indian railway - Number one in world in Hindi Comedy stories by Arun Singla books and stories PDF | भारतीय रेल: सुविधा में दुनिया नंबर एक

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भारतीय रेल: सुविधा में दुनिया नंबर एक

हेरान ना हों, कि हमारी भारतीय रेल और सुविधा देने में विश्व में नंबर एक, हो ही नहीं सकता. बिलकुल हो सकता है, बल्की हुआ है, यकीन नहीं होत्ता तो मेरी आपबीती सुने.

हुआ यह था की हमे अपनी धरमपतनी के बहिन की लडकी की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली से सूरत जाना था. दिल्ली में श्रीमती जी के भाई भी रहते है, और बहनें भी आस पास के शहरों में रहती है. तो सोचा गया क्यों ने इसे पिकनिक व् आउटिंग का स्वरूप दे दिया जाए, और सभी एक साथ दिल्ली से सूरत जाएं.

अब क्योंकि एक साथ जाना था, तो सबकी सहमती भी जरुरी थी. इसलिए  मामला सभी रिश्तेदारों की पंचायत में पेश किया गया, कि क्यों ना सभी एक ही दिन, एक साथ चलें. और केसे जाए, किस दिन जाए, इस के लिए कोन बनेगा करोडपति की तरह ऑडियंस पोल करवाया गया, हाँ ना हाँ ना, होते हुए सभी ट्रेन के सफर पर सहमत हो गए, पर इस कशमकश में, तब तक शादी की तारीख बहुत नजदीक आ गई थी, दिल्ली में टिकेट का कोटा ज्यादा होने के कारण दिल्ली से सूरत की टिकेट तो बुक हो गई, पर सुरत से वापसी की टिकेट उपलब्ध नही थी.

क्यां करें, समय भी कम बचा था, तो इस की जिम्मेदारी हमारे साले साहिब ने ली, की चिंता ना करें मेरे सोर्से है, सब इंतजाम हो जाएगा. सब ने राहत की सांस ली. तय समय पर सभी शादी में चले गए व् यात्रा और शादी का पुरा आनंद लिया.

किस्सा यहाँ से शुरू होता है, वापसी में मेने साले साहिब से पूछा – “इंतजाम हो गया, टिकेट कन्फर्म है या वेटिंग में है”. मुझे वेटिंग के नाम से डर लगता है, की टिकेट के पुरे पेसे दे कर जब सफ़र करते है तो कन्फर्म सीट वाले यात्री वेटिंग वाले यात्रियों को दुसरे दर्जे के यात्री समझते है, और ऐसी नजर से देखते है, कि ये कोच में दाखिल केसे हो गए. मेरे जिद करने पर साले सहाब ने वही पुराना जवाब दिया “चिंता ना करे,”

मुझे दाल में कुछ गड़बड़ लगी, तो मेने कहा आखिर टिकेट आरक्षण की ताजा स्थिति क्या है, ज्यादा जोर देने पर उसने बताया की टिकेट तो बुक ही नहीं हुई पर ….“चिंता ना करे,”.

“केसे ना करें”, हमारे ग्रुप में पुरुष, महिलाए, छोटे बच्चे सभी शामिल थे. बिना रिजर्वेशन कराए यात्रा की कल्पना भी मुशकिल थी, पर रिजर्वेशन छोड़ो यहाँ तो टिकेट ही नहीं थी. और ये साहिब बोल रहें है….“चिंता ना करे,”.

रेल यात्रा के बिना रिजर्वेशन यात्रा के पुराने कटु अनुभव फिर से सर उठा कर खड़े हो गए. में इस के लिए राजी ना हुआ, काफी बहस के बाद एक तो साले साहिब का भारतीय रेल व्यवस्था पर चट्टान सा विश्वास देख कर, व् दुसरा “जोरू का भाई एक तरफ” वाली बात सोच कर ठन्डे मन से मेने सहमती दे दी.

तय दिन पर सभी टैक्सी के द्वारा रेलवे स्टेशन पर पहुंच गए. ट्रेन भी आ गई, और हमारे पास कोई टिकेट नही थी, अब मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी. सारा समान ट्रेन में चड़ा कर, हुम सभी दरवाजे के पास खड़े हो गए. सभी परेशान थे कि – क्या होगा, और मेरे साले साहिब ने तुरंत कोच के टी.ई को खोज कर उनसे गुफ्तगू शुर कर दी, और लगभग दो मिनट में ही “में ना कहता था” वाली मुस्कान चेहरे पर लिए वापिस आए, व् परिणाम की घोषणा की सब इंतजाम हो गया.

व्यवस्था साले साहिब और टी.ई दोनों के बीच क्या बनी ये तो मालुम नही हुआ, पर उसके बाद जो हुआ उस से तो मेरा टिकेट रिज़र्व करवाने तो क्या टिकेट लेने पर से ही विश्वास उठ गया. हम सब को ना केवल सीट मिली बल्कि सूरत से दिल्ली तक टी.ई खीस निपोरता हुआ हमारे आगे पीछे रहा, और इतनी सेवा की वो भी मुझे अपने साले जेसे ही लगने लगा.

और आप भारतीय रेल से क्या सुविधा चाहते है, जिस ने नियमों को ताक पर रख कर भी, भारतीय करेंसी को पुरी इज्जत देते हुए, हमें सपरिवार किसी को कोई कष्ट नहीं होने दिया और मंजिल तक पहुंचा दिया. और आप क्या चाहते है, आप भी मेरी तरह मान ही ले:  भारतीय रेल – सुविधा मेंदुनिया में नंबर एक .