Atit ke panne - 16 in Hindi Fiction Stories by RACHNA ROY books and stories PDF | अतीत के पन्ने - भाग 16

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अतीत के पन्ने - भाग 16

पिया भी शायद आलेख पर भरोसा करने लगी थी । जतिन ने कहा बेटा कैसा रहा आज।
पिया ने कहा हां बहुत ही अच्छा।
पेपर आने वाले हैं।
जतिन ने कहा अच्छा आलेख कैसा है वो पढ़ रहा है।
पिया ने कहा हां पापा वो बहुत ही होशियार है।
आगे जायेगा बहुत।
जतिन ने कहा हां बेटा वो काव्या का सपना था और उसने जो कुछ किया है ना उसका कोई मोल नहीं है।।
पिया ने कहा हां पापा मैंने देखा है आलेख को छोटी मां के लिए रोते हुए।
उधर शनिवार को आलोक आ गया और साथ में बहुत कुछ लेकर आया।
आलेख ने कहा अरे पापा कितना कुछ लाएं आप।
आलोक ने कहा हां बेटा तुम्हे आम पसंद है ना तो आम का अचार, मिठाई और आम रस सब कुछ लेकर आया। और तुम्हारी डाक्टर की पढ़ाई कैसी चल रही है?
आलेख ने कहा हां ठीक है सब।
तभी पिया की गाड़ी आकर रूकी।
पिया अन्दर आ कर बोली नमस्ते अंकल कैसे हो?
आलोक ने कहा हां मैं ठीक हूं तुम बताओ।
पिया ने कहा हां अच्छी हुं।
आलोक ने कहा तुम लोग पढ़ाई करो।
मैं थोड़ा सा आराम कर लेता हूं।
आलेख ने कहा तो चलो आज क्या लाई?
पिया ने हंसते हुए कहा गोभी के पराठे।
आलेख ने कहा हां पापा को भी पसंद है।
पिया ने कहा हां बहुत सारा लाई।
फिर दोनों पढ़ने लगे।
और उधर छाया ने अदरक वाली चाय बनाती है और फिर सब मिलकर गोभी के पराठे और चाय पीने लगते हैं।
आलोक ने कहा वाह पिया तुम तो हर काम में निपुण हो।
पिया हंसने लगी और फिर बोली कोशिश करती हुं बस।
आलेख ने कहा पापा पिया हमेशा मेरे लिए नाश्ता लेकर आती है।
पिया ने कहा हां दोस्ती की है निभानी तो पडेगी।
फिर सब हंसने लगे।
आलोक ने आलेख को हंसते देख कर बहुत ही अच्छा लगा कि कितने दिन बाद इस हवेली में हंसी ने दस्तक दी है।
काव्या ये देख रही है और फिर आलेख की मुस्कुराहट बिल्कुल काव्या की हंसी जैसी है।
काश आज वो होती।

फिर आलेख और पिया पढ़ाई करने लगे।
फिर शाम को पिया जाने लगी तो आलोक ने कहा आज मैंने आलेख को हंसते देख और ये सब तुम्हारी वजह से ही हो पाया। बेटा तुम बहुत तरक्की करोगी।
क्यों न कल अपने पापा के साथ दोपहर को खाना खाने आ जाओ।
पिया ने कहा हां ठीक है अंकल।
पापा मेरी बात कभी नहीं टालते हैं।
फिर पिया चली गई।
आलेख और आलोक बैठ कर बातें करने लगे और फिर कुछ देर तक टीवी पर प्रसारित समाचार भी देखा।

फिर आलेख और आलोक खाना खाने बैठ गए।
छाया ने हंसते हुए कहा सहाब अब बाबू का ब्याह करवा दिजिए।
आलेख ने कहा अरे बाबा अभी नहीं मुझे तो डाक्टर बनना है।
आलोक ने कहा हां बेटा तुम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाओ बस।
और हां तुम कोचिंग क्लास भी जा सकते हो अगर चाहो तो।
आलेख ने कहा हां ठीक है मैं बताऊंगा।
आलोक ने कहा देखो जो कुछ भी है वो सब तुम्हारे लिए ही है।

आलेख ने कहा हां पापा मै जानता हूं तो मैं अब जब कालेज जाऊंगा तो पुछ लुंगा।
आलोक ने कहा हां ठीक है मैं पैसे ज्यादा देकर जाता हूं।
फिर खाना खाने के बाद दोनों कुछ देर तक छत पर टहलने लगे।

