Santulan - Part 6 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | संतुलन - भाग ६

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संतुलन - भाग ६

आकाश के मुँह से राधा की तरफ़दारी की बात सुनकर उसकी माँ सितारा ने कहा, "आकाश यह तो ग़लत बात है तू समझ क्यों नहीं रहा; इसका मतलब तो ये हुआ कि वह अपना वेतन भी उन्हें दिया करेगी। हमें डॉक्टर लड़की ढूँढने का क्या फायदा होगा फिर?  मना कर देते हैं अभी तो सगाई भी नहीं हुई है। अच्छा है पहले ही पता चल गया वरना . . . "   

"अरे नहीं मम्मी आप ग़लत सोच रही हो। मुझे तो वह लड़की काफी सुलझी हुई लगी और उसका अपने माँ-बाप का ख़्याल रखना भी मुझे बुरा नहीं लगा। आप ही सोचो यदि मैं लड़का नहीं लड़की होता और शादी करके चला जाता, आप दोनों का ख़्याल भी नहीं रखता तब आपको कैसा लगता?"

आकाश के लाख समझाने के बाद भी सितारा को यह बात हजम नहीं हुई लेकिन उसके आगे सितारा की एक ना चल पाई। इस बात को स्वीकार करने के लिए सितारा का मन मान ही नहीं रहा था।

आकाश के साथ बात ना बनने के बाद रात को सितारा ने विशाल से कहा, "अजी सुनते हो, राधा ने तो हमारी बिल्डिंग में उसके माँ-बाप के लिए एक फ़्लैट ले लिया है। उसने हमसे या आकाश से पूछा तक नहीं, अरे बताया तक नहीं। कल उसका वास्तु पूजन है, हमें भी बुलाया है। हमारी छाती पर ही लाकर बिठा दिया उसने तो अपने मां-बाप को। मैंने तो आकाश से कह दिया रिश्ते के लिए मना कर देते हैं पर वह मान ही नहीं रहा है। अब तुम्हीं समझाओ उसे।"

"अरे सितारा अभी कौन सा रिश्ता पक्का हो गया है जो वह हमसे पूछेगी?"

"पर विशाल हो सकता है वह अपना वेतन भी उधर ही दे दे?"

"तो ठीक है मना कर दो, बाद में घर में कलह हो उससे अच्छा पहले ही सब फाइनल हो जाना चाहिए।"

आकाश ने यह सारी बातें सुन ली और कहा, "पापा शादी तो मैं राधा से ही करुँगा।" 

सितारा ने बीच में ही टोकते हुए कहा, "आकाश तू पागल हो गया है क्या? कहीं तू प्यार व्यार के चक्कर में . . . "

"अरे मम्मी वह ग़लत क्या कर रही है। अपने माँ-बाप का ख़्याल ही तो रखना चाह रही है। वह नहीं करेगी तो और कौन करेगा, इकलौती संतान है वह उनकी।"

सितारा चुप हो गई क्योंकि उसके पास और कोई चारा भी तो नहीं था। वास्तु पूजा में सभी इकट्ठे हुए और उसी शुभ मुहूर्त पर दोनों का रिश्ता भी पक्का हो गया।

विनय और मीरा तो बहुत ख़ुश थे लेकिन सितारा का मन अनमना सा था। उसे देख कर विशाल भी बहुत ज़्यादा ख़ुश नहीं था लेकिन हाँ आकाश बहुत ख़ुश था। अब राधा और आकाश का मिलना जुलना भी बहुत बढ़ गया। 

एक दिन राधा ने कहा, "आकाश हम सादगी के साथ यह शादी करेंगे, ज्यादा धूमधाम नहीं करेंगे।" 

"मैं भी यही चाहता हूँ राधा, वही पैसा बचेगा तो हमारे दूसरे काम आएगा।"

दोनों परिवारों में विवाह की तैयारियाँ शुरू हो गईं। दोनों ही परिवारों से ख़ास नज़दीकी रिश्तेदारों और दोस्तों को ही शादी में बुलाया गया था।

मीरा और विनय ने घर का कुछ समान राधा को देने के लिए खरीदा था। राधा ने विनय से कहा, "पापा आकाश ने कहा है कि उन्हें कुछ भी नहीं चाहिए फिर आप क्यों यह ख़र्च कर रहे हैं?" 

"राधा बेटा तुम्हें खाली हाथ ससुराल भेजना अच्छा लगेगा क्या?"

"पापा आपने डॉक्टर बना दिया है मुझे फिर और क्या चाहिए?"

"नहीं बेटा थोड़ा बहुत जितना भी बन पड़े उतना करने दो। मना मत करना वरना मुझे दुःख होगा।"

"ठीक है पापा पर कुछ ज्यादा ख़र्च नहीं करना।"

उसके बाद अत्यंत ही सादगी के साथ राधा और आकाश का विवाह संपन्न हो गया। 

 

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः