Ayash-Part(39) in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अय्याश--भाग(३९)

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अय्याश--भाग(३९)

फिर इसके बाद क्या हुआ?आपकी अम्मी का निकाह किसी ऐसे इन्सान के साथ हो गया जो उनके काबिल ना था,सत्यकाम ने पूछा।।
जी!नहीं!भाईजान!हमारी अम्मीजान ने खुद से ही अपनी जिन्दगी तबाह कर ली,आलिमा बानो बोली।।
वो कैसें भला?सत्यकाम ने पूछा।।
वो इस तरह कि उन्हें एक आवारा और बदचलन इन्सान से मौहब्बत हो गई,तब उन्होंने अपने भाइयों की परवाह नहीं की और भाइयों की इज्ज़त को द़ागदार करके उसके संग घर से भाग गईं,इस बात से उनके भाई बहुत ज्यादा ख़फा हो गए और कसम खाई कि वें अपनी बहन की शकल फिर कभी नहीं देखेगें और वो उनके लिए मर चुकी है....,आलिमा बानो बोलीं।।
फिर क्या हुआ दीदी?सत्यकाम ने पूछा।।
सत्यकाम की बात सुनकर आलिमा बानो बोलीं.....
भाईजान!इसके आगें की कहानी बहुत ही दर्द भरी है,फिर क्या था हमारी अम्मी जिनके साथ घर से भागीं थीं उन्होंने उनसे ही निकाह पढ़वा लिया,उनके कुछ दिन तो बेहतरी में गुजरें लेकिन जब उनके रूपऐं खत्म होने लगें तो उनके बीच तनाव बढ़ने लगा और उनके बीच जो मौहब्बत थी वो भी हवा हो गई,जिस मौहब्बत के पीछे मेरी अम्मी ने अपने घर और अपने भाइयों को छोड़ा था,वो मौहब्बत अब उनके लिए नासूर बन गई थी,लेकिन अब अम्मी के पास और कोई रास्ता ना बचा था सिवाय अब्बाहुजूर के साथ रहने के,इसलिए मजबूरी में ही सही लेकिन वें उन्हें छोड़कर नहीं गई,क्योंकि उन्हें पता चला कि वें हमल से हैं,उस नन्ही सी जान की ख़ातिर वें अब्बाहुजूर को छोड़कर नहीं गईं और फिर वें जाती भी कहाँ क्योंकि उनके पास अब कोई और ठिकाना नहीं बचा था,उनके भाइयों ने उनसे मुँह मोड़ दिया था,वें भाइयों के चेहरे पर का़लिख पोतकर आईं थीं और वो मासूम सी जान जो अम्मीजान के हमल में पल रही थीं वो हम थे......
बड़ी मुश्किल हालात में अम्मीजान ने हमें जन्म दिया,हम एक लड़की थे इसलिए इस बात से अब्बाहुजूर बहुत ख़फा हुए,सच तो ये था कि वो दोनों खुद भूखे मर रहे थे हमें कहाँ से पालते और उन्होंने फैसला किया कि वो हमें अपने घर में पनाह नहीं देगें या तो किसी यतीमखाने में छोड़ आऐगें या तो फिर किसी मस्जिद के पास,फिर क्या था एक रात अम्मीजान के सो जाने पर अब्बाहुजूर हमें घर से बाहर ले गए और जैसे ही वें हमें एक मस्जिद के पास छोड़कर जा रहे थे तो कुछ लोगों ने उन्हें हमें वहाँ छोड़ते हुए देख लिया और शोर मचाना शुरू कर दिया,उन लोगों की इवाज़ सुनकर वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गई,फिर मजबूर होकर अब्बाहुजूर को हमें घर वापस लाना पड़ा ,इधर अम्मी का रो रोकर बुरा हाल हो गया था कि मेरी बच्ची कहाँ है,अब्बाहुजूर ने अम्मी के सामने अपनी गलती कुबूली,अब्बाहुजूर रोए-गिड़गिड़ाएं तो मजबूर होकर अम्मी को उन्हें माँफ करना ही पड़ा.....
फिर क्या था दिन बीतें,महीने बीते और फिर साल बीतने लगें और अम्मी की गोद में हर साल एक नन्ही सी जान होती,उनके लिए बच्चे पैदा करना दाल चावल बनाने जैसा हो गया था,उन्हें अब किसी की जरुरत नहीं पड़ती थी बच्चा जनने के लिए,जब उनके दिन पूरे हो जाते तो उन्हें पता चल जाता जैसे ही उन्हें दर्द उठता वें बकरियों वाली कोठरी में अपनी जरूरत का कुछ सामान लेकर चली जातीं और एकाध घंटे बाद एक नन्हीं सी जान के साथ वापस लौटतीं,इस तरह से हमारे चार भाई और तीन बहनें हो चुकीं थीं कुल मिलाकर हम चार बहनें और चार भाई पैदा हो चुके थें और अब दस लोगों के खर्चे का बोझ ढ़ोना अब्बाहुजूर के वश की बात नहीं रह गई थीं,किराएं का एक छोटा सा कमरा और इतना बड़ा परिवार,जिसका किराया भी अब्बाहुजूर ना जुटा पाते और मालिकमकान गालियाँ देता हुआ लौट जाता....
चूँकि हम लाहौर में रहते थें और वहाँ उस ज़माने में फिल्मों का दौर चल रहा था,तभी एक रोज़ अब्बाहुजूर के कोई पुराने दोस्त उन्हें रास्ते में मिले,उनकी खस्ताहालत देखकर उनसे कहा....
मियाँ! तुम इतनी अच्छी शायरी लिखते थे,क्यों ना तुम फिल्मी गीत लिखना शुरु कर दो,किसी ना किसी फिल्म वालें को तुम्हारे गीत पसंद आ ही जाऐगें और यदि एक बार फिल्मों में काम मिल गया तो वारे-न्यारें हो जाऐगेँ,अब्बाहुजूर को उनका मशविरा पसंद आया और उन्होंने कहा कि ऐसे तो बहुत सी ग़जलें उनके पास पहले से ही लिखी रखीं हैं,आप उन्हें देख लेते कि वें फिल्मवालों के काम आ सकतीं हैं या नहीं....
फिर क्या था अब्बाहुजूर के दोस्त दूसरे दिन घर आने का वायदा करके चले गए,अब्बाहुजूर के दोस्त अपने वायदे से मुकरे नहीं और दूसरे दिन घर आएं,घर और हम लोगों की हालत देखकर उन्हें बहुत अजीब सा लगा,अब्बाहुजूर ने पानी माँगवाया तो अम्मीजान ने दो गिलास भर कर हमें उन्हें पानी पिलाने भेज दिया,घर में और कुछ तो खाने को था नहीं,अब्बाहुजूर ने दोस्त ने हमें देखा तो बोल पड़े.....
रफ़ीक मियाँ! आपके पास इतना खूबसूरत हीरा है इसे मुझे तराशने के लिए दे दीजिए,देखना मैं इसे कितनी बड़ी हिरोइन बना दूँगा,जमाना इसके कदम चूमेगा।।
तब हमारे अब्बाहुजूर बोलें.....
असफा़क मियाँ! लेकिन अभी तो इसने केवल ग्याहरवीं पार की है,इतनी कम उम्र में हिरोइन कैसें बन सकती है?
इसे अभी बच्चों वाला रोल दिलवाऐगें दो तीन साल एक्टिंग सीखेगी तब इसे बड़े रोल मिलने लगेंगे,देखना फिर आपकी किस्मत यूँ खुलती है,असफा़क़ मियाँ बोलें।।
लेकिन असफा़क मियाँ!मुझे इस बात के लिए अपनी बेग़म से भी तो मशविरा करना होगा,अब्बाहुजूर बोलें॥
लगता है आपकी चलती नहीं है आपकी बेग़म के आगें,असफा़क मियाँ बोलें।।
ऐसी कोई बात नहीं,अब्बाहुजूर बोले।।
तो फिर इसमें इतना सोचना क्या?कल ही आप बच्ची को लेकर स्टूडियो आ जाएं मैं आपको किसी प्रोड्यूसर से मिलवाता हूँ,लेकिन इसके पहले ये बताएं कि क्या बच्ची गाना गा सकती है,असफ़ाक मियाँ ने पूछा।।
जी!गाती तो अच्छा है,एक बार आप उसका गाना सुनकर तो देखिए,अब्बाहुजूर बोले।।
ये भी खूब कही आपने,चलिए तो कहिए उसे कि गाना सुनाएं,असफा़क मियाँ बोलें....
