Journey from Arena to Parliament in Hindi Moral Stories by Jatin Tyagi books and stories PDF | अखाड़े से संसद तक का सफर

Featured Books
Categories
Share

अखाड़े से संसद तक का सफर

दारा सिंह कुश्ती के शहंशाह
आज के समय में कोई भी व्यक्ति ऐसा नही है, जो खेल जगत और बॉलीवुड से अनभिज्ञ हो. ऐसे ही खेल जगत और बॉलीवुड से जुड़े एक महान शख्सियत है, दारा सिंह जी. जिन्होंने खेल जगत के साथ अपने दमदार अभिनय से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई. वैसे तो देश के प्रसिद्ध रेसलरो में से एक दारा सिंह जी को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है. यह वो इंसान है जिन्होंने देश का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा है.

दारा सिंह का व्यक्तिगत जीवन
दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रन्धावा है. दारा सिंह का जन्म 19 नवम्बर 1928 को अमृतसर के एक गाँव धरमुचक में श्रीमति बलवन्त कौर और श्री सूरज सिंह रन्धावा के यहाँ हुआ था. दारा जी को बचपन से ही कुश्ती का बहुत शोक था. दारा सिंह की शादी कम उम्र में ही उनके परिवार वालों ने उनकी मर्ज़ी के बिना उनकी उम्र से बड़ी लड़की से कर दी. सत्रह साल की नाबालिग उम्र में ही दारा सिंह प्रध्युमन रन्धावा नाम के एक लड़के के पिता बन गये.

दारा सिंह जी उन दिनों पहलवानी में अपार सफलता प्राप्त कर चुके थे, तब उन्होंने अपनी दूसरी शादी अपनी पसंद की लड़की से कर ली. जिसका नाम सुरजीत कौर था. वह एम.ए. पास एक पढ़ी-लिखी लड़की थी. दारा सिंह की दूसरी पत्नी सुरजीत कौर से उन्हें 3 बेटी और 2 बेटे है. पहली पत्नी से हुआ एक बेटा प्रद्युमन अब मेरठ में रहता है. जबकि दूसरी पत्नी से जो बेटे है वो मुंबई में रहते है.
 
अपराजय पहलवान दारा सिंह 
दारा सिंह के छोटे भाई का नाम सरदार सिंह था. दोनों भाई ने साथ में ही पहलवानी शुरू की थी. कुछ समय बाद धीरे-धीरे दोनों भाई ने मिलकर गाँव के दंगलो से निकल कर शहर में आयोजित कुश्तियों में भाग लेकर अपनी जीत को हासिल किया और अपने गाँव का नाम रोशन किया. वे अपने ज़माने के फ्री-स्टायल पहलवान रहे.

1960 के दशक में पुरे भारत में दारा सिंह की फ्री-स्टायल कुश्तियों का बोलबाला रहा है. उन्होंने 1959 में पूर्व विश्व चैम्पियन जार्ज गारडीयांका को पराजित किया और कामनवेल्थ की विश्व चैम्पियनशिप जीती थी.

दारा सिंह ने 55 की उम्र तक पहलवानी की और 500 मुकाबलों में कभी भी हार का मुँह नही देखा. अपने 36 साल के कुश्ती के करियर में एक भी ऐसा पहलवान नही था, जिसे दारा सिंह जी ने मुकाबला कर के रिंग में धुल न चटाई हो. 1968 में वे अमेरिका के विश्व चैम्पियन लो थेस को पराजीत कर विश्व चैम्पियन बन गये.

 

1947 में दारा सिंह जी सिंगापुर आ गये. वहां उन्होंने भारतीय फ्रीस्टाइल की कुश्ती में मलेशियाए चैम्पियन को हराया, और कुआलालम्पुर मलेशिया में चैम्पियनशिप जीती. इसके बाद उनका विजय रथ अन्य देशो की और चल पड़ा. एक पेशेवर पहलवान के रूप में सभी देशो में अपनी धाक जमाकर दारा सिंह जी 1952 में भारत लौट आये और भारत का नाम रोशन किया. 

