Mamta ki Pariksha - 26 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | ममता की परीक्षा - 26

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ममता की परीक्षा - 26



बसंती कुछ देर तक चुल्हे के नजदीक बैठी रही। कुछ देर बाद चुल्हे पर रखी सब्जी के पक जाने का इत्मीनान होने के बाद उसे उतारकर चुल्हे के नजदीक ही रख दिया और फिर बाहर आ गई।

यूँ तो वह अक्सर अपनी माँ के साथ ही दिशा शौच के लिए खेतों में जाती थी लेकिन आज वह अकेली रह गई थी। सब्जी पकाने की उसकी जिम्मेदारी के चलते न चाहते हुए भी उसे रुकना पड़ा था। उसकी माँ को गए दस मिनट से अधिक हो चुके थे। माथे पर छलक आये पसीने को अपने दुपट्टे से पोंछते हुए उसने धीमे से मुख्य दरवाजा भेड़ दीया और बाहर की तरफ निकल गई।

बाहर बरामदे में एक टिमटिमाता दीया अकेले ही अमावस की रात से मुकाबला कर रहा था। बिरजू घर के सामने खटिये पर लेटा भोजन करने के लिए बुलाये जाने का इंतजार कर रहा था। चौधरी रामलाल गाँव के ही कुछ लोगों के साथ बैठे राजनीतिक बातें कर देश के हालात पर विचार विमर्श कर रहे थे।

बसंती का रुख गांव के बाहर सड़क किनारे बने उस छोटे से पोखर की तरफ था जिसके तीनों तरफ गन्ने की खेती लहलहा रही थी। हालाँकि वह पोखर गांव से थोड़ी दूर था लेकिन बसंती वहीँ जाना पसंद करती थी। इसके पीछे दो वजहें थीं। पहली तो ये कि उस पोखर में हमेशा पर्याप्त पानी उपलब्ध रहने की वजह से उसे शौच के लिए घर से लोटा लेकर नहीं निकलना पड़ता था, और दूसरे गाँव से दूर होने की वजह से उस तरफ किसी का आना जाना भी नहीं होता था। अक्सर माँ व गांव की अन्य महिलाओं के साथ तो उसे वहीँ गांव के नजदीक ही खेतों में जाना होता था लेकिन आज वह इसी बहाने घने अँधेरे में भी लहलहाते खेतों का आनंद लेते हुए पोखर के करीब ही पहुँच गई।

शौच आदि से निवृत होकर वह पोखर के पानी में अपने हाथ में मिट्टी लगाकर रगड़ रगड़ कर धो ही रही थी कि तभी किसी कार के हेडलाईट की तेज रोशनी से उसकी आँखें चौंधियां उठीं, और फिर कार धीरे धीरे पोखर से आगे की तरफ बढ़ गई।
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कोठी से निकलकर गोपाल और साधना कुछ देर तक ख़ामोशी से सड़क पर चलते रहे। साथ चलती हुई साधना गोपाल के चेहरे का ही निरीक्षण कर रही थी जिसके चेहरे पर गम और गुस्से की परछाई स्पष्ट नजर आ रही थी। अपनी वजह से माँ बेटे के बीच हुए वादविवाद से वह स्वयं भी खासी परेशान थी। इतनी बहस करने की बजाय उन्होंने सीधे ही उसे नापसंद कर दिया होता तो बेहतर होता। वह इतनी आहत नहीं महसूस करती। अब आगे क्या होगा ? वह कुछ सोच नहीं पा रही थी बस उसके पीछे पीछे चलती जा रही थी। उसे यह भी तो पता नहीं था कि वह कहाँ जा रही थी।

कुछ ही देर बाद गोपाल एक आलीशान बंगले के हॉल में बैठा हुआ था। यह बंगला जमनादास का था जो कि उसके बंगले से कुछ ही दूरी पर था। जमनादास की माताजी भी उनके साथ ही बैठी हुई थीं।

गोपाल ने पूरी बात जमनादास को बताई। पूरी बात सुनकर वह भी चिंतित नजर आने लगा लेकिन उसकी माँ पूरी बात सुनकर बहुत नाराज दिख रही थीं। पहले तो उन्होंने गोपाल को समझाने का भरपूर प्रयास किया , लेकिन गोपाल द्वारा अपनी बात पर अडिग रहने की बात सुनकर वह बिफर पड़ी, "आजकल के लड़कों को तो माँ बाप की कोई परवाह ही नहीं है। बस चार दिन किसी लड़की से जानपहचान हुई नहीं कि माँ बाप का पूरा अहसान ही भुला देते हैं। क्या इसीलिये माँ बाप अपने कलेजे के टुकड़े की तरह बच्चों का ध्यान रखते हैं ? उन्हें हर वो चीज देते हैं जो उनके बस में होता है। उनकी अच्छी नींद के लिए अपनी रातों की नींद हराम कर देते हैं ! पता नहीं बच्चे कब समझेंगे ?"

