किशोर अवस्था
सुबह 9 बजे हम अपनी कार से श्रीनगर के लिए निकल लिए थे. रशिम की खुशी का ठिकाना ही नहीं था, वो रात भर सो भी ना सकी थी, वह सपनो में भी काश्मीर की सैर कर रही थी. देर सुबह उठने की आदि रश्मी, सुबह जल्दी ही उठ कर बैठ गई थी, उसका बस चलता तो वो उड़ कर काश्मीर पहुँच जाती. नाश्ते के बाद सभी काश्मीर के लिए निकल लिए थे. रास्ते का आनंद लेने के लिए जिद कर के रशिम अगली सीट पैर बेठ गई.
किशोर अवस्था में जान से प्यारे खिलोने कब कबाड़ में चले जाते हैं, पता ही नहीं चलता. कली अनजाने में खिल चुकी होती है, पाँव जमीन पर नही पड़ते, अपने वजूद से बेखबर हर समय नशे का एहसास होता है, अपने पे गरूर होने लगता है, और उसे लगता है की वह गलती से राजघराने की जगह इस घर में पैदा हो गई, वरना डिज़र्व तो वो राजघराना ही करती थी.
किशोर अवस्था एक मानसिक अवस्था होती है, यह गुलाबी गाल, लाल होंठ और कोमल घुटनों की बात नहीं है, यह कल्पना में उड़ने, भावनाओं में बहने, और एहसास में गहरे झरनों की ताजगी की अवस्था होती है। तेजी से युवा होने की इच्छा तीर्व होती है.
किशोर अवस्था में यदि आप कुछ चीजों के बारे में निश्चित नहीं हैं, तो अपने उन दोस्तों से बात करें, जिन पर आपको भरोसा है, या अपने परिवार पर जो वास्तव में आपके अच्छे दोस्त होते हैं, जो वास्तव में आपकी परवाह करते हैं, उनकी सलाह लें। पर यह भी सच है, की किशोर को जीवन के तथ्य बताना मछली को नहलाने के समान है.
रशिम एक 13 वर्ष के सुंदर नव किशोरी थी, और खुले हाथ पैर वाली थी, बचपना अभी ख़तम ही हुआ हुआ था, पर शरीर इस से अनजान अगले पडाव पर जाना चाहता था, किशोर अवस्था जीवन का सुनेहरा दोर होता है, कोई बन्धन नही होता, किशोर मन सातवें आसमान में उड़ता है, वे सोचते हैं, दुनिया की हर वस्तु उनकी पहुँच में है, और वे उसे पा सकते हैं, हर अनुभव, नया अनुभव होता है, मन के साथ भी और तन के साथ भी. शरीर में भी परिवर्तन शुरू हो जाता है, जवानी का बीज बोया जा चुका होता है, परमात्मा की सबसे हसीन कारीगरी का अनावरण शुरू हो गया होता है. दोस्त परिवार से ज्यादा अचानक महतवपूर्ण हो जाते हैं. सपनों का, कल्पना का, ताजगी का दोर होता है।
रशिम ने टॉप व् शोर्ट पहना हुआ था. कार की पीछे वाली सीट पर उसकी दीदी वर्षा, उस के पिता रोहित व् मम्मी करुणा बेठी हुई थी. कार ड्राइवर सुरेश चला रहा था, सुरेस की उमर 28 वेर्ष के लगभग थी, सुरेस के पिताजी भी पिछले 30 वर्ष से करुना के परिवार में ड्राईवर थे, और उन्हें बिलकुल घर के सदस्य जेसा सम्मान प्राप्त था, और जब दुसरे ड्राइवर की जरुरत पडी तो उनके कहने पर सुरेश के यह नोकरी मिल गई थी, और कुछ ही महीनो में सुरेश ने सब का दिल जीत लिया था, परिवार वाले कहते थे जेसा पिता वेसा पुत्र.
रशिम के उम्र में सब कुछ जानने की इच्छा बहुत ही प्रबल होती है. शहर से बाहर निकलते ही गाडी ने रफ़्तार पकड़ ली थी, रोहित व् करुना अपनी बातों में व्यस्त हो गये थे. वर्षा किसी सोच में खो गई थी, और उसकी नजर सामने बाहर के दृश्य देख रही थी. रशिम रास्ते में आने वाली हर आकर्षक व विशाल बिल्डिंग हो या रास्ता हो, के बारे में सुरेश से सवाल कर रही थी, और वह भी उसकी हर बात का जवाब खुशी से दे रहा था.
अनजाने में ही सामने देखने से बोर होते हुए, वर्षा दोनो की तरफ देखने लगी, और उसे कुछ अटपटा सा महसूस हुआ, उसने देखा सुरेश बार बार रशिम को किसी दृश्य को दिखाने के लिए, या इशारा करने के बहाने, रशिम के कोमला घुटनों को छु रहा था, पहले तो वर्षा ने सोचा वह रशिम का ध्यान दिलाने के लिए उसे छु रहा है, पर जब ये हरकत बार बार होने लगी व् सुरेश का हाथ रशिम के कोमल घुटनों के उपरी भाग को छूने लगा तो, वषा असहज हो गई.
"ठीक से बेठो रश्मी " वर्षा ने अचानक तीव्रस्वर में कहा
" क्या हुआ " रश्मी ने पूछा"
" कुछ नही हुआ, इतनी बड़ी हो गई है, अकल दो पेसे की नही". उधर रश्मी हेरानी से दीदी की तरफ देख रही थी,
" पर मेने किया क्या हे ?"
" कुछ नही " वर्षा ने बेबसी से कहा, और अपनी मम्मी की तरफ गुस्से से देखते हुए कहा
" मम्मी तुम्हे भी कुछ नही दिखता, अब ये बड़ी हो गई है, कुछ तो ख्याल रखा करो, हरदम फ़ोन पर लगी रहती हो"
करुणा पलक झपकते ही सब कुछ समझ गई, उसने कहा
" बेटा बहुत देर हो गई, अब मुझे आगे आने दो, पीछे बेठे-बेठे बोर हो गई हूँ"
सुरेश के चेहरे पर अचानक हवाइया उड़ने लगी, वह सारा माजरा तुरंत समझ गया, आखिर यह उसके साथ पहली बार नही हुआ था.
" हाँ, मेडम आप आगे आ जाएँ, बच्ची के साथ मुझे भी गाडी चलाने में दिक्कत हो रही हे" उसने खिस्स्याते हुए कहा .