Santulan - Part 3    in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | संतुलन - भाग ३   

Featured Books
Categories
Share

संतुलन - भाग ३   

राधा के मेडिकल में एडमिशन की ख़बर सुनते ही पूरे परिवार में ख़ुशी की फुहार बरस रही थी। विनय की माँ भी ख़ुशी के इस मौके पर परिवार के साथ थीं। आज मीरा को विनय की कही वह बात याद आ रही थी कि यदि बच्चे में दम है, मेहनती है तो किसी भी स्कूल में पढ़ कर डॉक्टर, इंजीनियर जो चाहे बन सकता है।

यह बात याद आते ही मीरा ने कहा, "विनय तुमने जो कहा था उसे सच करके दिखा दिया। हमारी राधा ने सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए भी हमारा सपना पूरा किया।"

"हाँ मीरा वह कहते हैं ना जहाँ चाह होती है, राह मिल ही जाती है। यदि हम सपने देखते हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए उनके पीछे भागना पड़ता है। हमारी राधा ने लम्बी छलांग लगाई है। यह सब इतना आसान नहीं था।"

राधा के मेडिकल में एडमिशन की तैयारी चल रही थी। उसे अपने ही शहर के कॉलेज में एडमिशन मिल गया था, जहाँ की फीस बहुत ज़्यादा थी लेकिन आज विनय की वर्षों से जमा की गई धन राशि काम आ रही थी। यह दूर दृष्टि से सोच समझ कर लिया गया फैसला ही था जिसके कारण विनय बिल्कुल तनाव मुक्त था। आज मीरा को विनय का सोच समझ कर कदम उठाने का महत्त्व समझ आ रहा था। वह जानती थी कि विनय के बिना यह कुछ भी संभव नहीं था।

देखते ही देखते मेडिकल की पढ़ाई भी उतने ही जोश में पूरी हो गई। उसके बाद राधा डॉक्टर बन गई और एक सरकारी अस्पताल में नौकरी करने लगी। घर में इस समय ख़ुशी अपनी चरम सीमा पर थी।

राधा ने अपनी पहली तनख़्वाह से विनय के लिए एक स्कूटर लिया और अपनी माँ मीरा के लिए एक सोने की चैन।

स्कूटर देखते से विनय ने कहा, " राधा यह क्या है बेटा, क्यों इतना सारा पैसा ख़र्च. . . "

अपने पापा के मुँह पर ऊँगली रखते हुए राधा ने कहा, " पापा यह मेरी पहली तनख़्वाह, मेरी, आपकी और माँ की मेहनत से ही तो आई है। अब आपको रोज़ इतनी दूर साइकिल से नहीं जाना पड़ेगा। बस आप पैसे की चिंता छोड़कर ख़ुश होइये ना पापा प्लीज़।"

उसके बाद मीरा और विनय दोनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। विनय ने मुस्कुराते हुए कहा, " बेटा राधा तुम हम दोनों के लिए इतनी बड़ी-बड़ी चीजें ले आईं, ख़ुद के लिए कुछ भी नहीं. . . "

"अरे पापा मुझे आज आपका और माँ का खिला हुआ चेहरा देखकर जो ख़ुशी मिल रही है ना उसके आगे और किसी भी चीज के मिलने से मुझे उतनी ख़ुशी नहीं होती। मुझे आज इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पापा जीवन भर, मेरे लिए साइकिल पर चलते रहे। आप चाहते तो स्कूटर खरीद सकते थे पर आपने नहीं लिया। आज अपने पापा को साइकिल से स्कूटर पर लाकर मेरे मन को बहुत सुकून मिल रहा है और माँ उन्होंने कभी भी कोई गहना नहीं खरीदा। आज तो पापा यह छोटी सी गिफ्ट है उसके बाद तो मैं... "

"बस-बस राधा अब और कुछ नहीं। " 

"मैं जानती हूँ, आप दोनों ख़ुद पर कुछ ख़र्च करना ही नहीं चाहते। कितनी काट-कसर करते हो पर अब मैं कमाने लगी हूँ। अब मैं आपको ऐसे नहीं रहने दूँगी।"

"राधा बेटा अभी एक ही मंज़िल तो तय हुई है दूसरी अभी भी बाकी है।"

"वह कौन सी पापा?"

"तुम्हारा विवाह राधा . . .  "

"नहीं पापा मुझे विवाह करके आपसे दूर नहीं जाना है। पता नहीं कैसे लोग हों? कैसा ससुराल हो? वह मुझे आप दोनों का ख़्याल नहीं रखने देंगे तो? मेरे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि मैं आपके बुढ़ापे में भी आपका ख़्याल रख सकूँ।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः