“विचार व्यक्तित्त्व की जननी है, जो आप सोचते हैं बन जाते हैं”-- स्वामी विवेकानन्द..
आध्यात्मिक जीवन एक ऐसी नाव है जो ईश्वरीय ज्ञान से भरी होती है,यह नाव जीवन के उत्थान एवं पतन के थपेड़ों से हिलेगी-डोलेगी, पर डूबेगी नहीं, यह अवश्य हमें किनारे पर लगाएगी, हम खाली हाथ इस दुनिया में आते हैं और खाली हाथ इस दुनिया से चले जाते हैं इसलिए मनुष्य को समझने का प्रयत्न करना चाहिए कि उसका यहाँ कुछ भी नहीं है,सारी दृश्य और अदृश्य वस्तुएं क्षण भर की हैं यहाँ कुछ भी सदैव के लिए नहीं है,ये सब तो क्षणभंगुर है,हमारी आँखों का छलावा है जिसकी भीतरी सच्चाई हम जान नहीं पाते,जिस समय हमारी इस धरती पर उपयोगिता समाप्त हो जाती है तो उसी समय हम इस संसार से मुक्त हो जाते हैं, बिना कर्मो के जीवों की आत्मा शुद्ध नहीं होती इसलिए हमें सदैव अच्छे कर्म करते रहने चाहिए,
मनुष्य अगर जीवन की सार्थकता में विश्वास रखता है तो उसका आध्यात्मिक होना अति आवश्यक है, जीवन का विश्लेषण करें और उसका आनंद लेते रहें, पेड़ पर फल का लगना पूरी प्रक्रिया का हिस्सा है,इसलिए मानसिक संतुष्टि से इस वृक्ष रूपी जीवन का अन्त तक आनंद लें, आध्यात्मिकता जीवन भी जीवन के अन्त में आने वाला हिस्सा है,जिसका हमें मनोवैज्ञानिक तरीके से विश्लेषण करना चाहिए,एक पूर्ण मनुष्य जीवन को सिर्फ जानना और समझना ही नहीं चाहता है बल्कि वह उसका आनंद लेना चाहता है, सुखानुभूति में डूबे रहना चाहता है, जीवन जीना एक सामान्य कर्म है जो सभी करते हैं, जीवन की सार्थकता स्थापित करना आध्यात्मिकता है,आध्यात्मिकता एक प्रक्रिया है जिसके जरिए जीवन को अधिक सुघढ़ और सुसंगठित बनाया जा सकता है,
आध्यात्मिकता का किसी मत, धर्म, या संप्रदाय से कोई संबंध नहीं है, आप अपने अंदर से कैसे हैं, आपके भाव कैसे हैं ? आत्मसंस्कार कैसे हैं ? आध्यात्मिकता इसके बारे में बताती है, आध्यात्मिक होने का मतलब है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना, अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जानते हैं जो आपमें है, तो आप आध्यात्मिक हैं, अगर आपको बोध है कि आपके दुख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप खुद इनके निर्माता हैं, तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर है,
जैसे की हम सभी जानते है की अध्यात्म का बहुत ही महत्व है, पर हम में से शायद ही कोई गिने चुने लोग है जो इस विषय पर चर्चा करते है या जानते है,अक्सर लोग इन्ही बातों को नज़र अंदाज़ कर देते है क्यूँकि लोगों को लगता है की ये एक बस कल्पना शक्ति पर आधारित है और इन सब बातों को झूठा या बेकार की बात मानते है,पर ऐसा नहीं है दरअसल ये सब ग़लत है की ये एक कल्पना है,
अध्यात्मिकता हमारे सबके अंदर होती है बस इसे थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है जैसे की हर प्रकार से शुद्ध आचरण रखना, यहाँ शुद्ध आचरण मतलब हमारे दिनचर्या और आदतों के बारें मे बात कर रही हूँ. जब कोई भी इंसान खुद को अगर बदलना चाहे तो सबसे पहले उसे अपनी आदतों को बदलना ज़रूरी होता है.
अध्यात्म ज़िन्दगी जीने का एक तरीका है ,आप किसी भी संप्रदाय को मानते हो परन्तु दुनियां में मानव धर्म सर्वोपरि है , मानव अद्भुत प्राणि है जब से पैदा हुआ तब से मन में स्वयं को जानने की जिज्ञासा हुई की मै कौन हूं ये प्रकृति क्या है ? ये किसने उत्पन्न की ? प्रकृति के नियम क्या है ? क्या कोई शक्ति है जो इस सृष्टि का संचालन करती है ?
इन प्रश्नों का उत्तर पाने का मानव ने प्रयत्न किया तथा सृष्टि के रहस्यों को समझा व जाना ,मृत्यु क्या है ? क्या इस लोक से परे कोई ओर लोक है ? इस संसार को चलाने वाली शक्ति क्या है ? कैसे इस शक्ति को प्राप्त करके मानव अपने जीवन को आन्नदपूर्ण बना सकता है ?
इन प्रश्नों का उत्तर मानव ने प्राप्त किया तो उसने सोचा की अन्य लोगों को भी इस आन्नद के रहस्य को बताया जाए ताकि सभी मानव का जीवन सुखी तथा आन्नदपूर्ण बन सके।।
मन की प्रकृति ऐसी है कि वह हमेशा अधूरा ही महसूस करता है,चाहे अलग-अलग तरह की चीज़ों का संग्रह हो, ज्ञान का संग्रह हो या फिर अन्य लोगों को अपना बनाना हो,किसी न किसी तरह का संग्रह चलता ही रहता है,जैसा कि हम जानते हैं कि आध्यात्मिकता का अर्थ है मन से थोड़ी दूरी बनाना और रिक्त हो जाना,
जन्म, जरा और मृत्यु भौतिक शरीर को सताते हैं, आध्यात्मिक शरीर को नहीं, आध्यात्मिक शरीर के लिए जन्म, जरा और मृत्यु एक प्राकृतिक क्रिया है, जो ब्रह्मांड के लिए या विश्व के लिए नियति है,आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त व्यक्ति ईश्वरीय शक्ति संपन्न बन जाता है, शास्त्र में उल्लेख है, 'अहं ब्रह्मास्मि' अर्थात् मैं ही ब्रह्म हूँ,जीवन का ब्रह्म बोध ही भक्ति है,
आध्यात्मिक नजरिए से देखें तो सुख और दु:ख केवल विचार है, इनमें वास्तविकता जरा भी नहीं है,धन पैसा, परिवार, समाज, स्वास्थ्य, विलासिता की वस्तुएँ ये हमारे भौतिक जीवन की आवश्यकता मानी जाती है,परन्तु इससे सच्ची शान्ति, सच्चा सुख नहीं प्राप्त किया जा सकता है,सच्चा सुख तो मानव के आध्यात्मिक योग से ही संभव है,इसलिए हमें नई पीढ़ी की विचारधारा को आध्यात्मिकता की ओर मोड़ना चाहिए,तभी सभी का जीवन सार्थक होगा।।
समाप्त......
सरोज वर्मा.....