Rest of Life (Stories Part 9) in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | शेष जीवन (कहानियां पार्ट 9)

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शेष जीवन (कहानियां पार्ट 9)

3--एक औरत का फैसला
"यह बच्चा किसका है?"राकेश की नज़र कमरे में घुसते ही पलँग पर लेटे बच्चे पर गयी थी।
"मेरा",निशा बोली।
"क्यो मजाक कर रही हो,"राकेश ने बच्चे की तरफ देखते हुए निशा से फिर पूछा था,"निशा,प्लीज बताओ यह प्यारा सा बच्चा किसका है?"
"अभी बताया तो मनु मेरा बेटा है।'
"क्यो झूठ बोल रही हो।मनु तुम्हारा बेटा कैसे हो सकता है।"राकेश अविशनिय नज़रो से निशा की तरफ देखते हुए बोला।
"मनु मेरा बेटा क्यो नही हो सकता?"राकेश के प्रश्न का जवाब निशा ने प्रश्न से दिया था।
"निशा यह बच्चा करीब छः महीने का लग रहा है।मैं पूरे तीन साल बाद विदेश से आया हूँ।फिर यह बच्चा तुम्हारा कैसे हो सकता है?"
"तुम तीन साल बाद आये हो तो क्या हुआ?"
"निशा मैं तीन साल बाद आया हूँ।हमारा मिलन तीन साल से हुआ ही नही फिर यह बच्चा तुम्हारा कैसे हो गया?'
"राकेश,मनु मेरा ही बेटा है।मैने पूरे नौ महीने इसे पेट मे रखने के बाद जन्म दिया है।इस बच्चे की माँ मैं हूं लेकिन इसके पिता तुम नही हो।'
"यह तुम क्या कह रही हो"/
"जो सच है वो ही तुम्हे बता रही हूँ।"और निशा के अतीत के पन्ने फड़फड़ाकर खुलने लगे।
निशा की शादी दस साल पहले राकेश से हुई थी।राकेश दिल्ली में एक कम्पनी में सॉफ्ट वेयर इंजीनियर था।शादी के बाद एक साल कब गुज़र गया।उसे पता ही नही चला था।ऑस्ट्रेलिया की एक कम्पनी में जगह निकली।राकेश ने अप्लाई किया और उसे सलेक्ट कर लिया गया था।यह जॉब दो साल के लिए थी।अपॉइंटमेंट की सूचना मिलने पर वह पत्नी से बोला,'कम्पनी वाले यहां से काफी ज्यादा पैसे दे रहे है।दो साल की ही बात है।अगर तुम कहो तो चला जाता हूँ।"
निशा को भी प्रस्ताव अच्छा लगा। और उसने पति को जाने की स्वीकृति दे दी।राकेश ऑस्ट्रलिया चला गया।पति के जाने के बाद निशा दिल्ली में अकेली रह गयी थी।राकेश उसे हर महीने पैसे भेजा करता था।वह हर छः महीने बाद दिल्ली आता और एक सप्ताह उसके साथ रहकर वापस चला जाता।दो साल गुजर गए ।दो साल बाद राकेश दिल्ली आया तब निशा ने उससे पूछा था,"अब तो तुम्हारा कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो गया।अब तो तुम्हे वापस नही जाना?"
"निशा डार्लिंग।कम्पनी ने मेरे काम से खुश होकर मेरा कॉन्ट्रेक्ट दो साल के लिए और बढ़ा दिया है।कुछ साल में खूब पैसा कमा लूंगा।फिर पूरी जिंदगी आराम से गुज़रेगी।"
और राकेश कुछ दिन तक पत्नी के साथ रहकर वापस ऑस्ट्रलिया चला गया था।पहले राकेश हर छः महीने में भारत आता था ।लेकिन अब धीरे धीरे उसके आने का अंतराल बढ़ने लगा।अब वह आठ नौ महीने बाद आने लगा।निशा उस से देर से आने का कारण पूछती तो राकेश कोई न कोई बहाना बना देता।
पिछली बार राकेश एक साल तक नही आया।दो साल भी पूरे हो चुके थे।न उसका फोन आया।न ही उसकी कोई चिट्टी आयी।निशा ने पत्र भी डाला।उसका भी जवाब नही आया तब निशा चिंतित हो उठी।क्या बात है?अनहोनी की आशंका से वह कांप उठी।उसने भागदौड़ करके अपना पासपोर्ट बनवाया।फिर वीजा निकलवाया।और फिर एक दिन वह पति की खेरखबर लेने के लिए आस्ट्रेलिया जा पहुंची।
निशा के पास राकेश का कोई अता पता तो था ही नही।पर वह जैसे तैसे पता लगाकर राकेश के कमरे पर जा पहुंची।