हिंदी फ़िल्म जगत का पिछले लगभग आठ दशक का इतिहास बताता है कि यहां एक टॉप पर पहुंचे हुए आर्टिस्ट का चोटी पर बने रहने का समय अनुमानतः तीन से पांच साल होता है।
ये अवधि कुछ विलक्षण अभिनेता या अभिनेत्रियों के मामले में इससे कुछ ज़्यादा भी हो सकती है, किन्तु प्रायः इतने समय बाद दर्शक उनका कोई तोड़ ढूंढने लगते हैं।
"नंबर एक" पर पहुंचने के बाद कलाकार अपने मन चाहे रोल्स, मुंहमांगा पारिश्रमिक और इच्छित प्रोजेक्ट्स की मांग, या कम से कम इच्छा करने लगता है। और इसके बाद उसे किसी दौड़ में नहीं माना जाता।
कंगना राणावत जबसे फ़िल्मों में आई हैं, उनके सरनेम को लेकर कुछ संदेह रहे, क्योंकि राजस्थान में राणावत एक लोकप्रिय और सम्मानजनक सरनेम है किन्तु वे कहती रहीं कि वे हिमाचल से हैं और वहां उनका सरनेम "रनोट" लिखा जाता है, तो यही माना जाना चाहिए।
कुछ नाम अंग्रेज़ी की वर्तनियों के कारण भी विवाद में आ जाते हैं, जैसे "पाटनी" एक लोकप्रिय सरनेम है किन्तु स्पेलिंग के कारण नई एक्ट्रेस दिशा को "पटानी" लिखा जा रहा है।
ख़ैर, अंग्रेज़ी के चलते राम को रामा और योग को योगा बनाने वाले देश में यह कोई बड़ी बात नहीं है।
कंगना रनोट ने अपने अभिनय का लोहा अपनी पहली हिंदी फ़िल्म "फ़ैशन" से ही मनवा लिया था।
कुछ फ़िल्मों में साधारण उपस्थिति दर्ज़ करवा लेने के बाद वंस अपॉन ए टाइम,सिमरन,शूट आउट एट वडाला, रंगून और तनु वेड्स मनु जैसी फ़िल्मों में कंगना को अनदेखा नहीं किया जा सकता था।
अपने गर्म स्वभाव और स्पष्ट नज़रिए के कारण भी वो विवादों में घिरी रही हैं।
ऋतिक रोशन जैसे कूल हीरो के साथ उनका पंगा शायद उनकी आने वाली फ़िल्म "पंगा" का दैवीय आगाज़ था।
फिल्मी दुनिया ने मद्रासी हीरोइनें और पंजाबी हीरो तो खूब देखे,पर जब हिमाचल की कंगना यहां हरियाणवी अभिनय भी ज़बरदस्त तरीक़े से करने लगीं तो दर्शकों को आनंद भी आया और उनकी उम्मीदें भी जगीं।
गैंगस्टर, कृष 3, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स की कंगना देखते - देखते फ़िल्म जगत की "क्वीन" बन गई।
चर्चा गरम हो गई कि दीपिका के शादी कर लेने के बाद "नंबर वन" का ताज जल्दी ही कंगना का होने जा रहा है। ये भी सच है कि दर्शक शादीशुदा हीरोइनों को अपने कल्पनालोक की सिरमौर नहीं बनाते। वे अभिनय की तारीफ तो किसी के भी करते रह सकते हैं, पर अपनी स्वप्न सुंदरी उन्हें बैचलर ही चाहिए। और 'नंबर वन' एक्ट्रेस तो करोड़ों देखने वालों की स्वप्न सुंदरी होती है।
मणि कर्णिका और जजमेंटल है क्या जैसी फ़िल्में कंगना रनोट को इसी राह पर आगे बढ़ाती हैं।
ये भी एक सच है कि बिना कड़ी स्पर्धा के कोई हीरोइन टॉप पर नहीं पहुंचती।
कंगना को भी चुनौतियां मिली हैं।
सोनाक्षी सिन्हा कभी साधारण, तो कभी बड़ी दबंग कामयाबी के साथ उनके रास्ते में आती रही हैं। पर खानदानी शफाखना किसी रोग को दूर नहीं करता।
जैकलीन फर्नांडिस ने ज़रूर अपने नाम कुछ बड़ी सफलताएं लिख रखी हैं। श्रीलंकाई मूल की ये सुंदरी मिस लंका भी रही है। जाने कहां से आई है, ढिशूम, बागी, हाउसफुल ,अलादीन, मर्डर, जुड़वां, रेस से होता हुआ उनका ग्राफ "किक" तक पहुंचते- पहुंचते उन्हें एक बड़ी संभावना शील अभिनेत्री की तरह स्थापित करता है।
लेकिन कंगना को शायद सबसे धारदार चुनौती परिणीति चोपड़ा से मिली है। शुरू में तो परिणीति के साथ प्रियंका चोपड़ा की बहन होने का परिचय ही जुड़ा रहा लेकिन शुद्ध देसी रोमांस, हंसी तो फंसी, इश्क़ जादे, गोलमाल अगेन, नमस्ते इंग्लैंड,केसरी और जबरिया जोड़ी तक आते आते उन्हें गंभीरता से लिया जाने लगा।
ऐसा लगा जैसे कृति सेनन, अदिति राव हैदरी,या श्रुति हासन को भी कंगना का जवाब फ़िलहाल नहीं माना जा सकता।
कंगना रनोट इस दौर की शिखर अभिनेत्री बनीं और उन्हें नरगिस, मधुबाला, मीना कुमारी,वैजयंती माला, साधना, शर्मिला टैगोर, हेमा मालिनी, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, काजोल,ऐश्वर्या राय बच्चन,
रानी मुखर्जी, प्रियंका चोपड़ा, विद्या बालन, कैटरीना कैफ, दीपिका पादुकोण के साथ हिंदी फ़िल्मों की शिखर अभिनेत्रियों के लोकप्रिय "नंबर वन क्लब" में स्थान मिला।