Jaadui Mann - 1 in Hindi Human Science by Captain Dharnidhar books and stories PDF | जादुई मन - 1

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जादुई मन - 1

लेखक परिचय – कैप्टन धरणीधर पारीक,
पुत्र श्री राधेश्याम पारीक जयपुर राजस्थान। धर्मगुरू भारतीय सेना (सेवा निवृत्त)
शिक्षा – संस्कृत व हिन्दी से शास्त्री शिक्षा शास्त्री (एमए बी एड) 🌹🌹🌹🌹🌹

विषय - चमत्कारी है मन

प्रस्तावना – शरीर की ताकत, मनकी ताकत, बुद्धि की ताकत, आत्मा की ताकत, ये चार प्रमुख ताकते (बल) है । इसके अलावा भी शक्तियां है । जैसे धन बल, अधिकार बल, छल
बल, संख्या बल, ये सारी ताकते आत्मा की ताकत के सामने नगण्य है ।
शरीर बल से श्रेष्ठ मनोबल है क्योंकि हाथी के पास शारीरिक बल होता है किन्तु शेर के पंजे की मार से भाग खड़ा होता है.. मनो बल को बुद्धि बल से नियंत्रित किया जा सकता है ।
और आत्मबल के सामने बुद्धि बल भी नतमस्तक हो जाता है ।
धन की ताकत – प्रायः देखा जाता है कि जिनके पास धन बल होता है वे लोग अपने धन के बल पर समाज मे अपना प्रभाव जमाने में कामयाब हो जाते है । कम पढे लिखे होकर भी समाज को प्रभावित करते देखे जाते है । समाज भी धनाढ्य लोगों को सार्वजनिक जीवन में सम्मान देता है । धन बल त्यागी असंग्रही के सामने प्रभाव हीन हो जाता है । अर्थात धन की चाह न रखने वाले के सामने बोना हो जाता है ।
अधिकार की ताकत – किसी पद पर आसीन व्यक्ति के पास प्रशासनिक अधिकार होने से वह भी प्रतिष्ठा पा लेता है ।
किंतु कर्तव्यपरायणता न हो तो प्रतिष्ठा की हानि होती है ।
संख्या बल भी एक बल है समान विचार वालो का संगठित बल राजतंत्र को प्रभावित करता है ।
छल बल भी बल है इससे भी लोग सफल होना मानते है । यह बल दुष्ट लोगों का बल होता है ।

छली को छल से ही जीतने की बात नीतिकारो ने कही है । अतः मन की शक्ति के बारे में हम बात करेंगे इसे कैसे विकसित किया जा सकता है । वे साधना जिनसे मन की बिखरी शक्ति को एकत्रित किया जा सकता है । अब प्रश्न हमारे दिमाग में यह हो सकता है कि मन की शक्ति
बिखरी है तो इकट्ठी कैसे हो ? हमें समझा ओ ।
आप एक बाधा दौड़ से समझ सकते है । जैसे दौड़ का आयोजन हो उसमें पांवों में वजन
बांध दे और कहे कि दौड़ो , तो स्वाभाविक
दौड़ असहज हो जायेगी । ठीक इसी तरह से हमारे चिंतन में अर्थात मन में कई झंझावात
होते है । घर को लेकर, कैरियर को लेकर,
किसी बीमारी को लेकर, दौड में जीत हार को लेकर, इन सबका भार मन पर होता है । इसे एकाग्रता का न होना कह सकते है । किन्तु इसके अतिरिक्त भी मन की ऊर्जा का व्यय होता रहता है । खाली समय में अलूल फलूल व्यर्थ में सोचते रहना । हमारा मन अकूत शक्ति का भंडार बन सकता है । हम एक उदाहरण से और अच्छी तरह से समझ सकते हैं । सूर्य की रश्मियों को एक आतसी (मैग्नीफाइन्ग ग्लास) शीशे के द्वारा कागज या रूई पर एक बिंदु बना कर गिराये तो आग उत्पन्न हो जायेगी । रूई या कागज जिस पर हम सूर्य की किरणों को डाल रहे हैं । ऐसे ही मन की बिखरी शक्ति को विशेष साधना के जरिये बलवान बनाया जा सकता है

क्रमशः -- मन की शक्ति को बढाकर चमत्कार किये जा सकते हैं उसकी चर्चा अगले अध्यायों में होगी