इस बहस के दौरान साधना ख़ामोशी से सिर झुकाये बैठी रही थी लेकिन अचानक उसे न जाने क्या सूझा, कि वह बीच में ही बोल पड़ी ," माँ जी ! सही कहा आपने ! ये आजकल के बच्चे वाकई गलत हैं जिन्हें माँ बाप की परवाह नहीं है, लेकिन क्या इसीलिये माँ बाप अपने बच्चों की बेहतर परवरिश करते हैं कि बड़े होने पर सूद समेत वसूल कर लिया जायेगा ? दहेज़ की मंडी में ऊँची कीमत पर लडके को बेचा जायेगा ? उसे अपना एक जरखरीद गुलाम जैसा समझा जायेगा ? जो काम खुद नहीं कर सके वही काम अपने बेटे से पूरा करवाने के लिए कई बार उनके बचपन उनके भावनाओं की बलि चढ़ा देने से भी नहीं चूकते हैं कुछ माँ बाप ! क्या यह भी सही है ? क्या बच्चों की अपनी कोई मर्जी नहीं हो सकती ? क्या उनके पास दिल , दिमाग और भावनाएं नहीं होतीं ? होती हैं माँ जी ! सब होती हैं। बच्चों में अपने माँ बाप के प्रति सम्मान बहुत होता है लेकिन माँ बाप को भी तो चाहिए कि वो अपना सम्मान अपने आचरण से बनाये रखें। अगर गोपाल को अपने माँ बाप के सम्मान की चिंता नहीं होती तो फिर वह मुझे यहाँ उनसे मिलवाने लाता ही क्यों ? उनके इजाजत की आवश्यकता ही क्यों होती ? लेकिन कभी कभी माँ बाप को भी अपनी संतानों के सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। उनकी बातों पर गौर करना चाहिए। बेशक यदि वो गलत हैं या बेवकूफी कर रहे हैं तो उनसे सख्ती से भी निबटना चाहिए लेकिन यहाँ गोपाल की क्या गलती है ? यही न कि वह दहेज़ की मंडी में बिकने को तैयार नहीं है ? क्या उसे अपनी जिंदगी का फैसला करने का कोई अधिकार नहीं ? उसकी कोई मर्जी नहीं ? क्या इसीलिये वह माँ बाप के प्रति लापरवाह हो गया ? नहीं माँ जी ! माफ़ कीजियेगा ! कम से कम मैं ऐसा नहीं समझती ! पूछा तो अभी मैंने भी नहीं है अपने बाबूजी से लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि वह हर हाल में अपनी बेटी की इच्छा का सम्मान करेंगे। उन्हें भरोसा है मुझ पर खुद से भी ज्यादा और शायद यकीन भी कि मैं उनकी दी गई आजादी का अनुचित फायदा नहीं उठाउंगी। रिश्ते अनुबंध से नहीं माँ जी रिश्ते एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने से कायम रहते हैं। "
कुछ पल रुककर वह गोपाल से मुखातिब होते हुए बोली ," गोपाल जी ! मुझे लगता है आपको अपनी माँ की इच्छा का सम्मान करना चाहिए और अपने घर लौट जाना चाहिए। मैं चलती हूँ ! " कहकर साधना जाने के लिए उठी ही थी कि तभी गोपाल ने उसकी कलाई पकड़ते हुए कहा ," नहीं साधना ! तुम अकेले नहीं जाओगी ! मैं भी चलूंगा तुम्हारे साथ ! अपनी माँ द्वारा ठुकराए जाने के बाद सोचा था कि दोस्त की माँ जिसे मैं अपनी माँ से भी ज्यादा प्यार करता हूँ मुझे उनका आशीर्वाद मिलेगा। इसीलिये यहाँ आया था लेकिन मुझे क्या पता था कि मुझे यहाँ भी आशीर्वाद के नाम पर सिर्फ नसीहत ही मिलेगी। तुमने ठीक कहा और मुझे भी यकीन है कि तुम्हारे बाबूजी हमें अवश्य आशीर्वाद देंगे। वो भी तो हमारे माँ बाप ही हैं न फिर क्या फर्क पड़ता है कि हमें इनका आशीर्वाद नहीं मिला ? चलो साधना ! " कहते हुए गोपाल जमनादास की तरफ लपका और उससे हाथ मिलाते हुए बोला ," तू तो गले लगकर हमें बधाई दे दे यार ! "
बड़ा ही भावुक दृश्य उपस्थित हो गया था। जमनादास के गले लगकर गोपाल साधना के साथ कोठी से बाहर आ गया। साधना जमनादास की माँ के चरण स्पर्श करना नहीं भूली थी।

क्रमशः