Ayash-Part(32) in Hindi Moral Stories by Saroj Verma books and stories PDF | अय्याश--भाग(३२)

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अय्याश--भाग(३२)

सत्यकाम संगिनी की माँग भरकर सबसे बोला.....
आज ये मेरी धर्मपत्नी हैं और आज से इनकी हिफ़ाज़त की जिम्मेदारी मेरी है अगर इस पर किसी को कुछ कहना है तो कह सकता है।।
सत्या की बात सुनकर फिर वहाँ मौजूद महिलाएं और पुरुष कुछ भी ना बोले,फिर सत्या ने संगिनी का हाथ पकड़ा और अपने कमरें में ले गया,संगिनी भी डरी सहमी सी चुपचाप सत्या के साथ चली आई,तब सत्या संगिनी से बोला....
मुझे माँफ कर दीजिए,मैं ये सब नहीं करना चाहता था लेकिन ना चाहते हुए भी मुझसे ये हो गया।।
आपने तो मेरा उद्घार किया है,संगिनी पलकें नींचे किए हुए बोली।।
तो क्या आप को इस विवाह से कोई एतराज नहीं? सत्या ने पूछा।।
तब तक बंसी भी वहाँ आ पहुँचा और बोला.....
बाबूसाहेब! आपने जो महानता का कार्य किया वो तो कोई सज्जन और उच्च प्रकृति का व्यक्ति ही कर सकता है,धन्य है आपकी जननी जिसने आप जैसे उच्च विचारों वाले व्यक्ति को जीवन देकर इस दुनिया पर उपकार किया है।।
अरे...अरे....बंसी! इतना महान मत बनाओ मुझे,सत्या बोला।।
ना बाबूसाहेब! आप तो इस बच्ची के तारनहार बनकर आएं हैं,इतने सालों से बेचारी कैसा जिल्लत भरा जीवन जी रही थी,आप ने तो इसकी नइया को पार लगाया है,बिटिया तुम बड़ी भाग्यशाली हो जो तुम्हें जीवनसाथी के रूप में ये मिले हैं,इनके चरणस्पर्श करके इनका आशीर्वाद ले लो,बंसी बोला।।
बंसी की बात सुनकर संगिनी ने अपनी सूती धोती का पल्लू अपने सिर पर रखा और सत्यकाम के चरण स्पर्श करने के लिए ज्यों ही झुकी तो सत्या पीछे हटते हुए बोला.....
ना...ना...इस सबकी कोई भी जरूरत नहीं है,
सत्यकाम के ना करने के बावजूद भी संगिनी ने सत्यकाम के चरण स्पर्श कर अपने माथे पर लगा लिए,तब बंसी बोला.....
बाबूसाहेब! बिटिया को आशीर्वाद तो दे दीजिए।।
बंसी के कहने पर सत्या ने सकुचाते हुए संगिनी को आशीर्वाद देते हुए कहा.....
सदैव प्रसन्न रहो।।
अब तो बिटिया सदैव प्रसन्न रहेगी,अब आप जो इसके साथ हैं,प्रसन्नता तो अब संगिनी बिटिया के पैर चूमेगी,भला आपके साथ रहते हुए इसे कैसा दुख?
तुम भी ना बंसी! क्या कहते हो? सत्या बोला।।
मैनें कुछ गलत तो नहीं कहा,आप पूजा के ही योग्य हैं,अच्छा! अब ये बातें छोड़िए, आप लोंग जरा ठहरें मैं बिटिया के लिए खाना लेकर आता हूँ,अभी तो बेचारी ने खाना भी नहीं खाया होगा और फिर बंसी संगिनी के लिए खाना लेने नीचें चला गया.....
सत्या और संगिनी दोनों ही खड़े थे तो सत्या ने संगिनी से चारपाई की ओर इशारा करते हुए कहा....
जब तक बंसी खाना ला रहा है आप तब तक यहाँ बैठ जाइए.....
