आज एक अपरिचित सज्जन ने लघुकथा संग्रह
पर अपने विचार भेजे ।उन के प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए हृदय से आभार
वह जो नहीं कहा...
स्नेह गोस्वामी
हर रोज महिलाओं को थप्पड़ों, लातों, पिटाई, अपमान, धमकियों, यौन शोषण और अनेक अन्य हिंसात्मक घटनाओं का सामना करना पड़ता है। इतिहास के पन्नें भी महिलाओं पर होने वाले जुल्मों सितम के दर्द को ब्यां करते है। आधुनिकता के इस दौर में भी महिलाओं पर जुल्म कुछ कम नहीं है। स्नेह गोस्वामी द्वारा कृत ''वह जो नहीं कहा..." लघुकथा संग्रह उन सब औरतों को समर्पित की गई है जो सारे सितम सह कर भी सुरक्षित हैं और जिंदा हैं।
स्नेह गोस्वामी ने अपनी लेखनी से महिलाओं की पीड़ा को ब्यां किया है। वह जो नहीं कहा...लघु कथा जहां स्त्री के मनो-मस्तिष्क में होने वाले द्वंद्व को चित्रित करती है वहीं अन्य लघु कथाओं ने वर्तमान विसंगतियों पर गहरी चोट की है। लघुकथा संग्रह में 55 लघुकथाएं अपने देश-काल के साथ पूर्ण समग्रता से उपस्थित हैं। मैं लेखिका की इस बात से पूर्णतया सहमत हूं कि कहानी पढऩे में जितना समय लगता है उसका चौथा हिस्सा उस पर चिंतन पर खर्च होता है जबकि लघुकथा पढऩे में मात्र कुछ सैकेंड लगते है पर चिंतन के लिए कम से कम चार गुणा समय चाहिए। पुस्तक का शीर्षक पाठक को सोचने पर मजबूर कर देता है। वह जो नहीं कहा...कहकर भी सब कुछ कह देता है। स्त्री स्वयं को अपने पति व परिवार के लिए पूरी तरह से समर्पित कर देती है। स्त्री पति की प्रभुसत्ता से त्रस्त होते हुए भी उसे चाहती है लेकिन भी भी पुरूष उसे अपनी ठोकर पर समझता है।
यह विडंबना है कि भारतीय समाज में जैसे-जैसे स्वतंत्रता और आधुनिकता का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे महिलाओं के प्रति संकीर्णता का भाव बढ़ा है। प्राचीन समाज ही नहीं आधुनिक समाज की दृष्टि में भी महिलाएं मात्र औरत हैं और उन्हें थोपी व गढ़ी-बुनी गयी तथाकथित नैतिकता की परिधि से बाहर नहीं आना चाहिए। हालांकि महिलाएं आज आत्मसम्मान तथा अपने अधिकारों के प्रति सजग है। वह पुरातन रूढिय़ों, मान्यताओं, आस्थाओं और अंधविश्वासों को आंख मूंद कर ढोना नहीं चाहती।
लघुकथा 'बेवकूफ' की दो पंक्तियां देखिए, जिसमें आज की युवा पीढ़ी की स्मार्टनेस दिखाई गई है लेकिन अपने अभिभावकों को बेवकूफ बनाने के लिए।
लड़का : ''यार मैं सुशील से शीला हो गया। पर एक बात है तुम स्मार्ट हो गई हो।"
लड़की : ''नहीं यार इन ग्वार लोगों को बेवकूफ बनाना क्या मुश्किल है। शीला के नाम से तुम्हारा नंबर सेव था इसलिए पापा की बोलती बंद हो गई।"
ग्रामीण आंचल को छोड़ लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे है लेकिन शहरों के फ्लैटों में सब तरह की सुविधाएं तो होती है लेकिन कोई ग्रामीण माहौल न होने से वहां लोग खुद को पिंजरे में कैद हुआ समझने लगते है और ऐसा ही कुछ लघुकथा पिंजरा में बताया गया है। और लघुकथा उठो नीलांजन में भी ऐसा ही कुछ दर्शाया गया है।
लघुकथा संग्रह की चाहत, नो प्रोब्लेम, ताजा हवा, चुपड़ी रोटियां, सपने, खुशियां लौट आई, मां की वापसी, रंग और गुण, बेबसी, रानी, नियति, दोस्ती, जीत हिंदी की, फुर्सत, खुशियों का पैगाम जैसी लघुकथाएं किसी का संर्घष दिखाती है तो कोई कथा प्रेरणा देती है। किसी कथा में गृहस्थी की कहानी छीपी है तो खुशियों का पैगाम जैसी लघुकथाएं पत्र-व्यवहार के पुराने तरीकों की महत्ता बताते है।
लेखिका ने मजबूती के साथ अपनी कलम चलाई है। प्रत्येक लघुकथा में कोई न कोई संदेश मिलता है। कोई लघुकथा चंद शब्दों में ही पूरी हो जाती है तो कोई लघुकथा विस्तृत रूप में है। हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू शब्दों के साथ-साथ देसी शब्द पॉपकॉर्न तरह खिलकर सामने आए है। भाषा सहज और सरल प्रवाह में है। इस वजह से भी लघु कथा संग्रह पाठक को अपने साथ जोडऩे में काफी हद तक सफल होती है। कथ्य, कला, भाषा, शिल्प एवं संवेदना की दृष्टि से लघुकथाएं समृद्ध है। हालांकि छोटी-मोटी कमियां है, लेकिन उनको नजर अंदाज करके पुस्तक की लघुकथाओं में निर्दिष्ट संदेशों पर चिंतन करने की जरूरत है।
वह जो नहीं कहा...में सामाजिक विडम्बनाएं, जीवन मूल्य व यथार्थ का बोध करवाती है। शीर्षक के साथ-साथ पुस्तक का कवर पेज भी बहुत खूबसूरत और आकर्षक है। मैं आभार व्यक्त करना चाहूंगा ''अभी बुरा समय नहीं आया है" के लेखक डॉ. राधेश्याम भारतीय जी का, जिनसे मुझे यह पुस्तक प्राप्त हुई और मुझे एक बेहतरीन कृति पढऩे को मिली। स्नेह गोस्वामी जी को इस बेहतरीन कृति एवं आने वाली रचनाओं के लिए शुभकानाएं।
तेजबीर धनखड़
घरौंडा।(हरियाणा)