Heroin - 6 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हीरोइन - 6

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हीरोइन - 6

ये एक दिलचस्प बात है कि कभी - कभी आपके बोए हुए पेड़ बहुत देर से फल देते हैं।
वहीदा रहमान के साथ यही हुआ। उनका आगमन फ़िल्मों में पचास के दशक में हो गया था, उनकी फ़िल्मों ने सफ़लता भी पाई पर वे नंबर गेम में शामिल नहीं मानी गईं। उनकी बेहद सफल फ़िल्मों "चौदहवीं का चांद", "प्यासा", "काग़ज़ के फूल" के दौर में चर्चा गुरुदत्त की ही होती रही।
फ़िर प्यासा में माला सिन्हा और साहिब बीबी और गुलाम में मीना कुमारी के साथ होने पर उनकी सफलता बंट गई। लेकिन इतना ज़रूर है कि उनके अभिनय की तारीफ़ बदस्तूर होती रही।
इसी समय तनूजा और बबीता की फ़िल्में भी सफल होती रहीं, लेकिन इन दोनों का नाम नंबर गेम से अलग ही रखा गया। शायद दर्शक इन्हें क्रमशः नूतन और साधना की छोटी बहन मानने की मानसिकता से बाहर नहीं आए।
लेकिन साठ के दशक के बीतते - बीतते फ़िल्मों में जब वैजयंती माला का दौर थमा तथा साधना स्वास्थ्य के कारणों से फ़िल्मों से दूर होने लगीं लगभग उसी ज़माने में वहीदा रहमान की गाइड, नीलकमल, पालकी, खामोशी, राम और श्याम, पत्थर के सनम आदि एक के बाद एक सफल फ़िल्मों ने उनके दिन फ़िर से ला दिए। वो लगातार दर्शकों के बीच आदरपूर्ण जगह बनाती रहीं। "गाइड" फिल्म ने तो उन्हें निर्विवाद रूप से दौर की सबसे सफ़ल तारिका करार दिया।
नए दौर में हेमा मालिनी, बबीता, मुमताज़, जया भादुड़ी (बच्चन) दर्शकों की कसौटी पर थीं। उधर रेहाना सुल्तान, राधा सलूजा और रीना रॉय ने एक अलग लहर पैदा की,जो जल्दी ही थम भी गई।
लेकिन वहीदा रहमान की राह अब भी इतनी सीधी सपाट नहीं थी, उनके कुछ ही समय बाद "कश्मीर की कली" से धमाकेदार एंट्री लेने वाली शर्मिला टैगोर ने आराधना, अमरप्रेम, सफ़र, अमानुष जैसी फ़िल्मों से तहलका मचा दिया। शर्मिला टैगोर ने लोगों की वाहवाही बटोरी और दौर की सफलतम तारिका का अघोषित तमगा अपने नाम कर लिया।
धर्मेंद्र,राजेश खन्ना,जितेंद्र,संजीव कुमार के साथ उनकी फ़िल्मों की झड़ी लग गई।
"आराधना" ने एक साथ तीन नंबर वन दिए। राजेश खन्ना, किशोर कुमार और शर्मिला टैगोर।
और सर्वाधिक लोकप्रिय नायिका का दर्शकों द्वारा दिया जाने वाला "नंबर वन" सिंहासन एक बार उनके नाम हो गया।
वहीदा रहमान की ही तरह शर्मिला टैगोर का कैरियर भी बहुत बड़ी रेंज लेकर आया था। इसमें विविधता और भी ज्यादा थी।
"कश्मीर की कली" और "एन इवनिंग इन पेरिस" की ग्लैमरस तारिका दूसरी तरफ देवर, सत्यकाम, आविष्कार, सफ़र जैसी फ़िल्में भी दे रही थी।
ये रेंज एक अभिनेत्री के तौर पर उनको निरंतर प्रतिष्ठापित कर रही थी। उधर मुख्यधारा की लोकप्रिय फ़िल्मों में हेमा मालिनी का भविष्य दर्शकों को नज़र आने लगा था। राज कपूर के साथ फ़िल्मों में एंट्री लेने वाली हेमा जल्दी ही अवाम की ड्रीमगर्ल भी बन गईं। उधर मुमताज़ ने भी एक से बढ़कर एक सफल फ़िल्मों से झंडे गाढ़ने शुरू कर दिए।
पर बीच में कुछ समय के लिए शर्मिला टैगोर का नाम एक बार नरगिस,मधुबाला, मीना कुमारी, वैजयंती माला, साधना के बाद "नंबर वन" तालिका में भी जुड़ गया। उन्नीस सौ सत्तर बीतते बीतते शर्मिला टैगोर अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से निश्चित रूप से कुछ आगे निकलती हुई दिखाई देने लगीं। उस समय के लगभग सभी नायकों के साथ शर्मिला टैगोर ने काम किया। यहां तक कि जिन दिलीप कुमार के साथ शर्मिला टैगोर ने पूरे कैरियर में कोई फ़िल्म नहीं की थी उनके साथ भी अब "दास्तान" जैसी फ़िल्म प्रदर्शित हुई। यद्यपि अपने अपने क्षेत्र के बेहतरीन एक्टर माने जाने वाले दिलीप और शर्मिला की ये फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई करिश्मा नहीं कर सकी।