जी! मैं यहीं ठीक हूँ,संगिनी बोली।।
अरे!संकोच कैसा? अब तो ये आपका घर है,सत्यकाम बोला।।
सत्या के इतना कहने पर संगिनी चारपाई पर बैठ गई,सत्या बाहर छत पर आकर टहलने लगा,कुछ ही देर में बंसी भी खाना लेकर आ पहुँचा,तब सत्या ने बंसी से कहा.....
बंसी! तुम इन्हें ठीक से खाना खिला दो,मैं तब तक बाहर ही हूँ।।
सत्या की बात सुनकर बंसी कमरें में पहुँचा और संगिनी से बोला.....
लो! बिटिया! खाना खा लो।।
संगिनी भूखी थी इसलिए उसने चुपचाप खाना खा लिया,संगिनी के खाना खाने के बाद बंसी थाली लेकर नीचे चला गया,तब सत्यकाम कमरें के भीतर गया और संगिनी से बोला.....
अब आप आराम से चारपाई पर सो जाइएं,मुझे एक तकिया और चादर दे दीजिए मैं छत पर चटाई बिछाकर सो जाता हूँ,सत्या की बात सुनकर संगिनी ने सत्यकाम के हाथ में एक तकिया और चादर थमा दी,सत्यकाम ने जमीन पर बिछी चटाई समेटी और दरवाजे से निकलते ही संगिनी से बोला.....
आप भीतर से कुण्डी लगा लीजिए और इत्मीनान से सो जाइएं।।
संगिनी ने वैसा ही किया जैसा कि सत्या ने कहा था और इत्मीनान से चारपाई पर लेट गई....
सत्या बाहर छत पर चटाई पर लेटा अब ये सोच रहा था कि जोश-जोश में विवाह तो कर लिया लेकिन अब तो आगें के लिए कुछ तो सोचना पड़ेगा क्योंकि अब मैं अकेला नहीं हूँ,कल विद्यालय पहुँचकर मुखर्जी जी से इस विषय पर बात करता हूँ शायद वें ही कुछ सुझाव दे पाएं और ये सोचते सोचते सत्या की कब आँख लग गई ये उसे पता ही नहीं चला।।
इधर संगिनी भी सत्या के बारें में और अपने आने वाले भविष्य के बारें में सोच रही थी कि अब उसके जीवन में कौन सा मोड़ आने वाला है और वो भी यही सोचते सोचते नींद के आगोश में चली गई।।
सुबह हो चुकी थी और सत्या अभी भी सोया हुआ था,एकाएक उसके चेहरें पर पानी की बूँदें पड़ी और उसकी आँख खुल गई,उसने देखा कि संगिनी उसके गंदे पड़े हुए धोती-कुर्ता धो कर उनका पानी झटक रही थीं,शायद उसी पानी की बूँदें उस पर पड़ीं होगीं,पानी झटक कर उसने वो गीले कपड़े छत पर बँधी रस्सी पर सुखाने के लिए डाल दिए,तब संगिनी की नजर सत्या पर पड़ी और उसने देखा कि सत्या जाग उठा है तो वो सत्या के पास जाकर धीरे से बोली.....
बाबूजी!मुझे स्नान करना है लेकिन मेरे पास कपड़े नहीं हैं....
तब सत्या बोला.....
ओह....मैनें तो ये सोचा ही नहीं और आपने मेरे कपड़े धुलने की तकलीफ़ क्यों की ,मैं बाद में धो लेता।।
अब आपकी सेवा करना मेरा कर्तव्य और धर्म है,बाबूजी!,संगिनी बोली।।
आप मुझे बेफजूल चने के झाड़ पर मत चढ़ाइए,मैं इस काबिल नहीं,सत्या बोला।।
जी! आप तो मेरे लिए ईश्वर समान है,क्योंकि पति ही परमेश्वर होता है,संगिनी बोली।।
बस...बस....आप पहले ऐसी बातें करना बंद कीजिए और मेरे संग कमरें में आइए,शायद आपके पहनने लायक कुछ मिल जाएं,शाम को विद्यालय से आते वक्त मैं आपके लिए एक दो साड़ियाँ ला दूँगा,सत्या बोला।।
संगिनी चुपचाप सत्या के साथ भीतर चली आई और फिर सत्या ने अपना पुराना सा एक संदूक खोला और उसमें से एक साड़ी निकालकर संगिनी को देते हुए बोला......
ये साड़ी मेरी माँ ने अपनी होने वाली बहु के लिए खरीदी थी,मैं उनके साथ नहीं रहता था तब भी वें मेरा इतना ख्याल करतीं थीं,ऐसी कई साड़ियाँ उन्होंने अपनी होने वाली बहु के लिए सहेजकर रखीं थीं,एक एक साड़ी चुन चुनकर खरीदी थी उन्होंने,लेकिन उनके जाने के बाद मैंने कुछ साड़ियाँ अपनी बहनों को बाँट दीं और कुछ अपनी भाभी कनकलता को दे दीं,वें मेरे बड़े मामा जी की बहु हैं और ये एक साड़ी मैं अपनी माँ की निशानी के तौर पर अपने साथ ले आया था,लीजिए ये आपके काम आ गई और आपको माँ का आशीर्वाद भी मिल गया।।
संगिनी ने अपने हाथों में साड़ी ले ली और बोली....
बहुत ही सुन्दर है ये साड़ी लेकिन सिन्दूर और बिन्दिया का क्या करूँ?
आप स्नान करके मन्दिर चली जाइए,माता के मन्दिर से आपको सिन्दूर मिल जाएगा,शाम को मैं सिन्दूर की डिबिया भी ला दूँगा,सत्यकाम बोला।।।
ठीक है लेकिन आपके जाने के बाद मैं कमरें में अकेले क्या करूँगी,कोई काम भी तो नहीं है यहाँ,संगिनी बोली।।
आपको पढ़ना आता है,सत्यकाम ने पूछा।।
जी! लिखना पढ़ना तो आता है,मैनें पाँचवीं तक पढ़ाई की है,संगिनी बोली।।
तो फिर अलमारी में बहुत सी किताबें हैं आप उनमें से अपनी पसंद की किताब पढ़ सकतीं हैं,सत्यकाम बोला।।
जी! तब ठीक है,संगिनी बोली।।
आप मुझे बाबू जी ना कहा करें,सत्यकाम बोला।।
आपको सम्बोधित करने के लिए मुझे यही शब्द उचित लगता है,संगिनी बोली।।
जी!मैं आपसे नहीं जीत सकता देवी! सत्यकाम बोला।।
मैं आपसे एक बात कहूँ,संगिनी बोली।।
जी! कहिए,सत्यकाम बोला।।
आप मुझे आप मत कहा कीजिए,मैं आपसे उम्र में बहुत छोटी हूँ,संगिनी बोली।।
तो देवी जी आप ही सुझाएँ कि मैं आपको क्या कहूँ तो बड़ी दया होगी मुझ गरीब पर,सत्यकाम बोला।।
आप ऐसा क्यों कहते हैं? मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा,संगिनी बोली।।
नहीं! देवी! आप गलत नहीं है,आप कृपया करके ये बताएं कि मैं आपको क्या कहकर पुकारूँ,सत्यकाम ने पूछा।।
जी! सब संगिनी कहते हैं तो आप यही कहकर पुकारा करें,संगिनी बोली।।
जी! देवी! जैसी आपकी इच्छा,और कुछ या समाप्त हो गई आपकी विनतियाँ,सत्यकाम बोला।।
आप तो खाँमखाँ में नाराज़ होते हैं,संगिनी बोली।।
जी! नहीं! मैं नाराज नहीं हूँ! अब मैं तैयार हो जाऊँ,नहीं तो विद्यालय जाने में देर हो जाएगी,सत्यकाम बोला।।
जी! मैनें कब मना किया आपको तैयार होने से,मैं थोड़े ही आपका रास्ता रोके खड़ी हूँ,संगिनी बोली।।
संगिनी की बातें सुनकर सत्या मंद मंद मुस्कराता हुआ स्नानघर की ओर चल दिया,वो स्नान करके लौटा ही था कि बंसी दोनों का नाश्ता लेकर कमरें में हाजिर हो चुका था,संगिनी ने सत्या का नाश्ता उसके लिए परोस दिया और बंसी से बोली....