आलेख ने कहा पापा आप भी यहां रह जाते तो अच्छा था।
आलोक ने कहा हां बेटा मैं समझ सकता हूं पर क्या करूं जिंदगी में बहुत कुछ करना है तुम्हारे लिए।
आलेख ने कहा मुझे तो बस आपका साथ चाहिए।
आलोक ने कहा हां मैं हमेशा तुम्हारे साथ हुं।
आलेख ने कहा हां ठीक है चलिए सोने चले।
फिर दोनों एक साथ एक कमरे में सो गए।
आलेख आंधी रात उठ बैठा और फिर वो छोटी मां के कमरे में जाकर उनकी अलमारी से वो डायरी निकाल कर पढ़ने लगा।
वहां पर एक पन्ने पर लिखा था कि आलेख बाबू बहुत ही होशियार बच्चा है कभी कुछ भी मांगता नहीं है पर मैं समझ जाती हुं कि उसे क्या चाहिए उसकी पसंद क्या है और वो चाहता है। ये सब पढ़ते हुए आलेख वहीं पर सो गया।
अगले दिन सुबह आलोक सैर के लिए जाने लगें तो आलेख को भी बुलाया और आलेख खुद को छोटी मां के कमरे में पाया और हाथ में डायरी भी थी।
फिर दोनों मिलकर चाय पीने लगे।
छाया ने कहा बाबूजी नाश्ता क्या बनेगा।
आलेख ने कहा अरे पुरी और आलू की सब्जी बनाओं।
छाया ने कहा हां ठीक है मैं बनाती हुं।

फिर कुछ देर बाद ही सब नाश्ता करने बैठ गए।

आलोक ने कहा छाया जरा रेडियो चला दो। सन्डे को गाना अच्छा आता है।
तभी छाया ने गाना चलाया।
धीरे धीरे मचल ऐ दिले बेकरार।।
धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार
धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार
कोई आता है
यूँ तड़पके ना तड़पा
मुझे बार बार, कोई आता है
धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार

(उसके दामन की ख़ुशबू हवाओं में है
उसके कदमों की आहट फ़ज़ाओं में है)-2
मुझको करने दे, करने दे सोलाह श्रिंगार
कोई आता है

धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार

(मुझको छुने लगिं उसकी पर्छाइयाँ
दिलके नज़्दीक बजती हैं शहनाइयाँ)-2
मेरे सपनों के आँगन में गाता है प्यार
कोई आता है

धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार

(रूठ के पहले जी भर सताऊँगी मैं
जब मनाएंगे वो, मान जाऊँगी में)-2
दिल पे रहता ऐसे में कब इख्तियार
कोई आता है

धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार
धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बेक़रार
कोई आता है
यूँ तड़पके ना तड़पा
मुझे बार बार, कोई आता है
धीरे धीरे मचल
ऐ दिल-ए-बे

गाना खत्म होने के बाद ही आलेख रोने लगा और फिर बोला छोटी मां,ओ छोटी मां आप कहां हो?
आलोक ने कहा पता है ये गाना हमेशा काव्या गाया करती है।

आलेख ने कहा हां हमेशा से।।
कुछ देर बाद ही जतिन और पिया आ गए।
अरे पिया बेटा क्या क्या लाई हो?
पिया हंसते हुए बोली अरे अंकल मैं मटर की कचौड़ी,शाही पनीर, रूमाली रोटी और हरी चटनी साथ में बेंसन का लड्डू।।
आलेख ने कहा अरे पिया कितना कुछ बनाया तुमने।
पिया ने कहा पता है जब पापा और काव्या आंटी एक ही स्कूल में पढ़ाती थी तभी से काव्या आंटी ने ये, ये बना कर सबको खिलाती थी और फिर सबको बनाने की विधि बताती थी और पापा भी तभी से सीखें है।
आलेख ने कहा हां तभी तुम्हारे खानें में छोटी मां के हाथों का स्वाद है।।
फिर जतिन को आलोक ने बैठक में बैठाया और फिर छाया ने सबको आम का शर्बत पीने को दिया।
फिर सब बैठ कर बातें करने लगे।
पिया ने कहा चलो हम पढ़ाई कर लें।
आलेख ने कहा अरे बाबा आज कोई पढ़ाई नहीं।।
पिया हंसने लगी तो आलेख ने कहा कि ऐसे ही हमेशा हंसती रहा करो।


छाया का भी खाना बन चुका था और फिर उसने टेबल पर सब खाना लगा दिया।

फिर सबको खानें बिठा दिया।
सब खाना खाने बैठ गए और छाया सबको खाना सर्व करने लगी तो पिया ने कहा छाया दी आज मैं अपने हाथों से सर्व कर दुंगी।

आलेख बहुत खुश हो गया और फिर पिया ने सबको बहुत ही अच्छे से खाना परोस दिया। पिया ने जो,जो बना कर लाई थी वो भी दिया और छाया ने आलू गोभी, भाजी,दाल, चावल, पापड़, दही सब कुछ अच्छे से सबकी थाली लगा कर दिया।
आलोक ने कहा जीती रहो बच्ची आज वर्षों के बाद घर लक्ष्मी की तरह थाली में खाना परोसा हुआ देख कर दिल भर आया। खाना बहुत स्वादिष्ट बना है।
आलोक ने कहा पिया यहां आओ।ये लो एक हजार रुपए देते हुए कहा कि ये लो कुछ खरीद लेना।।
पिया ने पैसे लेकर बोली थैंक्स अंकल।।
आलेख ने खाते हुए कहा कि एक बार ऐसा लगा कि मेरी छोटी मां ही खाना परोस कर चली गई।।
पिया भी खाना खाने लगी।
पिया ने थाली सजाकर छाया को बुलाया और कहा कि आप भी खाना खाने बैठ जाइए।
फिर सब मिलकर खाना खाने लगे।
क्रमशः।