Santulan - Part 2   in Hindi Moral Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | संतुलन - भाग २  

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संतुलन - भाग २  

मीरा और विनय के स्वयं के लिए भले ही बड़े सपने ना हों लेकिन अपनी बेटी राधा के लिए वे बड़े-बड़े सपने देखते थे और उन सपनों को सच करने की कोशिश में दोनों ही लगे रहते थे। नाज़ो से पल रही राधा अपने घर की राजकुमारी थी। विनय की माँ राधा को छः माह का करके अपने गाँव वापस चली गईं। उन्हें जब भी राधा की याद आती वह बीच-बीच में उससे मिलने आती रहती थीं। विनय हमेशा राधा के लिए नए-नए डॉक्टर सेट लेकर आता था। राधा भी गुड़िया और दूसरे खिलौने छोड़कर डॉक्टर सेट से ही सबसे ज़्यादा खेलती थी, मानो उसे अपने पिता की इच्छा अभी से ही पता हो। राधा अपने पिता की तरह तेज़ दिमाग लेकर आई थी। नन्हीं राधा धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। देखते ही देखते उसे स्कूल भेजने का समय आ गया।

स्कूल में प्रवेश दिलाने के समय विनय ने मीरा से कहा, "मीरा मैं राधा को मेरे स्कूल में ही पढ़ाऊँगा।"

"यह क्या कह रहे हो तुम? सरकारी स्कूल में पढ़ाओगे उसे?  दिन रात मेहनत करके इतना पैसा इकट्ठा कर रहे हो, फिर क्यों. . .  "

"देखो मीरा यदि बच्चे में दम है, मेहनती है तो किसी भी स्कूल में पढ़ कर डॉक्टर, इंजीनियर जो चाहे बन सकता है। मैं तुम्हें यह सिद्ध करके भी दिखलाऊँगा। जहाँ तक रही पैसा कमाने की बात तो यह पैसा जब कॉलेज में उसका एडमिशन होगा तब काम आएगा। स्कूल में इतना ख़र्च करने की ज़रूरत नहीं है।"

"विनय शायद तुम ठीक ही कह रहे हो। तुम जो भी करोगे उसके भले के लिए ही होगा।"

विनय के साथ ही राधा भी स्कूल जाने लगी। माता-पिता की मेहनत रंग ला रही थी। राधा ख़ूब अच्छे से रुचि लेकर पढ़ाई करती और हमेशा अपनी क्लास में प्रथम आने लगी। समय की रफ़्तार तो बहुत ही तेज़ होती है। पता ही नहीं चला और राधा नौवीं कक्षा में आ गई।

नौवीं कक्षा में आते ही उसने पढ़ाई के साथ-साथ मेडिकल एंट्रैन्स परीक्षा की तैयारी भी शुरू कर दी। इस समय वह रात-रात भर जाग कर पढ़ाई कर रही थी। राधा की इतनी अधिक मेहनत देखकर विनय हमेशा उसे समझाता।

वह कहता, " राधा बेटा जीवन में संतुलन बहुत ज़रूरी है। यदि शरीर को हम इतना थका दें कि वह कमज़ोर हो जाए वह तो ग़लत होगा ना। अपने लक्ष्य पर पहुँचने से पहले थकना नहीं है। इसीलिए संतुलन करना सीखो। पढ़ाई के साथ ही साथ आराम करना भी ज़रूरी है, नींद भी ज़रूरी है।"

"ठीक है पापा मैं अब अपने हर काम में संतुलन रखने की कोशिश अवश्य ही करुँगी लेकिन पापा मैं मेरा और आप दोनों का यह सपना ज़रूर पूरा करुँगी। मैं पूरी कोशिश करुँगी और आपको डॉक्टर बनकर बहुत बड़ी ख़ुशी दूँगी।"

"राधा बेटा कोशिश करना हमारा काम है। सफलता मिली तो बहुत अच्छा यदि नहीं भी मिली तो और भी बहुत सारे रास्ते हैं। इसलिए हर रास्ते को खुला रखो। मेरी इच्छा के बोझ तले दबने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। मैं तो केवल इतना चाहता हूँ कि मेरी बेटी को दुनिया का हर सुख मिले। वह बहुत अच्छी इंसान बने, कभी कुछ ग़लत ना करे। सोच समझकर जीवन में आगे बढ़े।"

पढ़ाई के लिए रात-रात भर राधा और विनय साथ में जागते थे। मीरा बीच-बीच में चाय कॉफी बना कर उन्हें देती थी। विनय और मीरा ने कभी भी ख़ुद के लिए कुछ सोचा ही नहीं, कुछ चाहा ही नहीं। विनय ने अपनी शक्ति से ज़्यादा पुरी तन्मयता के साथ उसका साथ दिया। तन से भी, मन से भी और धन से भी। देखते-देखते वह समय भी आ गया। राधा ने मेडिकल एंट्रैन्स की परीक्षा दी और ख़ूब अच्छे नम्बरों के साथ पास भी हो गई। उसने अपने सरकारी स्कूल का नाम रौशन कर दिया और उसे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश भी मिल गया।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः