wedding cake in Hindi Comedy stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | शादी का लड्डू

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शादी का लड्डू

"सभी लड़कियां एक जैसी नहीं होती हैं। कब तक तू अकेला मम्मी पापा की देखभाल करेगा! तुझे जरूरत हो ना हो लेकिन उन्हें एक बहू की जरूरत है। तू तो सुबह नौकरी पर निकलता है और रात को ही घर में घुसता है । पता है ना दोनों कितना बीमार रहते हैं। तेरे आफिस जाने के बाद भी तो कोई संभालने वाला होना चाहिए और सबसे बड़ी बात, बहू के आने से घर में रौनक और चहल-पहल हो जाएगी। मां पिताजी का मन लगा रहेगा। और मेरे भाई, तेरा भी! हां कर दे। एक बार शादी का लड्डू चख कर तो देख। तुझे मजा ना आ जाए तो फिर कहना!"
" दीदी, आप भी ना!!" कह राजीव शरमा दिया।
फिर थोड़ा गंभीर होते हुए हुए बोला "दीदी, बड़े भाई की शादी के समय भी तो हमने यही सोचा था लेकिन भाभी ने क्या सलूक किया हम सबके साथ। मम्मी पापा की कभी कदर ना की उन्होंने। वैसे उसे क्या दोष दें! भइया भी तो शादी के बाद कितना बदल गए थे। हम सब लोगों के लिए एक घर में रहकर बेगाने हो गए थे। शादी अगर अपनों से दूर ले जाती है तो मुझे नहीं करनी शादी। मुझे नहीं चखना शादी का ऐसा लड्डू!"

"बुद्धू है तू!! अरे मैंने कहा ना सभी लड़कियां एक जैसी नहीं होती और सबके संस्कार भी एक जैसे नहीं होते। देख मेरी नजर में है एक लड़की। मेरी देखी भाली। साधारण घर से है लेकिन संस्कारी है। बहुत ही हंसमुख मिलनसार। हमेशा हंसती मुस्कुराती रहती है। काम करने में भी चुस्त! क्या कहते हैं उसे बिल्कुल खिलौना सी! चंचल नाम है उसका। उसके स्वभाव ने तो मेरा दिल जीत लिया है और मैं तो उसे तेरी दुल्हन के रूप में देखने लगी हूं। एक बार मिलने में क्या हर्ज है!"
"हां हां बेटा। मंजरी सही तो कह रही है। हमारे लिए तू कब तक अकेला रहेगा। हम आज हैं कल नहीं। हर मां-बाप की तरह हमारा भी सपना है कि अपने जीते-जी तेरा घर बसा देखें। हां कर दे बेटा।"
अपनी मां और बहन की जिद देख राजीव ने चंचल से मिलने के लिए हां कर दी।
और जैसा उसकी बहन ने बताया था चंचल अपने नाम के अनुसार बिल्कुल चंचल थी। पहली मुलाकात में जैसे लड़कियां शर्माती लजाती हैं। ऐसा कुछ नहीं था। वह तो खूब चटपट बातें कर रही थी और खूब खुलकर हंस भी रही थी। राजीव को बड़ा अजीब लगा जैसा उसने अपने दोस्तों से पहली मुलाकात के बारे में सुना था। उसकी यह मुलाकात तो बिल्कुल ही उनसे अलग थी।
हां उसके मम्मी पापा को चंचल पहली नजर में ही भा गई और उसका यह हंसमुख स्वभाव उन्हें बहुत पसंद आया।
लेकिन राजीव असमंजस में था!
दीदी, वैसे तो मुझे चंचल पसंद है लेकिन स्वभाव से तेजतर्रार लगी। देखो ना हर बात का कैसे झटपट जवाब दे रही थी। वरना लड़कियां तो!!"

"अरे! जरूरी है कि सभी लड़कियां शर्मीली हों। भैया यह उसका स्वभाव है। सबसे बड़ी बात बनावटीपन बिल्कुल नहीं उसमें। वरना अक्सर देखने दिखाने के समय कितना बनावटीपन चलता है। यह तो सबको पता है और बाद में असलियत खुलती है। मैंने कहा था ना यह लोग बहुत ही साधारण और सरल हैं।
राजीव को भी कहीं ना कहीं अपनी बहन की बात सही लगी और उसने शादी के लिए रजामंदी दे दी।
2 महीने बाद शादी का मुहूर्त निकला।
उधर चंचल के मम्मी पापा को राजीव की बातों व हाव भाव से अंदाजा हो गया था कि उसे चंचल का इतना बोलना अच्छा नहीं लगा।
इन 2 महीनों में कोई दिन ऐसा नहीं गया। जब उन्होंने उसे समझाया ना हो कि "बेटा ससुराल में इतना बोलना और खुलकर हंसना अच्छा नहीं समझा जाता तो तू थोड़ा सोच समझकर बोलना व बात बेबात हंसना थोड़ा कम कर ।"
"ये क्या बात हुई भला! एक तरफ तो आप कहते हो कि अब वही मेरा घर होगा और सास-ससुर मेरे माता पिता, तो फिर वहां बंदिशें क्यों!!" चंचल की यह बात उन्हें निरुत्तर कर देती है।
"अच्छा ठीक है लेकिन शादी के दिन तो कम से कम तू अपनी चोंच बंद रख सकती है। इतना कहा तो मान ले।" उसकी मम्मी हर बार उसकी मनुहार करते हुए उसे समझाती हैं।
" ठीक है मम्मी कोशिश करूंगी।"
लेकिन जैसा जिसका व्यवहार होता है वह शायद ही कभी बदले तो बेचारी चंचल इन 2 महीनों में कैसे अपने आपको बदल सकती थी।
शादी के दिन जयमाला के समय लाल लहंगे में दुल्हन के रूप में सजी चंचल को देख राजीव की नजर उससे हट ही नहीं रही थी। और चंचल की तो कुछ दूरी पर एक मोटे से आदमी को गपागप रसगुल्ले खाते देख हंसी नहीं रुक रही थी। उसने किसी तरह अपने आप को कंट्रोल कर जयमाला की रस्म पूरी की।

लेकिन यह क्या! फेरों के समय वही मोटा सा बड़ी बड़ी मूछोंवाला आदमी उसके सामने आकर बैठ गया। फेरे देर रात शुरू हुए थे इसलिए वहां बैठे 2-4 घराती बारातियों को छोड़कर बाकी सभी ऊंघ रहे थे। जैसे-जैसे पंडित जी ने मंत्रोच्चारण शुरू किए वैसे वैसे उस मोटे आदमी ने बैठे-बैठे खर्राटे भरने शुरू कर दिए। नींद की वजह से कभी उसका सिर एक तरफ लुढ़कता कभी दूसरी तरफ।
चंचल ने अपने आप को बहुत रोकना चाहा लेकिन उसकी हंसी रोके नहीं रुक रही थी। उसने सबकी नजरों से बचने के लिए अपनी गर्दन नीचे कर ली। लेकिन सबकी नजरों से उसकी हंसी छुप ना सकी। एक तरफ राजीव उसे अजीब नजरों से देख रहा था। दूसरी तरफ उसकी मम्मी आंखें निकाल रही थीं।
उसने किसी तरह अपने आपको कंट्रोल करते हुए उस आदमी की तरफ इशारा कर दिया।
उस आदमी को नींद में लुढ़कते व खराटे मारते देख। सभी माजरा समझ गए और चंचल के साथ-साथ सारा पंडाल हंसी ठहाकों से भर गया । चंचल का बचपना देख राजीव भी अपनी हंसी ना रोक पाया।
शादी के बारे में राजीव की सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुई। चंचल तो आते ही परिवार में ऐसे घुलमिल गई थी जैसे वह कभी पराई थी ही नहीं। अपने बीमार सास ससुर की खूब सेवा करती और अपने हंसमुख स्वभाव से उनका दिल लगाए रखती।
उसके साथ ससुर तो हमेशा उसे आशीष देते हुए यही कहते "बहू, सही कहती थी मंजरी तू तो जिससे एक बार मिल ले, उसे अपना बना लेती है। तेरा यह हंसमुख व बातूनी स्वभाव ही हम दोनों की दवाई है। तेरे आने से हमारे जीवन के कुछ साल और बढ़ गए।"

राजीव व चंचल की शादी की पहली सालगिरह थी। इस मौके पर मंजरी भी आई हुई थी। वह राजीव को छेड़ते हुए बोली " अब तो तेरी शादी को 1 साल हो गया। बता कैसा लगा तुझे ये शादी रूपी लड्डू !"
" दीदी, शादी का लड्डू है तो बहुत मीठा है। इस लड्डू ने तो मेरे साथ साथ मेरे परिवार वालों के जीवन में भी मिठास घोल दी।
लेकिन आपका यह चुलबुला खिलौना चटर-पटर बहुत करता है तो जरा अपने खिलौने से कहो ऑल इंडिया रेडियो भी कुछ समय के लिए विश्राम करता है। तो !!!" राजीव शरारत से चंचल की ओर देखते हुए बोला।
" अच्छा!! मैं बहुत चटर पटर करती हूं। ठीक है तो आज से मैं मौन व्रत रखूंगी। समझे राजीव बाबू!!"
" ना ना बहू! इस नालायक के साथ ही रखना अपना मौन व्रत। हमारे लिए तो तेरी यह खट्टी मीठी बातें दवाई समान है।" चंचल के सास ससुर उसके सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए बोले।
"अरे अरे!! मैं तो मजाक कर रहा था। तुम्हारी हंसी ठहाकों और बातों से ही तो हमारा जीवन गुलजार है श्रीमती जी!!" राजीव कान पकड़ बच्चों की तरह बोला।
उसके इस बचपने को देख सभी जोर से हंस पड़े।
सरोज ✍️