1954 में दारा सिंह जी भारतीय कुश्ती के चैम्पियन बने. फिर उनका मुकाबला कुश्ती के दानव कहे जाने वाले किंग-कोंग से हुआ. उस वक्त दारा सिंह का वजन 130 किलो था, जबकि किंग-कोंग का वजन 200 किलो था. यह मैच बड़ा ही रोमांचित था, क्योंकि किंग-कोंग के भारी भरकम शरीर को देख कर दर्शक किंग-कोंग पर ही अपना पैसा लगा रहे थे.

एक समय तो ऐसा आया कि सबको लगा इस बार दारा सिंह तो पराजीत होंगे ही और उन्हें हार का मुँह देखन पड़ेगा. परन्तु दारा सिंह के पहलवानी दाव से उन्होंने किंग-कोंग को अपने शिकंजे में कस लिया और मारते-मारते रिंग के बाहर निकाल दिया. इस तरह उन्होंने फिर से कुश्ती में विजय हासिल की. 1983 में उन्होंने अपने जीवन के अंतिम मुक़ाबले को खेल कर जीता और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से ख़िताब हासिल कर रिकॉर्ड अपने नाम बरक़रार रखते हुए कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया.

बॉलीवुड में प्रवेश/ फिल्मों में अभिनय/ फिल्मों की तरफ रूख़ 
1952 में दारा सिंह को राज्य सभा का सदस्य घोषित किया. दारा सिंह जी ऐसे पहले व्यक्ति थे, जो कि खेल जगत से सम्बन्ध रखते थे. इसके बाद दारा सिंह जी ने फिल्मों की तरफ अपना रुख़ किया और फिल्मों में उन्होंने निर्माता निर्देशक और कलाकार के तोर पर अपना परचम लहराया.

दारा सिंह जी ने पहली फिल्म 1952 में ‘दिलीप कुमार’ और ‘मधुबाला जी’ के साथ ‘संगदिल’ की उसके बाद 1954 में ‘पहली झलक’ जिसमे उन्होंने अपना ही किरदार दारा सिंह का निभाया था. 1962 में उन्होंने ‘किंग- कोंग’ में किंग-कोंग का किरदार निभाया था.

 

उनकी कुछ प्रमुख फिल्में
‘फौलाद’ , ‘रुस्तमे बग़दाद’ , ‘रुस्तम-ए-हिन्द’ , ‘दारा सिंह (द आयरन मेन)’ , ‘सिकंदर-ए-आज़म’ , ‘मेरा नाम जोकर’ , ‘तुलसी विवाह’ , ‘धरम-करम’ , ‘कर्मा’ , ‘भक्ति में शक्ति’ , ‘इन्तकाम मैं लूँगा’ , ‘मर्द’ जैसी कई सारी फिल्मों में अपना बेहतर अभिनय दिखाया. दूरदर्शन के धारावाहिक ‘रामायण’ में उन्होंने हनुमान जी का रोल बहुत ही बख़ुबी निभाया. ‘महाभारत’ में भी उन्होंने हनुमान जी का रोल निभाया था. जिसे दर्शको ने काफी पसंद किया, और हनुमान के अभिनय से उन्हें अपार लोकप्रियता मिली. 2006 में ‘दिल अपना पंजाब’ और 2008 में ‘जब वी मेट’ जैसी फिल्मों में अपना योगदान दिया. 2012 में ‘अता पता लापता’ उनके जीवन की आखिरी फिल्म थी.

दारा सिंह की मृत्यु
7 जुलाई 2012 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा. फिर उन्हें कोकिलाबेन धीरुभाई अम्बानी अस्पताल में भर्ती कराया गया, पर उन्हें 5 दिनों में भी कोई आराम नही हुआ, तो उन्हें उनके मुंबई निवास स्थान पर लाया गया जहाँ सुबह 07:30 बजे दारा सिंघ जी ने अपनी आखरी सांस ली और इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्होंने अपनी आत्म कथा पंजाबी में लिखी थी, जो 1993 में हिंदी में भी प्रकाशित हुई. दारा सिंह जी के योगदान को भारतीय खेल जगत और भारतीय फिल्म जगत हमेशा याद रखेगा.