Tuta Dil - 5 in Hindi Love Stories by Samriti books and stories PDF | टूटा दिल - भाग 5

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टूटा दिल - भाग 5

सिद्ध युविका की वजह से बहुत परेशान हो जाता है। तब विशाल उसे दिल्ली चलने के लिए कहता है।
आगे...
विशाल अपना सामान लेने अपने घर चला जाता है और सिद्ध को भी पेकिंग करने के लिए कहता है।
सिद्ध अपना समान बैग में रख रहा होता है तभी उसकी माँ आती है।
“सिद्ध....” माँ धीरे से कहती है।
“हम्म.... क्या हुआ...???” सिद्ध परेशान हो कर पूछता है।
“वो.... युविका आयी है...” माँ उसे बताती है।
“मुझे उससे नही मिलना है....”
“पर क्यूँ... तुम्हारी कोई लड़ायी हुई है क्या...???”
सिद्ध कुछ नही कहता.....
“ बता बेटा... मुझे नही बताएगा....??”
“माँ.... कुछ नही हुआ है... अभी बस मुझे दिल्ली के लिए निकलना है....”
सिद्ध ये बोल कर जल्दी से वहाँ से निकल जाता है।
दोनो दिल्ली पहुँच गए...
वहाँ उन्होंने कॉलेज के पास का एक कमरा किराए पर लिया। अभी 10-15 थे दाख़िले में। इतने दिन सिद्ध का फ़ोन बंद ही रहा।
उन दोनो का दाख़िला हो गया। सिद्ध अभी भी युविका की यादों में पागल था। कॉलेज जाने का दिन भी आ ही गया।
कॉलेज में....
अभी 9 बजने में 10 मिनट थे। दोनो क्लास की तरफ़ जाते है। क्लास में कोई नही था।
जैसे जैसे सब आ रहे थे वो एक दूसरे से बाते करते है।सब आपस में बातें कर रहे थे और सिद्ध दरवाज़े के पास खड़ा था। तभी एक लड़की वहाँ आती है।
लड़की (सिद्ध से) - माफ़ कीजिएगा... मेरा नाम कृतिका है।
कृतिका नाम सुनते ही सिद्ध को बहुत ग़ुस्सा आता है। जब तक वो लड़की कुछ और कहती, सिद्ध उसकी तरफ़ देखे बिना ही उसे धक्का दे देता है और वहाँ से चला जाता है।
पूरी क्लास हैरान हो जाती है।
विशाल भाग कर लड़की को उठाता है और सिद्ध के पीछे जाता है।
विशाल- सिद्ध... सिद्ध रुक तो... ये क्या पागलपन है...???उसे धक्का क्यूँ दिया???
सिद्ध- मुझे इस तरह के नामों से नफ़रत है।
विशाल उसे रोकता है और पूछता है- किस तरह के नामों से...???
सिद्ध- युविका.................
विशाल- तू पागल हो गया है................ वो बेचारी तो बस तुझसे कुछ पूछ रही थी। और तू उसे धक्का दे कर आ गया। वो भी सिर्फ़ इस लिए क्योंकि उसका नाम युविका से मिलता है।
सिद्ध- हाँ.......... क्योंकि मुझे उससे नफ़रत है और जो भी मुझे उसकी याद दिलाएगा मुझे उस सबसे नफ़रत है।
विशाल- बस कर यार.......... किसी का नाम मिलने से वो इंसान भी उस जैसा नही हो जाता और ये दिल्ली है...भूल जा उसे...और दूसरी चीज़ों पर ध्यान दे।
सिद्ध- हम्म...
विशाल- मैं क्लास में जा रहा हूँ। तुम भी रहे हो ???
सिद्ध- हम्म...
दोनो फिर क्लास में जाते है।
सिद्ध क्लास में दिमाग़ी तौर पर नही था। वो युविका के बारे में सोच रहा था।
क्लास ख़त्म हो जाती है।
सब क्लास से चले जाते है।
विशाल- क्या सोच रहे हो???
सिद्ध कुछ नही कहता।
विशाल सिद्ध को हिलाता है।
सिद्ध- हम्म...
विशाल- तुम ठीक हो???
सिद्ध- हम्म... चलो चलते है।
सिद्ध जैसे ही अपनी जगह से उठता है उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ती है।वो अपनी जगह पर बेठी हुई अपनी टाँग पर कुछ बाँध रही थी।
सिद्ध- अरे यार... उसे शायद चोट लगी है। चलो उसकी मदद करते है।
विशाल कुछ नही कहता।
सिद्ध उस लड़की के पास जाता है। वो लड़की पट्टी करने में लगी थी। उसके घुटने से बहुत ख़ून बह रहा था और वो सूट के ऊपर से ही कपड़ा बाँधने की कोशिश कर रही थी।
सिद्ध- ऐसे ये ठीक नही होगी। आपको डाक्टर के पास जाना चाहिए।
वो लड़की जैसे ही सिद्ध की तरफ़ देखती है तो एक दम से डर जाती है। वो जल्दी जल्दी अपना सारा सामान बैग में रखती है और वहाँ से जाने लगती है।
सिद्ध- सुनो। ऐसे आपको ज़्यादा तकलीफ़ होगी। प्लीज़ मेरी बात मान लो।
वो लड़की सिद्ध की बात पर ध्यान नही देती और जैसे ही एक क़दम रखती है अपनी चोट की वजह से गिरने लगती है पर सिद्ध उसे पकड़ लेता है।
सिद्ध का ध्यान उसकी आँखो की तरफ़ गया। उसकी आँखों में एक अजीब सा डर था।
सिद्ध आराम से उसे उसकी सीट पर बैठाता है पर तभी उसका हाथ उसकी बाज़ू पर लग जाता है तो वो दर्द से चिल्लाती है।
सिद्ध- मुझे माफ़ कर दो।


-स्मृति