The Author बिट्टू श्री दार्शनिक Follow Current Read साड़ी और वेस्टर्न ड्रेस... कहां बेशर्मी... कहां संस्कार... By बिट्टू श्री दार्शनिक Hindi Moral Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Robo Uncle - 2. Unexpected Event 2. Unexpected Event Nancy was waiting just for he... Love at First Slight - 29 Rahul's Hotel Room, SingaporeRahul walked into his lavis... The Village Girl and Marriage - 3 The child of Diya was not normal. When her elder brother and... Trembling Shadows - 6 Trembling Shadows A romantic, psychological thriller Kotra S... Secret Affair - 16 As winter melted into spring, Inayat and Ansh found themselv... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share साड़ी और वेस्टर्न ड्रेस... कहां बेशर्मी... कहां संस्कार... (5) 2.3k 7.3k हां सही है की, "आज के ज़माने में स्त्री यदि वेस्टर्न ड्रेस पहने तो बेशर्मी और साड़ी पहने तो उसे संस्कार।" कहते है। हां यह भी सही है की अब काफी सारे समाज और सोसायटी में स्त्री को अपने कपड़ों के चयन के संदर्भ में कोई बंधन नहीं रखते। क्या किस हद तक उचित है और क्या किस हद तक अनुचित यह हर व्यक्ति अपनी तरह से तय करता है। हां,आज की तकरीबन हर स्त्री के मन में यह प्रश्न जरूर होता होगा की, साड़ी पहने तो उनकी पीठ, कमर सरेआम दिखते है वहां सब संस्कार कहते है और वेस्टर्न ड्रेस से जरा से पैर और हाथ क्या दिखे की वो बेशर्मी कह दी जाती है।एसा क्यों ?दार्शनिक दृष्टि से बात कुछ यूं है।'साड़ी पहनने के बाद उसका एक छोर अलग रहता है जिसे पल्लू कहते है। जब कोई पारिवारिक अवसर हो अथवा घर के सारे सदस्य एक साथ हो तब कमर, हाथ और पीठ ढंकने के लिए स्त्री को पल्लू साथ ही रहता है।घर में अथवा किसी व्यक्तिगत स्थान अथवा व्यक्तिगत समय हो तब अथवा केवल पति आसपास हो तब स्त्री अपने पल्लू को समेटे रहती है (संभोग अथवा पति के स्पर्श की इच्छा हो तब)।वेस्टर्न ड्रेस में अलग से साथ रहने वाला कपड़ा नहीं होने से यह संभव नहीं हो पाता। इस वजह से वेस्टर्न ड्रेस पहने पर उस स्त्री के एक अथवा अधिक यौन अंग (बाजू, कमर, नाभि, स्तन, पीठ, पैर, जांघ, गरदन आदि) का प्रदर्शन होता है।यदि कोई पारिवारिक अथवा सामाजिक अवसर हो तो स्त्री के इन अंगों पर उसके पति के अलावा अन्य पुरुषों की भी दृष्टि पड़ती ही है। यह देख कर अन्य पुरुषों के मन में 'इस स्त्री के साथ किस तरह से सेक्स (संभोग) किया जाय' का खयाल लाता है। तब उन अन्य पुरुषों के मन में उस स्त्री के प्रति का सम्मान कम हो जाता है अथवा उस स्त्री के प्रति के सम्मान को नष्ट कर देता है। यदि स्त्री के यौन अंग स्पष्ट दिखा रही है तो इसका एक संकेत (सब-कॉन्शियस) यह जाता है की वह पुरुष को यौन संबंध के लिए न्योता दे रही है। जो जो वयस्क अथवा वीर्य युक्त पुरुष यह देखते है, उन सब पुरुषों को यह 'सब-कॉन्शियस' संकेत मिलता है। यह संकेत का केवल उस स्त्री के पति तक ही सीमित रहना योग्य है।यदि स्त्री विवाहित नहीं है तो यह संकेत केवल उस एक पुरुष को ही मिलना चाहीए जिससे वह आकर्षित हो। यदि स्त्री विवाहित है और सामाजिक अवसर पर अपने पति के होते हुए भी अपने अंग का किसी तरह से प्रर्दशन करती है तो, अन्य उपस्थित पुरुषों को यह संकेत भी जाता है की वह स्त्री अपने वैवाहिक जीवन से संतुष्ट नहीं है। अन्य पशु - प्राणी और सामाजिक मनुष्य में अंतर नहीं रह जाएगा। विवाह व्यवस्था का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा। व्यवस्था के बिखर जाने पर व्यक्ति तथा समाज की प्रगति संभव नहीं हो पाती है। कदाचित पारिवारिक बलात्कार जैसी घटनाओं के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है।यह अव्यवस्था जन्म न ले इसका खयाल रखना आवश्यक है। कदाचित इसी वजह से स्त्री का साड़ी पहनना संस्कार और वेस्टर्न ड्रेस पहनना बेशर्मी है।किसी के विचार तथा भावनाओ को ठेस पहुंचाने का मंतव्य नहीं है। कृपया धैर्य को साधे।इंस्टाग्राम पे फोलो कर सकते है: @bittushreedarshanikयोर क्वोट पे फोलो कर सकते है:@ Bittu Shree Darshanik Download Our App