life the fairy tale in Hindi Moral Stories by Darshana books and stories PDF | जिंदगी पंछियों का कारवां

Featured Books
Categories
Share

जिंदगी पंछियों का कारवां

एक दादा दादी ही होते है जो दुनिया भर का लाड अपने पोते पोतियों पर उड़ेल देते है। उन पर जान छिडकते है। ये रिश्ता ऋतुजा और उसके दादा दादी के बीच का। जहां मां बाप के प्यार से दूर ऋतुजा अपने दादा दादी के साथ जिंदगी के हर पल को खुद में कैद कर लेना चाहती थी। चाहती थी कि कभी उन से दूर ना हो।।

वहीं उसके दादा इस सच से परहेज़ नहीं कर रहे थे कि एक दिन उनकी प्यारी ऋतु चली जाएगी उनसे दूर। जैसे एक ऋतु हमेशा नहीं रहती है। जहां वसंत आता है तो वहीं पतझड़ भी आता है ठीक वैसे ही।
इसलिए बचपन से उसे हंसते हुए कह देते थे कि जिंदगी पंछियों का कारवां है ऋतु। आज यहां है कल वहां होगी।
पर ऋतु बार बार उनकी बात टाल देती थी।

पर अब उसकी जिंदगी में आने वाला है अनदेखा मोड़
क्या ऋतु चली जाएगी अपनों को अकेला छोड़......
जो रिश्ता है अनमोल उसका क्या होगा मोल????

पढ़िए जिंदगी पंछियों का कारवां।

अब तक आपने पढ़ा:-

ऋतुजा जहां अपने जीवन भर की खुशी अपने दादा और दादी में मानती है। तो वहीं उसके दादा दादी उसके रिश्ते के बारे में सोच उसकी जिंदगी पूरा बनाने का अरमान पिरोए बैठे है! क्या ये अरमान पूरा होगा???

अब आगे:-
जल्दी जल्दी तैयारियां करो मोहन।। आज हमारी पोती का रिश्ता तय हो रहा है। कोई कमी नहीं रहनी चाहिए।। ऋतु के दादा व्यास ने गहनता से कहा।।

आप चिंता मत करो साहब। मै आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगा। आखिर ऋतु दीदी के रिश्ते की बात है। मोहन खुशी से बोला।

तेरी काबिलियत पर मुझे जरा भी शक नहीं है मोहन। पर क्या करे लड़की का सवाल है। सब ठीक ठाक निपट जाए मेरी तो बस यही तमन्ना है। व्यास जी बोले

क्यों नहीं निपटेगा बाबूजी। सब ठीक होगा। राम जी की कृपा से। मोहन बोला।

राम जी की कृपा रहे और सब सुभीते से हो जाए तो मै खुशी से भर जाऊंगा। चल अब जा। और देख मिठाई वाला आया कि नहीं.... व्यास जी बोले

ठीक है साहब... मोहन गदगद होकर बोला और वहां से चल दिया।

ऋतु के दादाजी के अरमानों से सारा घर जगमगा रहा था। अपनी पोती की शादी की शहनाईयां उन्हें अभी से सुनाई दे रही थी। साथ ही साथ जी भी भर आया था यह सोचकर कि ऋतु के जाने के बाद वो कैसे जिएंगे।

वो यही सब सोच रहे थे कि उनकी धरम पत्नी निर्मला सारी तैयारियां देखते हुए उनके सामने आ गई।

क्या सोच रहे हो जी। ऋतु के बारे में चिंता हो रही है क्या?
निर्मला बोली।

नहीं निम्मी। ऋतु के लिए तो मैंने सोना ढूंढा है।

जब लड़का सोना है। सर्वगुण संपन्न है। तो चिंता क्यों करते हो जी। निर्मला बोली।

चिंता मुझे लड़के की नहीं है। लड़का तो लाखो में एक है। पर ऋतु तो मेरे जिगर का टुकड़ा। मेरा हीरा है। उसके बिना इस घर की चमक तो फीकी पड़ जाएगी ना। इतना कहने भर में व्यास जी की आंखे नम हो गई।।।।।

आप भी ना। पहले खुद ही ऋतु को शादी के लिए मनाते हो। और अब खुद कमजोर पड़ रहे हो। ऋतु ने देख लिया तो वो खुद मना कर देगी। निर्मला बोली ही थी कि ऋतु आ गई।

मै क्या मना कर दूंगी दादी। आप क्या कह रही थी। ऋतु ने संदेह भरे मुख से देखा।

मुख चांद की तरह शीतल था पर उस पर चढ़ी त्योरियों में अनेक सवाल थे। क्या ऋतु को उसके सवाल का जवाब मिलेगा?

जाने अगले अध्याय में.......

अब तक आपने पढ़ा होगा:-

ऋतुजा की शादी पक्की करने की तैयारियां जोरो शोर पर है। पर दादा जी के अंदर अपनी पोती से जुदा होने का दर्द भी है जिसे निर्मला भाप लेती है। पर इसी बीच ऋतु उनकी आधी बात सुन लेती है जिसे सुनने के बाद उसके मन में सवाल पैदा होते है? क्या वो पूरी बात जान पाएगी देखे इस अध्याय में........!!!!!!!!


