२८.बनारस की वो रात
शादी के दूसरे दिन ही अपर्णा पगफेरो की रस्म के लिए अपनें घर आई। वंदिता जी ने अपर्णा की पसंद का खाना बनाकर तैयार रखा था। सब ने आज़ साथ बैठकर खाना खाया। फिर रूद्र अपर्णा को लेने आ गया। दोनों की आज़ शाम की बनारस जाने की फ्लाईट थी।
अपर्णा ने घर आकर पेकिंग करना शुरू कर दिया। रूद्र भी उसकी मदद करनें लगा। अचानक ही उसे शरारत सूझी तो उसने अपर्णा को कमर से पकड़कर उसे अपनी ओर खींचकर कहा, "वैसे उस दिन तो मैं तुम्हारी गोद में गिरा तो तुमने मुझे बहुत सुनाया था। बिना ये जाने की मैं जानबूझकर नहीं गिरा था। तो अब अगर शादी के बाद ऐसा कुछ हुआ तो क्या करोगी?"
"अब तो सीधा आपकी पीटाई करुंगी।" अपर्णा ने मुस्कुराकर कहा।
"वो भला क्यूं? अब तो हमारी शादी हो गई है।" रूद्र ने कहा।
"वो भला यूं कि शादी हो गई है तो मुझे आपके साथ कुछ भी करने का लाइसेंस भी मिल गया ना, इसीलिए आपकी पीटाई करुंगी।" अपर्णा ने कहा।
"कुछ भी में तो बहुत कुछ आता है। जैसे कि..." कहते हुए रुद्र अपर्णा के होंठों को देखने लगा। तो अपर्णा उसे धक्का देकर अपना काम करनें लगी।
"ये भला क्या बात हुई? मेरा क्या इतना भी हक नहीं है?" रुद्र ने मुंह बनाकर पूछा।
"ये भला ये बात हुई कि अभी मुझे बहुत काम है और हक तो अब आपका मुझ पर जन्मों जन्मों तक का है।" अपर्णा ने मुस्कुराकर कहा तो रुद्र ने उसे अपने गले लगा लिया। दोनों काफ़ी देर तक ऐसे ही एक-दूसरे के गले लगे रहे। एक-दूसरे की बाहों में उन्हें एक सुकून का अहसास हो रहा था। जो उनके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था।
शाम होते ही दोनों अपना सारा सामान लेकर नीचे आ गए। दोनों ने सब के आशीर्वाद लिए और एयरपोर्ट जाने के लिए निकल गए। एयरपोर्ट आकर सारी फॉर्मालिटिज पूरी करने के बाद दोनों प्लेन में बैठे और प्लेन ने बनारस की ओर उड़ान भरी। आठ बजे प्लेन बनारस एयरपोर्ट पर लेंड हुआ।
अपर्णा तो एयरपोर्ट के बाहर आतें ही हाथ फैलाकर बनारस की हवाओं को अपनी सांसों में भरने लगी। बनारस उसके लिए ऐसी जगह थी। जिससे उसे बहुत प्यार था। ये जगह उसकी जन्मभूमि थी। इसलिए यहां से उसकी बहुत सारी यादें जुड़ी थी। जिनके बिना अपर्णा का कोई अस्तित्व नहीं था।
अपर्णा को इतना खुश देखकर रुद्र ने पूछा, "तुम्हें इस जगह से बहुत प्यार है ना?"
"हां, यहीं मेरा जन्म हुआ था। यहां के घाट की आरती देखकर ही मैं बड़ी हुई हूं और यहां के घाट पर ही आप मुझे मिले। जिसने मुझे बहुत बड़ा परिवार दिया और मेरे मम्मी-पापा से भी मिलवा दिया। सच कहूं तो अब जिंदगी से कुछ नहीं चाहिए। अब तो अगले ही पल मेरी जान चली जाए तो..."
अपर्णा आगे कुछ बोल पाती इससे पहले ही रुद्र ने उसके मुंह पर हाथ रखकर कहा, "आगे एक शब्द भी मत बोलना। चलों पहले हम घाट पर जाते है।"
अपर्णा ने सिर्फ गर्दन हिला दी और दोनों घाट पर आ गए। घाट पर आते ही अपर्णा की आंखें चमक उठी। वह सीढ़ियां उतरकर वहीं घाट की सीढ़ियों पर बैठ गई। रुद्र भी उसके पास आकर बैठ गया। कुछ देर पहले ही आरती हुई थी। तो चारों तरफ एक पवित्र खुशबू फैली हुई थी। अपर्णा ने रूद्र के कंधे पर अपना सिर टिका दिया और कहने लगी, "रुद्र! एक बात कहूं? इस जगह पर मेरी जान बसती है। मुझे बचपन में मम्मी-पापा का प्यार मिला हो या नहीं। लेकिन यहां के घाटों से मुझे बहुत कुछ मिला है। यहां की आरती में एक सुकून है। यहां के शंखनाद से मधुर संगीत कही नहीं सुनाई देता। आरती के वक्त यहां की पवित्र खुशबू जब सांसों से होकर रगो में उतरती है, तब मानो दुनिया की हर खुशी मिल गई हो। इतना अच्छा लगता है।"