काका! मैं स्नान करने के बाद खाऊँगी,तुम दोनों थालियाँ बाद में ले जाना।।
ठीक है बिटिया! तो मैं फिर बाद में आता हूँ और फिर इतना कहकर बंसी नीचें चला गया,सत्या भी नाश्ता करने के बाद विद्यालय रवाना हो गया और संगिनी को हिदायत देकर गया कि स्नान करने के बाद नाश्ता कर ले और केवल बंसी की आवाज़ पर ही दरवाजा खोले,संगिनी ने वैसा ही किया।।
उधर सत्या विद्यालय पहुँचा और उसने रात वाला सारा मामला मुखर्जी बाबू को कह सुनाया,सत्या बाबू की बात सुनकर मुखर्जी बाबू खुश होकर बोलें......
अरे! वाह....सत्या बाबू! आपने तो रातभर में ही किला फतेह कर लिया,क्या क्या बातें हुईं रात को भाभी के साथ?
जी! मैं तो छत पर चटाई बिछाकर सोया था और वें भीतर चारपाई पर सोईं थीं,सत्यकाम बोला।।
ओहो...सत्यानाश! चटाई पर बाहर,मुखर्जी बाबू बोलें।।
और क्या?ये विवाह तो अचानक ही हो गया,ना मैं उन्हें चाहता हूँ ना वें मुझे चाहतीं हैं,सत्यकाम बोला।।
ये भी सही कहा आपने,मुखर्जी बाबू बोलें।।
जी! मुझे आपसे और भाभी से एक काम है,अगर आपको एतराज़ ना हो तो कहूँ,सत्यकाम बोला।।
जी..जी..बेफिक्र होकर बोलिए,इसमें एतराज़ कैसा? मुखर्जी बाबू बोले।।
आप दोपहर में आधी छुट्टी लेकर भाभी के साथ बाजार चले जाइए,आपकी नई भाभी के लिए एक दो सूती साड़ियाँ और कुछ श्रृंगार का समान भी चाहिए था उन्हें तो शुभगामिनी भाभी ही ये काम ठीक से कर सकतीं हैं,इसलिए उन्हें तकलीफ़ उठाने को कह रहा हूँ,सत्यकाम बोला।।
जो हुक्म मेरे आका! अपने मित्र के लिए जान भी हाजिर है,मुखर्जी बाबू बोले।।
बस इतना ही काम कर दीजिए आज,सत्यकाम बोला।।
लेकिन सत्यकाम बाबू! एक बात आई है मेरे मन में कि आप अकेले थे तब तक उस मकान में आपका रहना ठीक था लेकिन भाभी के आने के बाद अब आपकी गृहस्थी बढ़ेगी तो आप को अब और कोई मकान देख लेना चाहिए ,मुखर्जी बाबू बोले....
शायद आप ठीक कहते हैं,सत्यकाम बोला।।
ठीक है तो मैं अपने ही मुहल्ले कोई अच्छा सा मकान ढूढ़ता हूँ,मुखर्जी बाबू बोले।।
ये तो और भी बढ़िया है,सत्यकाम बोला।।
और ऐसे ही दोनों की बातें चलतीं रहीं,दोपहर हुई और मुखर्जी बाबू घर चले गए और वहाँ से शुभगामिनी को साथ लेकर वो संगिनी का समान खरीदने के लिए बाजार गए,शुभगामिनी ने संगिनी की जरूरत की सारी सामग्री खरीदी और उन्हें लेकर मुखर्जी बाबू पुनः विद्यालय आ गए फिर सत्या के हाथ में सामान थमाते हुए बोलें....
ये रहा आपका सामान,भाभी जी को दे दीजिएगा और परसों इतवार है आप दोनों को हमारे घर भोजन के लिए आना है ये शुभगामिनी का आदेश है।।
जी! बहुत बहुत शुक्रिया,हम दोनों जरूर आएंगे,सत्यकाम बोला।।
और शाम को सत्या जब अपने कमरें में पहुँचा तो उसने सारा सामान संगिनी को देते हुए कहा.....
अब आप अपना श्रृगांर कर सकतीं हैं...

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....