Santulan - Part 4 in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | संतुलन - भाग ४

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संतुलन - भाग ४

राधा का इस तरह शादी से इंकार करने पर विनय ने उसे समझाते हुए कहा, “राधा तुम्हें मैंने बचपन से हर काम में, हर चीज में संतुलन करना सिखाया है. बस उसी फॉर्मूले को यहाँ भी अपनाना फिर देखना कभी दिक्कत नहीं आएगी। सोचो बेटा आज यदि मेरे साथ तुम्हारी माँ ना होती तो कैसा होता मेरा जीवन? अकेला, वीरान, सुनसान, जीवन साथी तो होना ही चाहिए। बिना पतवार के नाव नहीं चलती बेटा। एक दूसरे का सहारा, जो अंतिम समय तक वृद्धावस्था तक हमें साथ दे; वह पति पत्नी का रिश्ता ही होता है। " 

"लेकिन पापा . . . "

राधा कुछ कह सके उससे पहले मीरा ने बीच में उसे टोकते हुए कहा, "अब कुछ मत कहना राधा। इस बारे में तुम्हारे पापा ने तुम्हें जो समझाया, वही जीवन का सत्य है और हम उससे अलग नहीं जा सकते। हमारे बुढ़ापे को संवारने में तुम्हारे जीवन का जवानी वाला हिस्सा तो कट भी जाएगा लेकिन उसके बाद तुम्हारे बुढ़ापे का क्या होगा? हम दोनों हमेशा तो तुम्हारे साथ नहीं रहेंगे ना तब अकेलापन तुम्हें खा जाएगा। इसलिए ऐसा अब कभी सोचना भी मत कि शादी नहीं करुँगी। "

राधा दोनों की दलीलें सुनकर चुप हो गई और कुछ सोच कर बोली, " ठीक है जैसी आप दोनों की मर्जी लेकिन शादी में मेरी भी एक शर्त होगी।"

"कैसी शर्त?"

"पापा यही कि मैं मेरे माता पिता का हमेशा ध्यान रखूँगी और जो मेरी इस शर्त को मानेगा उसी से मैं विवाह करुँगी।"

"ऐसा नहीं होता राधा . . . "

"बस पापा अब आप शांत हो जाइए। एक बात मैंने आपकी मान ली, अब एक आपको भी मेरी माननी होगी।"

धीरे-धीरे 3 वर्ष बीत गए। इस बीच विनय लड़का ढूँढ़ता ही रहता था। उसे एक लड़का पसंद आ गया आकाश। छोटा सा परिवार था, इकलौता बेटा था। आकाश की तस्वीर दिखा कर विनय ने राधा को आकाश व उसके परिवार के विषय में सब बताया और कहा, " मुझे तो यह लड़का बहुत पसंद है, अब तुम बताओ तुम्हें कैसा लगा?"

"पापा बात पक्की करने से पहले मैं उससे मिलना चाहती हूँ।"

"हाँ बिल्कुल ठीक है, वो लोग भी यही चाहते हैं कि तुम दोनों मिल लो। आपस में एक दूसरे के विचार जान लो।"

"ठीक है पापा"

विनय ने दूसरे ही दिन आकाश के परिवार को अपने घर खाने पर बुला लिया। आकाश के पिता ने कुछ देर साथ बैठने के बाद आकाश को कहा, "आकाश तुम राधा के साथ कुछ देर बाहर घूमने चले जाओ ताकि तुम कुछ वक़्त साथ में गुज़ार कर कम से कम एक दूसरे के बारे में कुछ तो जान पाओ।" 

"ठीक है पापा,” कहकर आकाश उठ कर खड़ा हो गया और राधा की तरफ देखते हुए बोला, "चलो राधा।" 

राधा ने अपने पापा की तरफ़ जैसे ही देखा उन्होंने आँखों ही आँखों में उसे अनुमति दे दी। राधा तुरंत ही उठ कर खड़ी हो गई और वे दोनों कैफ़े हाउस में कॉफी पीने चले गए।

वहाँ बैठ कर दोनों ने काफी वक़्त साथ में गुज़ारा और अपने तथा अपने परिवार के बारे में एक दूसरे को बताया। फिर राधा ने कहा, "आकाश मैं तुमसे कुछ और कहना चाहती हूँ।" 

"हाँ बोलो राधा, हम खुल कर बात करने के लिए ही तो यहाँ आए हैं।"

"आकाश मैं एक गरीब परिवार की लड़की हूँ। माँ पापा की इकलौती बेटी। उन्होंने अपना खून पसीना बहाकर, ख़ूब मेहनत करके मुझे डॉक्टर बनाया है तो अब मेरी भी ज़िम्मेदारी है कि मैं उनके बुढ़ापे में उन्हें एकदम अकेला ना छोडूं। आकाश मुझे तन मन और धन से उनका हमेशा ख़्याल रखना होगा।"

राधा ख़ूबसूरत थी, डॉक्टर थी, स्वभाव की भी आकाश को अच्छी लग रही थी।

आकाश ने कहा, "ठीक है राधा यह तो तुम्हारा कर्त्तव्य है। तुम्हें उनका ख़्याल तो रखना ही चाहिए, इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है।" 

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः