वही पिएँगे। सामने पेड़ के पास एक कुआँ नजर आ रहा है। वहाँ से लाओ पानी।”

दरबारी गया। जल्दी से पानी लेकर आ गया। पानी कुछ गँदला था। देखकर राजा का मन कुछ खिन्न हो गया। उन्होंने पूछा, “क्या यही पानी पीते हैं यहाँ के लोग?”

तब तक पास के बिज्जन गाँव के लोग भी आ गए थे। साथ में गाँव का प्रधान रामरमैया भी था। राजा कृष्णदेव राय के पूछने पर उसने बताया, “महाराज, यह स्थान ऊँचाई पर है। थोड़े से कुएँ हैं। उनमें भी गरमियों में पानी कम हो जाता है। कुओं की सफाई न होने से गँदला पानी पीना पड़ता है। पर क्या करें महाराज, हम गरीब लोग हैं। किससे कहें, क्या कहें! हमारी तो कोई सुनवाई ही नहीं।”

राजा कृष्णदेव राय ने मंत्री से कहा, “मुझे नहीं पता था कि हमारे राज्य में गरीबों की हालत इतनी खराब है। जनता की भलाई के लिए इतनी योजनाएँ बनती हैं। शाही खजाने से इतना पैसा निकलता है, वह जाता कहाँ है?”

सुनकर मंत्री कुछ सकपकाया। राजा कृष्णदेव राय कुछ रोष के साथ बोले, “मंत्री जी, तुरंत कुओं की सफाई कराई जाए। नए कुएँ भी खुदवाइए। एक महीने में सारा काम हो जाना चाहिए।”

मंत्री ने कहा, “यह इलाका असल में जंगल के नजदीक है, इसलिए छूट गया। पर अब जल्दी ही इसका विकास होगा। लोगों की सब परेशानियाँ दूर हो जाएँगी।”

एक महीने पूरा होते ही मंत्री ने दरबार में बताया, “महाराज, सारा काम हो गया। सौ नए कुएँ खोदे गए हैं। पुराने कुओं की सफाई भी करवा दी है। अब गाँवों में पानी की समस्या खत्म हो गई है। सभी लोग खुश हैं और आपका गुणगान कर रहे हैं।”

सुनकर राजा कृष्णदेव राय के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई। मन ही मन बोले, “जरूर बिज्जन गाँव के गरीब लोगों ने मुझे दुआएँ दी होंगी। यह भी समझ लिया होगा कि मेरे शासन में गरीब और अमीर में कोई भेदभाव नहीं किया जाता।”

इसके कुछ दिनों बाद की बात है। गरमी का मौसम शुरू होते ही खासी तपिश हो गई। राजा कृष्णदेव राय राजदरबार में बैठे थे। तभी अचानक उनका ध्यान राजदरबार के बाहर चिलचिलाती धूप की ओर गया। उन्होंने कहा, “इस साल गरमी बहुत पड़ रही है। लगता है, धरती तंदूर की तरह तप रही है। अभी तो जल्दी बारिशों के भी आसार नजर नहीं आते।”

मंत्री बोला, “महाराज, गरमी तो वाकई बहुत पड़ रही है। लेकिन आपके राज्य की जनता को क्या चिंता? सबको पीने का साफ, ठंडा पानी मिल रहा है। पहली बार एक साथ इतने कुएँ खोदे गए। साथ ही पुराने कुओं की सफाई...!”

राजा कृष्णदेव राय ने खुश होकर कहा, “बहुत अच्छा! अब गाँव के लोगों को गँदला पानी नहीं पीना पड़ेगा।”

सभी दरबारी मंत्री की हाँ में हाँ मिलाने लगे। लेकिन तेनालीराम चुप बैठा था। राजा ने कहा, “क्यों तेनालीराम, कुएँ खोदने वाली बात क्या तुम्हें पसंद नहीं आई? किसी दिन तुम भी उन कुओं का पानी पीकर बताओ, मीठा है या नहीं?”

तेनालीराम बोला, “महाराज, बहुत मीठा है उन कुओं का पानी! मैंने पिया है। ऐसा मीठा पानी तो मैंने कहीं और पिया ही नहीं। सचमुच मंत्री जी ने कमाल कर दिया। अभी तक लोग जमीन में कुएँ खोदते थे। पर मंत्री जी ने तो कागज के कुएँ बनवाकर दिखा दिए। और उनमें पानी भी ऐसा कमाल का कि क्या कहें!”

“कागज के कुएँ! हमने तो कभी देखे नहीं! उनमें पानी कैसे ठहरेगा?” राजा कृष्णदेव राय ने हैरानी से कहा।

“महाराज, आप खुद चलकर देख लीजिए मंत्री जी का जादू! और सचमुच उन कुओं का पानी भी एकदम मिसरी जैसा मीठा है। लगता है, मंत्री जी ने उन कागज के कुओं में शक्कर की बोरी भी डलवाई है।” तेनालीराम मुसकराते हुए बोला।

मंत्री के आगे-पीछे घूमने वाला नया दरबारी देवकुट्टनम बोला, “महाराज, तेनालीराम सनक गया है। हमेशा उलटी-सीधी बातें ही करता है। आप इसकी बातों पर ध्यान मत दीजिए। भला कागज के कुएँ भी होते हैं...?”

पर राजा कृष्णदेव राय की उत्सुकता बहुत बढ़ गई थी। उन्होंने तुरंत तैयारी करने के लिए कहा। मंत्री, सेनापति, राज पुरोहित ताताचार्य और कुछ प्रमुख दरबारियों को साथ ले, राजा चलने के लिए तैयार हो गए। तेनालीराम भी साथ में था। तभी मंत्री घबराया हुआ राजा के पास आया। गिड़गिड़ाकर बोला, “क्षमा कर दीजिए, महाराज! भूल हो गई।”

“क्या बात है मंत्री जी? आप परेशान क्यों हैं?” राजा ने पूछा, तो मंत्री ने डरते-डरते बताया, “तेनालीराम ठीक कह रहा है महाराज। पुराने कुओं की सफाई तो हो गई। लेकिन...लेकिन अ...असल बात यह है कि नए कुएँ जितने कागज पर दिखाए गए हैं, उससे चौथाई भी नहीं बने। अधिकारी सारा पैसा हड़प गए!...क्षमा कीजिए महाराज!” कहते हुए मंत्री बुरी तरह हकलाने लगा।

सुनते ही राजा कृष्णदेव राय सारी बात समझ गए। मंत्री को फटकारते हुए कहा, “जिन अधिकारियों ने पैसा डकारा है, उन्हें फौरन बुलाकर आदेश दीजिए, जल्दी से सारा काम पूरा हो जाए। नहीं तो सबको दंड मिलेगा। तेनालीराम की निगरानी में होगा सारा काम! हमें बस उसी पर पूरा विश्वास है। आज भी अगर उसने न चेताया होता तो असलियत कभी सामने न आती।”

सुनकर शर्म और लज्जा के मारे मंत्री की गरदन झुक गई। ‘हाँ-छाप’ दरबारियों की भी बुरी हालत थी। तेनालीराम दूर खड़ा मुसकरा रहा था।