Santulan - Last Part in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | संतुलन - अंतिम भाग

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संतुलन - अंतिम भाग

एक दिन मीरा की तबीयत ख़राब थी। राधा ऑफिस से आने के बाद रोज़ ही कुछ देर सितारा के पास बैठकर बातें करती। दिन भर के हाल-चाल पूछती और उसके बाद अपनी माँ से मिलने नीचे चली जाती। वह कुछ ही देर में वापस भी आ जाती थी लेकिन आज वह जाने के बाद जल्दी वापस नहीं आई। वह अपनी माँ के बुखार के कारण उनके पास ही थी। 

इधर सितारा का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। वह पल-पल राधा के लौटने का इंतज़ार कर रही थी। अंततः सितारा से रहा नहीं गया और उसने सोचा आज तो हद ही हो गई है। आज तो उसके माँ-बाप के सामने ही उसकी ख़बर लेती हूँ। अब चुप रहने से काम नहीं चलने वाला। ऊँगली टेढ़ी करनी ही पड़ेगी। इतना सोचते हुए वह नीचे मीरा के घर पहुँच गई।

वह चुपचाप खड़ी होकर जानना चाह रही थी कि अंदर चल क्या रहा है। कोई आहट किए बिना ही वह खड़ी थी।

तभी उसे अंदर से आवाज़ आई मीरा कह रही थी, "राधा जाओ, घर जाओ बेटा "

"अरे माँ आपकी तबीयत ख़राब है कितना तेज बुखार है आपको। इस हालत में मैं आपको अकेला छोड़ कर नहीं जा सकती।"

"नहीं राधा तुम जाओ, सितारा देवी को शायद अच्छा ना लगे।"

"नहीं माँ मम्मी बहुत अच्छी हैं, वह समझती हैं कि आप दोनों अकेले हैं। वह तो ख़ुद मुझसे कहती हैं कि जाओ देख आओ, मिल कर आओ। उनका भी ख़्याल रखा करो । माँ आप यह सब बिल्कुल मत सोचना; मैं संतुलन बनाकर रखूँगी ना। वहाँ भी कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दूँगी। पापा ने तो बचपन से मुझे संतुलन रखना सिखाया है।"

"बेटा यदि वह इतनी अच्छी हैं फिर तो हम लोग बहुत ही भाग्यशाली हैं कि तुझे सास-ससुर नहीं माँ बाप मिल गए हैं। वरना कौन सी सास इतना समझती है। बहू के आते ही उस पर पूरा अपना ही अधिकार समझ लिया जाता है। माँ-बाप के घर आने तक के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। कई बार तो एक-एक साल निकल जाता है। माँ-बाप अपनी बेटी का मुँह तक देखने के लिए तरसते रहे जाते हैं।"

"हाँ माँ तुम ठीक कह रही हो, अपन बहुत भाग्यशाली हैं।"

"राधा सबसे आश्चर्य की बात तो यह है बेटा कि जिनकी बेटियाँ होती हैं ना वह तो फिर भी इस दर्द को समझते हैं; लेकिन सितारा देवी की तो बेटी भी नहीं है। उसके बाद भी वह इस दर्द को समझती हैं। यह तो बहुत ही बड़ी बात है।"

"माँ उनकी बेटी नहीं है इसीलिए तो वह मुझे बिल्कुल अपनी बेटी की तरह ही रखती हैं और उतना प्यार भी करती हैं। कभी किसी चीज के लिए मना नहीं करतीं।"

सितारा यह सब कुछ सुनते ही उल्टे पाँव वहाँ से लौट गई। लौटते समय वह सोच रही थी कि कितना फर्क़ है राधा की माँ और उसकी सोच में। राधा भी उसकी मानसिकता जानती है फिर भी उसने अपनी माँ की नज़रों में उसे गिरने नहीं दिया। मुझे भी दिल बड़ा करना चाहिए। आकाश सच ही तो कहता है कि यदि वह बेटा नहीं बेटी होता, तो भी क्या मेरी सोच ऐसी ही होती। ख़ुद से ही ऐसा प्रश्न करके सितारा ख़ुद ही जवाब भी दे रही थी कि नहीं फिर उसकी सोच ऐसी नहीं होती। वह हमेशा यह चाहती कि उसकी एक ही बेटी है और वही हमेशा उसका ध्यान रखेगी।

राधा उसका भी ध्यान अपनी माँ की तरह ही तो रखती है फिर तकलीफ़ क्या है?

आज राधा जब वहाँ से लौटी तो सितारा ने कहा, "बेटा तुम . . . "

वह वाक्य पूरा करें उससे पहले ही राधा ने घबराते हुए कहा, "मम्मी माँ की तबीयत ख़राब है इसलिए देर हो गई, सॉरी मम्मी।" 

"अरे राधा सॉरी क्यों कह रही है, यदि तबीयत खराब है तो ख़्याल तो तुझे ही रखना पड़ेगा ना और कौन रखेगा उनका ख़्याल?  कल जब तू ऑफिस जाएगी तब मैं थोड़ी देर के लिए वहाँ मीरा के पास चली जाऊँगी। तू बिल्कुल चिंता मत करना और जब तक उनकी तबीयत खराब है, खाना दोनों समय यहीं से भिजवा देंगे।"

राधा आश्चर्यचकित रह गई। सितारा के मुँह से निकले ये शब्द उसके कानों में शीतल हवा का एहसास करा रहे थे। आज जब आकाश आया तो राधा ने उसे सब कुछ बताया। 

तब आकाश ने कहा, " राधा यह तो तुमने जो दोनों परिवारों के बीच संतुलन बनाकर रखा और मम्मी को इतना प्यार दिया यह उसी का परिणाम है कि मम्मी का हृदय परिवर्तन हो गया। तुमने यह सिद्ध कर दिया कि प्यार और धैर्य में कितनी शक्ति होती है," कहते हुए आकाश ने राधा को सीने से लगा लिया।

राधा ने कहा, "आकाश इसमें मुझे तुम्हारा भी तो भरपूर सहयोग मिला। तुमने हमेशा मम्मी को समझाने की कोशिश की और मेरा साथ दिया। लोग सच ही कहते हैं कि यदि पति साथ दे तो बड़ी से बड़ी समस्या भी हल हो सकती है।"

"हाँ राधा किंतु उसके लिए तुम्हारी तरह संतुलन बिठाना आना चाहिए ताकि सभी लोग ख़ुश रह सकें और तुमने यह करके दिखा दिया राधा। वह देखो मम्मी चप्पल पहन रही हैं शायद नीचे माँ के पास जा रही है उनकी तबीयत के हाल-चाल पूछने।"

इतने में राधा को आवाज़ आई, "राधा बेटा मैं मीरा के पास जा रही हूँ थोड़ी देर। उसकी तबीयत ख़राब है ना, मिलकर आती हूँ उसे अच्छा लगेगा।"  

"जी मम्मी," कहते हुए राधा एक बार फिर आकाश के सीने से लग गई।

  

रत्ना पांडे वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

समाप्त