आंखो में प्यार का काजल लगाकर सिर पर बड़ो का ताज पहनकर दिल में सबके लिए मिठास रखकर चेहरे पर चांद की आभा और कदमों में साहस का आभास रखकर चलने वाली 20 बरस की ऋतु आज भले ही बड़ी हो गई है पर अपने दादा दादी के लिए तो वहीं कोमल कली है जिसे प्यार से सहेजना पड़ता है,दुलार से जिसे संवारना पड़ता है। उसके सवालों पर उसे समझाना पड़ता है। और वहीं करते है उसके दादा व्यास।

अब आगे:-

ऋतु एकटक देखते हुए:- आप जवाब क्यों नहीं दे रहे दादाजी। मै समझ गई आप मेरे रिश्ते को लेकर परेशान है ना। रहने दीजिए ना ये सब। मै भी आपके बिना नहीं रह सकती। आप मना कर दो उन्हें।

दादाजी उसके सिर पर हाथ फेरते हुए :- अरे पगली। तू भी ना। कितनी जल्दी भावुक हो जाती है तू। बड़े बुजुर्गो ने कहा है कि जिंदगी ऐसे नहीं कटती। जिंदगी अकेले नहीं जी जा सकती। जिंदगी पंछियों का कारवां है बेटी। एक परिवार की एकजुटता में ही जिंदगी है। आज तेरा पिता और मां भी होते तो तुझे पता चलता कि सच में पूरा परिवार क्या मायने रखता है।

ऋतु:- हा और इसलिए आप मुझे भेजना चाहते हो खुद से दूर। अपने घर को अधूरा करके आप खुश कैसे हो सकते हो दादाजी।

दादी:- बेटा ये तो कुदरत की लिखी है। पंछी भी अपना बसेरा एक नई जगह पर डालते है पुरानी जगह को छोड़ ना ही पड़ता है।

ऋतु :- पर दादी आप सब के अधूरेपन में मेरा पूरापन कैसे हो सकता है। मुझे तो समझ ही नहीं आता। क्या दुनियादारी में ही समझदारी है या फिर समझदारी में दुनियादारी? आप बताइए ना।

दादाजी :- बेटा तेरा सवाल तो बड़ा मुश्किल है। और शायद हर लड़की के मन में ये सवाल इस वक्त पैदा भी होता होगा। पर शायद हिचक के कारण अपने परिवार से हर बेटी ये सवाल नहीं पूछ पाती होगी। पर तुमने पूछा मुझे इसका शुक्र है। तेरी दादी भी सब जानती है। क्यों है ना निम्मी।

दादीजी:- जी। आप सही कह रहे हो।ऋतु बेटा देख एक औरत ही है जो घर और बाहर दोनों की बागडोर संभाल सकती है। इसलिए भगवान ने उसके कंधे इतना बड़ा जिम्मा सौंपा है। समझदारी और दुनियादारी दोनों को निभाना औरत जानती है। जब घर को वो एक करती है एक नए घर में रहती है अपने असली घर का त्याग कर देती है तो वो उसकी समझदारी ही होती है।

और जब बाहर की दुनिया में रहकर अपने संस्कारों को गहनों की तरह खुद पहनकर वो समाज में चलती है तो वो दुनियारी में ही अव्वल बनती है। इसलिए तो उसके मान को समझना जरूरी है। अब तू बता क्या हम अपने मान के लिए दुनिया में तेरा मान घटा दे?? तेरा और मेरा रिश्ता पंछी और घोसले की तरह ही है। तेरे होने से ये घोसला गूंजता था पर तेरे जाने पर तेरी खुशियों में ही इस घोंसले का असली वसंत आएगा। बेटी तेरे सम्मान में ही हमारा मान है। हमारा आशीर्वाद है। समझी।

ऋतु नम आंखो से:- हां दादी मै समझ गई। पर आप मुझे हमेशा अपनी इन प्यारी बातो से कैसे मना लेती हो दादी। और दादा जी आप भी कुछ काम नहीं। आप भी मुझे बहुत सेंटी कर देते हो। क्यों आप दोनों ऐसे हो। .....

दादा दादी ऋतु को गले लगाते हुए:- क्योंकि तू हमारी नन्ही परी है ऋतु। हम तेरी जिंदगी खुशियों से भर देना चाहते है........

इतना कहने भर की देर थी कि मोहन अचानक खुशी से झुमकर बोला:- साहब लड़के वाले आ गए है। मैंने सारी तैयारी कर ली है। आप जाकर उनका स्वागत करो।

ऋतु के मन के सवाल तो खतम हो गए है
पर जीवन में फिर कुछ बाकी है......
कहानी यहीं पर खत्म हुई पर असर तो उसका बाकी है...................

उलझते हुए पड़ाव की यह कहानी
देखिए मन से जल्दी समझ आएगी...........।