१.कुछ गम
कुछ गम है मेरी भी जिंदगी में,
न हारा हूं न थका हूं,
ना जाने क्यों सिर्फ टूटा और बिखरा हूं।
कुछ अल्फाज है मेरे जो बयां नहीं हो पाते मुझसे,
बस अंदर ही अंदर खुद से रूठा हूं।
ना आशिक हूं ना आवारा हूं,
बस खफा तो उन रिश्तो से हूं।
जो देख नहीं पाते तरक्की मेरी,
जो छुरा भोकते हैं पीठ के पीछे,
घायल तो वह कुछ करीबियों से हूं।
अच्छी नियत वालों की कदर नहीं होती जहां और
बुरी नियत वालों का बोलबाला है जहां,
बस उस गंदी राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहता हूं,
शायद इसी लिए ज्यादातर अकेलापन ही पाता हूं।
अपनों और परायों कि इस दुनिया में,
गैर बनकर बैर पीता हूं।
फिर भी लोगों के लिए तो जहर ही रहता हूं।
कुछ ख्वाब है मेरे जो अच्छे और सच्चे हैं,
जिन्हें पूरा करने में जुटा हूं।
फिर भी ना जाने क्यों? ठोकर ही पाता हूं।
अंत में अगर कुछ कहना चाहू तो.......
जिंदगी खौफ है फिर भी जीता हूं,
एक दिन मौत है फिर भी जूझता हूं।
२. ईश्क
घायल हुआ हूं कुछ इस कदर,
रो नहीं पाता अब दरबदर !
कमबख्त इश्क! चीज ही ऐसी है,
तड़पाती है जो हर कदम।
शक् कि ना कोई दवा है,
थक गया नाचीझ सबब!
लूट के ले गए दिल मेरा !
अब कहते हैं जी लो गझल।
धड़कन तो थम गई दिल के साथ !
वह कह गए रह लो दुश्वार।
उनकी तकल्लूफ में तो क्या ही कहे?
रहते हैं जो हरदम बेफिकर!
जालिम छिड़ी तो जंग इस दिल के साथ है,
लेकर गए तो चली गई जान भी साथ।
आंसुओं का थोड़े कोई किनारा है
वह तो बेहते रहते हैं हरपल हर पल।
रब से मेरी यही गुजारिश,
ना दे किसी को ये रोग की बंदिश।
ना कोई दवा जिसकी ना कोई दुआ है!
तड़पते रहना सिर्फ यही सच्चाई है।
क्या जीना? क्या मरना? एक है जिसमें !
नहीं चाहिए ऐसे साथ की साजिश।
दिल ने ना सुनी एक भी दिमाग की,
शायद यही नतीजा है बिखर गया आज भी!
नहीं जी पाता अब वैसे ये दिल !
जो पहले कभी जी लेता था उसके साथ में।
क्या कुछ वादे और क्या कुछ बातें!
रह गए अधूरे अब दिल और जान आप में।
शायद नहीं रास आता प्यार को मुझसे,
इसी लिए रूठ गया वह खुमारियों में।
रब से बस यही दुआ है,
के जीए वो हरदम खुशियों में।
आदत थे वो मेरी या प्यार था मेरा ?
अटका हुआ हु आज भी इस उलझन में।
कोई बात ना यह दर्द भी तेरा दिया,
ले लेंगे इसे भी प्यार से पनाहों में!
३. अश्क
अश्क यूं ही बहाने से क्या मिलता है?
नमक थोड़ा जिस्म से कम होता है!
वैसे भी खारा है, हानिकारक रसायन!
फिर भी आंसुओं में वह शामिल होता है!
लेकिन गुस्ताखी देखिए.....
बाहर आते हैं वह, सरेआम तो,
अंदर महफूज दिल का कत्लेआम होता है!
दिलजलों का अलग ही गुनाह होता है!
प्यार में पागल वह फना होता है!
जब कुछ सुध-बुध नहीं रहता अंत में,
तब वो खुद के चरम से, परिचित होता है!
जिंदगी तो यूं ही कट जाएगी लेकिन!
कुछ एहसास और यादों का एक पहरा होता हैं!
४. देखो
मेरी ही परछाई की बेवफाई को देखो !
उजियारे में चलती साथ, अंधेरे में देखो !
क्यों लोग तन्हा और इतने नाखुश है ऐसे ?
जरा हमसे कभी हमारा हाल पूछ कर तो देखो !
समुंदर के किनारे चल रहा था यूं ही !
तपती हुई धूप में भाप बन के तो देखो !
हिमालय की वादियों से बातें हो रही थी मेरी !
इतनी ठंड में कुछ दिन गुजार के तो देखो !
बारिश दिखा रही थी अपनी बेरुखी कुछ इस तरह !
जैसे रो रहा हो आसमान, जमीन से खफा हो के देखो !
पी रही थी एक-एक कतरा आंसू का,
ऐसी वफाई की मिसाल, कभी निभा कर तो देखो !