Tej@Zindagi U turn - Tejraj Gehlot in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | Tej@ज़िंदगी यू टर्न- तेजराज गहलोत

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Tej@ज़िंदगी यू टर्न- तेजराज गहलोत


किसी भी देश..राज्य..संस्कृति अथवा अलग अलग इलाकों में बसने वाले वहाँ के बाशिंदों का जब भी आपस में किसी ना किसी बहाने से मेल मिलाप होता है तो यकीनन एक का दूसरे पर कुछ ना कुछ असर तो अवश्य ही पड़ता है। उदाहरण के तौर पर 1980-81 से पहले विरले लोग ही भारत में नूडल्स के बारे में जानते थे लेकिन उसके बाद मैग्गी के चीन से चल कर हमारे यहाँ के बाज़ारों में आने के बाद अब हालत ये है कि हर दूसरी तीसरी गली में नूडल्स बनाने और बेचने वाले मिल जाएँगे। और नूडल्स भी एक तरह की नहीं बल्कि अनेक तरह की। कोई उसमें पनीर के साथ अन्य देसी मसालों का विलय कर उसे पंजाबी टच दे देता तो कोई किसी अन्य जगह का।

यही हालत थोड़ी कम बेसी कर के मोमोज़ की भी है। उन बेचारों को तो ये तक नहीं पता कि कब वे खौलते तेल की कढ़ाही में तल दिए गए या फिर धधकते तंदूर में तप कर फ्राइड अथवा तंदूरी मोमोज़ में बदल गए। इनकी बात तो खैर छोड़िए..अपने देसी समोसे को ही ले लीजिए। उसे तो ये तक नहीं पता कि कब उसमें से आलुओं को बेदखल कर उनमें चाऊमीन.. पास्ता या फिर कढ़ाही पनीर जैसी किसी अन्य आईटम का विलय कर उसे पूरा देसी टच दे दिया गया।

मैग्गी..मोमोज़ और समोसों की तरह का ही कुछ शौक लेखक तेजराज गहलोत भी रखते हैं। पता ही नहीं चलता कि कब वे अच्छी भली हिंदी में लिखते हुए अचानक गुगली के तौर पर उसमें अँग्रेज़ी के शब्दों का टप्पा खिला ऐसा कुछ मनमोहक रच देते हैं कि सामने वाला बस विस्मित हो देखता..मुस्कुराता रह जाता है।

दोस्तों..आज मैं हाल ही में उनकी आयी एक हिंदी..अँग्रेज़ी और राजस्थानी मिश्रित किताब 'Tej@ज़िन्दगी यू टर्न' के बारे में बात करने जा रहा हूँ जिसमें उन्होंने हलकी फुलकी फ्लर्टिंग से ले कर पति-पत्नी के बीच की आपसी नोकझोंक और तत्कालीन राजनीतिक मुद्दों पर अपनी कलम चलाई है। यहाँ तक कि इस मामले में उन्होंने बतौर लेखक/कवि के खुद को भी नहीं बख्शा है। उनके लेखन की एक बानगी के तौर पर देखिए..

** " उसके दिल से बाहर निकलना था मुझे,
तभी Announcement हुआ..'दरवाज़े बायीं तरफ खुलेंगे'

** " कुछ लोग Outstanding होते हैं,
इसलिए हमेशा हर एक के दिल के बाहर ही खड़े मिलते हैं.... अंदर नहीं जा पाते।"

** " सैकड़ों महिलाओं की आवाज़ बनना था उसे,
फिर यूँ हुआ है एक दिन कि वह एक डबिंग आर्टिस्ट बन गई।"

** " उसने कहा तुम जो यहाँ वहाँ बहुत फिरते रहते हो/ दायरे में रहा करो/ तब से ही मैं उसकी आँखों के Dark Circle में कैद हूँ"

** " किसी ने कहा था एक दिन तुम भी पहाड़ बना सकते हो/ मैं बस उसी दिन से राई राई जोड़ रहा हूँ"

** "मन पर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रहे वज़न को एक ही झटके में कम करके वह इन दिनों Doubles से Single हो गयी है।"

** "उन दोनों ने एक दूसरे से अपना दिल Exchange किया और फिर कुछ दिनों में ही दोनों का हृदय परिवर्तन हो गया"

** "ज़रूरत यहाँ सब को सिर्फ़ कांधे की थी/ पर लोग दिल भी थमाने की ताक में रहे"

** "Signal नहीं मिल रहे हैं कुछ दिनों से/ लगता है तुमने अब Coverage क्षेत्र से बाहर कर रखा है मुझे"

** "देश की सारी समस्याओं को/ एक ही झटके में देशभक्ति खा गयी/ लो 15 अगस्त आ गयी"

** "सुनो...कोई कब से तुम्हें आवाज़ दे रहा है/ चलो अब बाहर निकल भी आओ तुम / उसके ख्यालों से"

** "कुछ दिन पहले तक हम दोनों में खूब प्यार भरी बातें होती थी...पर फिर चुनाव आ गए"

** "बात Eye To Eye से बेवफाई तक पहुँची और फिर उस दिन से दोनों ने काले चश्मे लगा लिए"

** 'यह वक्त सिर्फ क्रीज पर खड़े रहकर Dot Ball निकालने और जितने Extra Run मिल रहे हैं उन्हें बटोर कर खुश रहने का है.... विकेट बचा रहा तो रन बनाने का अवसर भी आएगा ही"

(संदर्भ: कोरोना काल)

** मोदी जी- ' जो जहाँ है वहीं रहे'
बस इतना कहना था कि तब से ही मैं उसके दिल में ही हूँ'

** 'Pass होने वाले के पास Option कम और Fail होने वाले के पास Option ज्यादा होते हैं चाहे जिंदगी की परीक्षा हो या प्रेम की'

** वह- 'Doctor क्या आया Reports में'
Doctor- 'ब्लॉकेज है तुम्हारे Heart में'

यह सुनते ही उसने उसी वक्त दिल से मुझे निकाला और Doctor से कहा- 'Doctor साहब आप एक बार फिर से सारी जांच दोबारा लिख दीजिए'

अंत में चलते चले एक छोटा सा सुझाव:

पेज नंबर 43 पर लिखा दिखाई दिया कि..

"वह Cinemascope में Scope ढूँढ रही थी और मैं Boxoffice में Office"

यहाँ अगर 'Boxoffice में Office' की जगह 'Boxoffice में Box' लिखा जाता तो यह कोटेशन मेरे हिसाब से थोड़ा शरारती और ज़्यादा मारक बन जाता।

• Box: सिनेमा घर में फ़िल्म देखने के लिए अलग से बना हुआ केबिन।


दो चार जगहों पर वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त जायज़ जगहों पर नुक्तों का प्रयोग ना किया जाना थोड़ा खला।

जगह जगह मुस्कुराने और गुदगुदाने के पल देती इस पैसा वसूल मनमोहक किताब के 120 पृष्ठीय पैपरबैक संस्करण को छापा है इंक पब्लिकेशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 160/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए लेखक एवं प्रकाशक को बहुत बहुत शुभकामनाएं।