फिर क्या था अब्बाहुजूर के कहने पर हमने उन्हें एक गाना सुनाया तो वें निहाल हो गए और अब्बाहुजूर से बोलें.....
रफ़ीक मियाँ! अब बिल्कुल भी देर ना करें,कल ही आ जाएं....
रात को जब अब्बाहुजूर ने अम्मी से इस मसले पर बात की तो अम्मी कतई राजी़ ना थी हमें फिल्मों में काम करवाने के लिए,दोनों के बीच इस बात को लेकर बहुत बहस हुई ,आखिरकार अम्मी ने घुटनें टेक ही दिए और अब्बाहुजूर हमें सबसे अच्छा साफ सुथरा सा फ्राँक पहनाकर स्टूडियो ले गए,वहाँ हमारा गाना सुना गया और कुछ डाँयलाँक बोलने को कहें गए जो को हमनें बोल दिए फिर हमें एक फिल्म में छोटा सा रोल मिल गया और अब्बाहुजूर को एडवांस पैसा......
उस दिन घर में बहुत कुछ पका और हम सबने उस रात पेट भरकर अपनी अपनी पसंद का खाना खाया,इसके बाद अब्बाहुजूर को तो जैसे रूपयों का चस्का लग गया,जब बैठे बिठाएं बिना मेहनत के इतना पैसा घर आ रहा है तो फिर काम क्यों करना?अब्बाहुजूर ने हमें नाच-गाने की तालीम के लिए एक अच्छा सा मास्टर रख दिया,हम दिनभर फिल्मों में सिर खपाते और शाम-सुबह नाच-गाने का रियाज़ करते,नन्ही सी जान इतने बड़े कुनबे का पेट पाल रही थी,अब्बाहुजूर को मुफ्त के रुपए मिलते तो वें शराब और बाजारू औरतों के बीच उन्हें उड़ाते,जब रुपयों की कमी पड़ती तो हमें दो तीन फिल्मों का काम और सम्भालना पड़ता,जो हम नहीं सम्भाल पाते जिससे अब्बाहुजूर हमें मेहनत करने पर और जोर डालते,इस तरह दो तीन साल बीते और हमें एक बड़े बैनर की फिल्म मिली,आप तो जानते हैं कि फिल्मों में आने पर नाम बदलना पड़ता है इसलिए अब हम आलिमा बानो से रूपकुमारी हो चुके थे,हमारी पहली फिल्म बतौर अभिनेत्री सुपरहिट हुई ,
अब हम एक बड़ी हिरोइन बन चुके थें जिसके पास दौलत-शौहरत तो थी पर सुकून नहीं था,जो हम दुनिया को दिखाई दे रहे थे वैसे हम भीतर से नहीं थे,अब अब्बाहुजूर ने हमारी कमाई से एक मकान खरीदा,मोटर खरीदी,मँहगा फर्नीचर खरीदा और दुनियावालों के सामने अपनी अमीरी का डंका पीटने लगें,अब हम खुद बहुत तनहा महसूस करने लगें, क्योंकि हमारे घरवालों को हमसे कोई सरोकार ना था,अगर उन्हें सरोकार था तो बस हमारी दौलत से,अब अम्मी के मिज़ाज़ भी बदलने लगें थे,उन्हें अब हमारा ख्याल ना था,उन्होंने जो अपनी जवानी इतनी गरीबी में काटी थी अब उस दौलत का लुफ्त वें बुढ़ापे में उठा रहीं थीं,रोज रोज महँगें महँगें गहने और कपड़े खरीदतीं और सहेलियों को दिखाती।।
अब हम एक जिल्लत भरी जिन्दगी जी रहें थें,तभी हमारी मुलाकात एक ऐसे लड़के से हुई जो हीरो बनने आया था,वो हमारे पास मदद के लिए आया था तो हमने उसकी मदद कर दी,हमारी मदद के कारण उसे एक फिल्म में काम भी मिल गया,इस कारण वो हमारा एहसानमंद हो गया और हमारे घर आने लगा,चूँकि हम अपने परिवार से अलग रहते थें,इसलिए वो कभी भी हमारें घर हमसे मिलने आ जाता,हम उसकी गोद में अपना सिर रख कर रो लेते तो हमारा जी हल्का हो जाता,वो हमसे हमदर्दी से पेश आता और उसकी हमदर्दी पाकर हम पिघलने लगें,उसकी हमदर्दी हमारे दिल में मौहब्बत बनकर पलने लगी,उसके दिल में भी हमारे लिए मौहब्बत पैदा हो गई,फिर उसने हमसे अपनी मौहब्बत का इज़हार कर लिया,हमने भी उसकी मौहब्बत कुबूल कर ली,उसकी मौहब्बत पाकर हमें दुनिया-जहान की खुशियाँ नसीब हो गईं,उनके पहलू में हमें अज़ब सा सुकून मिलता,वें हमारे लिए किसी फरिश्ते से कम ना थें,उन्होंने हमारी जिन्दगी को गुलजार बना दिया था।।
हमारी मौहब्बत के चर्चे अब सारे शहर में होने लगें,अब हम शूटिंग पर कम रहते और उन पर ज्यादा ध्यान देते,इस बात से हमारे अब्बाहुजूर बहुत खफ़ा हुए और एक दिन हमारे घर आकर हमें हिदायत दी कि हम अब शौकत अली से ना मिलें नहीं तो हमारी खैरियत ना होगी,लेकिन हम अपने दिल के हाथों मजबूर थे और अपने अब्बाहुजूर की हिदायतों का हम पर कोई असर ना हुआ,इससे हमारे काम में ख़लल पड़ने लगा और हम फिल्मों के प्रति लापरवाह से हो गए....
कुछ दिनों बाद उसने हमसे निकाह की बात कही और हमने उनकी इस बात को खुशी खुशी मंजूर कर लिया,हमने सिर्फ़ दो चार गवाहों की मौजूदगी में उनसे निकाह कर लिया और फिर हम बिना किसी को कुछ बताएं उनके साथ शिमला घूमने के लिए चले गए,एक महीने बाद जब हम शिमला से लौटें तो अब्बाहुजूर ने हमारे घर आकर तूफान खड़ा कर दिया वें बोले....
गुस्ताख़ लड़की! तुझे हमारी आबरू का कोई भी ख्याल ना आया,जो तूने इस दो कौड़ी के आदमी से निकाह कर लिया।।
उस दिन हमने पहली बार अपने अब्बाहुजूर के सामने गुस्ताखी की और उनसे कहा.....
अब्बाहुजूर! आप मेरी मौजूदगी में इन्हें कुछ भी नहीं कह सकते,अब ये हमारे शौहर हैं ,अब इनकी इज्जत हमारी इज्जत है,इनकी शान के खिलाफ हम कुछ भी नहीं सुन सकते।।
अब्बाहुजूर को हमसे ऐसे जवाब की उम्मीद ना थी,फिर वें और भी भड़क उठे और बोले.....
जिस आदमी पर तुझे गुमान है ना! अभी तुझे उसकी असलियत पता नहीं है और जिस दिन तुझे उसकी असलियत पता होगी ना तो उस दिन तेरे पैरों तले जमीन खिसक जाएगी,
अब्बाहुजूर की इस बात पर हमें बहुत गुस्सा आया और हम गुस्से से बोल पड़े.....
हमें पता है कि आप हमसे इतने ख़फा क्यों हैं?वो इसलिए कि अब आपको मुट्ठी भर भरके रूपये नहीं मिलते,आपकी अय्याशियों में ख़लल पड़ गया जो कि आपको मंजूर नहीं,अब आपके और अम्मी के शौक पूरे नहीं होते इसलिए आप हम पर भड़क रहे हैं।।
चुप कर बदजुबान! तुझे क्या लगता है कि हम तेरे टुकड़ो पर पल रहे हैं,आज से तेरा हम सब से कोई रिश्ता नहीं और फिर इतना कहकर अब्बाहुजूर हमारे घर से चले गए,उस दिन हम फूट फूटकर बहुत रोएं,हमें उस दिन शौक़त ने सम्भाला।।
दिन गुजरे और अल्लाह ने हमें खुशियों से नवाजा,हम उम्मीद से थे लेकिन हमारी इस खुशी पर ना जाने किस की नज़र लग गई और हमारा हमल नहीं रहा,हम बहुत निराश हुए और हमें शौकत ने फिर से सम्भाला,हम अपने ग़म से उबरना सीख ही रहे थे कि एक ऐसी ख़बर से हमारा सामना हुआ जिसे सुनने के बाद हम टूटकर बिखर गए,
एक दिन हम यूँ ही बरामदें में बैठें थें तभी एक खा़तून हमारे पास आकर बोलीं.....
खाला!क्या आप बता सकतीं हैं कि शौकत अली का मकान कौन सा है?
मैनें उससे कहा....
जी!वें तो यहीं रहते हैं,
तो क्या वें इस वक्त घर पर हैं,उन खातून ने पूछा।।
जी!नहीं!शूटिंग के सिलसिले में बाहर गए हैं,लेकिन ये बताएं कि आप कौन हैं?हमने उनसे पूछा।।
तब वें बोलीं....
जी! हम उनकी बेग़म हैं,उनको ढूढ़ते हुए यहाँ आ पहुँचें,बच्चा भी है लेकिन उसे हम उनकी दादीजान के पास छोड़कर आएं हैं,बहुत पूछने पर इस जगह बड़ी मुश्किल से पहुँचें हैं और इतना कहने के बाद उन खातून ने पूछा....
जी!आप कौन हैं? और इस घर में क्या कर रही हैं?
ये सुनकर हमारे होश ग़ुम थे लेकिन तब भी हमने उन्हें सम्भलकर जवाब दिया,
जी! हम भी उनसे मिलने आएं हैं किसी फिल्म के सिलसिले में और फिर शौकत की बेग़म को हम उस घर के भीतर ले गए लेकिन उसी वक्त हमने वो घर छोड़ दिया और एक किराएं के कमरें में रहने लगें,इतना बड़ा धोखा खाने के बाद हमारे होश ठिकाने आ गए थे ,तब हमें अपने अब्बाहुजूर की बात याद आई कि उन्होंने सच ही कहा था और फिर हमने फिर से अपना मन लगाने के लिए फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया,इस बीच शौकत हमसे कई बार मिलने आया,लेकिन हम उनसे नहीं मिलें,हमें अब और भी धोखा खाने का शौक नहीं था,
अब हम फिल्मों में काम तो कर रहे थें लेकिन हमारा शरीर हमारा साथ नहीं दे रहा था,परेशानियों की वजह से हम अपना ख्याल नहीं रख पा रहे थे,अकेलापन धीरे धीरे हमें भीतर से खोखला बना रहा था,इस कारण हमने सिगरेट और शराब का सहारा लेना शुरु कर दिया,सिगरेट और शराब के ज्यादा इस्तेमाल से हमारी तबियत बिगड़ने लगी.....
अपनी इस बिगड़ती हालत की वजह से हमें एक डाँक्टर के पास जाना पड़ा,उन्होंने हमारे इलाज के दौरान हमारे मन की हालत सुनी,तब हमने सारा गुबार उड़ेल दिया,उन्होंने हमारी मन की तिलमिलाहट को समझा,उन्होंने कहा कि आपको दवा से ज्यादा अपनेपन की जरूरत है और वो अपनापन हमें डाँक्टर की नज़रों में नज़र आया,लेकिन तभी इसी दौरान एक फिल्म के जरिए फिर से हमारी मुलाकात शौकतअली से हुई और उन्हें देखकर हम अपने आँसुओं को रोक नहीं पाएं,उस वक्त हमें उनके सहारे की सख्त जरूरत थी,उन्होंने भी हमसे इल्तिजा की कि हम उनकी जिन्दगी में दोबारा लौट आएं और हम इस उनकी इल्तिजा को ठुकरा नहीं पाएं,इस बात से शौकत की पहली बेग़म बिफ़र पड़ी और उन पर तलाक के लिए जोर डालने लगी...

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....