रूद्र ने अपर्णा की बातें सुनी तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। उसने अपर्णा का हाथ पकड़कर उसे चूमते हुए कहा, "तुम्हें पता है? जब मैं पहली बार तुमसे यही मिला था। तब मुझे लगा था कि तुम अपनें आप में ही एक बबाल हो। क्यूंकि तब तुमने बिना सोचे ही मुझे कितना कुछ कह दिया था। लेकिन तुम्हारे अंदर इतनी प्यारी लड़की भी रहती है। जो बहुत ही शांत है और बहुत अच्छी बातें करती है। ये मुझे नहीं पता था। लेकिन मुझे तो बस उस बबाल लड़की से ही प्यार हो गया था। क्यूंकि मैंने तुम्हारी आंखों में देखा था। उन्हें देखकर मुझे समझ आ गया था कि तुम कभी झूठ नहीं बोलती। मन में जो हो बस कह देती हो और कभी किसी का बूरा नहीं चाहती।"
"ओहो, आपने मेरे बारे में इतना कुछ सोच लिया था! लेकिन फिर भी ट्रेन में मेरे बारे में वो सब क्यूं कहा? मुझे परेशान करने के लिए?" अपर्णा ने आंखें छोटी करके पूछा।
"नहीं, लेकिन तुम जब भी बोलती तो मुझे बहुत अच्छा लगता। मुझे तो तुम्हारे गुस्से पर भी प्यार आता था। मेरे अब तक का सबसे हसीन लम्हा कौन-सा है पता है?" रूद्र ने कहा।
"कौन-सा है?" अपर्णा ने पूछा।
"जब ऑफिस में तुमने सुबह-सुबह मुझे अपने हाथों से बनी चाय पिलाई थी और अपने दादाजी के बारे में बताया था। तभी मैंने तय कर लिया था कि मैं शादी तो तुमसे ही करुंगा। वो मेरी जिंदगी का सबसे हसीन लम्हा था।" रुद्र ने कहा।
रुद्र की बातें सुनकर अपर्णा ने उसके सिने से सिर लगाकर धीरे-से कहा, "आप बहुत अच्छे है। आई लव यू।"
"आई लव यू टू बच्चा। लेकिन मुझसे भी अच्छी तुम हो।" रूद्र ने अपर्णा के सिर को चूमकर कहा।
दोनों काफ़ी देर तक वहीं बैठे रहे। फिर देर रात को अपर्णा रूद्र के साथ अपनी चाची के घर आ गई। चाचा-चाची और अपर्णा के मम्मी-पापा अभी भी मुंबई वाले घर में ही थे। इसलिए यहां पर कोई नहीं था। अपर्णा रूद्र को अपने कमरे में ले आई। रूद्र कपड़े बदलकर खिड़की के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। अपर्णा चेंज करके आई तो उसने रुद्र को खिड़की के पास बैठा देखा तो तुरंत उसके पास चली आई।
"आप अभी तक सोए नहीं?" अपर्णा ने पूछा।
"नींद नहीं आ रही है।" रुद्र ने मासूम सी शक्ल बनाकर कहा।
"अच्छा तो एक बात बताइए। आप उस दिन अपनें कैमरे को बचाने के लिए अपने दोस्तों से भाग रहे थे। तो आखिर उस कैमरे में ऐसा क्या है मुझे दिखाएंगे?" अपर्णा ने पूछा।
"जरुर दिखाऊंगा। तुम देखोगी तो खुश हो जाओगी।" रुद्र ने खुशी से भरकर कहा।
"तो फिर आप कैमरा निकालिए, मैं चाय बनाकर लाती हूं। फिर चाय पीते-पीते आपके कैमरे में छिपा राज़ देखेंगे।" अपर्णा ने कहा और वह किचन में चाय बनाने चली गई।
रात के बारह बजे रूद्र ने अपना कैमरा निकाला और वापस कुर्सी पर बैठ गया। अपर्णा हाथों में चाय के दो कप थामें कमरे में आई। उसने एक कप रुद्र को दिया और दूसरा कप टेबल पर रखकर दूसरी कुर्सी लेने जाने लगी तो रुद्र ने उसका हाथ पकड़कर, उसे खींचकर अपनी गोद में बिठाकर कहा, "दूसरी कुर्सी की कोई ज़रूरत नहीं है। एक में ही एडजस्ट कर लेंगे।"
रुद्र की इस हरकत से अपर्णा बस मुस्कुराकर रह गई। रुद्र ने अपर्णा को उसकी चाय का कप पकड़ाया और खुद एक हाथ में चाय और दूसरे हाथ में कैमरा पकड़कर अपर्णा को सारी तस्वीरें दिखाने लगा। जो उसने इतने सालों में ना जाने कितनी ही अलग-अलग जगहों पर जाकर खींची थी। उसमें अपर्णा ने बनारस की तस्वीरें देखी तो कहने लगी, "आपको तो फोटोग्राफर होना चाहिए था। बनारस की इतनी अच्छी तस्वीरें मैंने कही किसी के पास भी नहीं देखी।"
"मैं फोटोग्राफर ही बनना चाहता था। लेकिन पापा ने मना कर दिया।" अपर्णा की बात सुनकर रुद्र ने खोए हुए स्वर में ही कह दिया।
"ऐसा क्यूं? आप तो कितनी अच्छी फोटोज़ खिंचते है।" अपर्णा ने कहा।
"तुम वो सब छोड़ो ना, अभी और भी फोटोज़ है। तुम वो देखो।" रुद्र ने बात बदलते हुए कहा।
दोनों देर रात तक फोटोज़ देखते हुए जागते रहे। लेकिन अब अपर्णा के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। जिससे रुद्र अंजान था। वह तो बस अपर्णा को फोटोज दिखाएं जा रहा था। साथ ही पुरानी यादों को ताजा कर रहा था। दोनों के लिए आज़ की रात यादगार बन गई थी।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल