साठ के दशक में आई साधना और आशा पारेख के बीच शुरू से ही कांटे की टक्कर रही। जिस समय ये दोनों फ़िल्मों में आईं,तब टॉप पर वैजयंती माला और दूसरे नंबर पर माला सिन्हा का बोलबाला था। जल्दी ही ये पहले दो स्थान साधना और आशा पारेख को मिल गए।
इन दोनों के मुक़ाबले का आलम ये था कि इनकी फ़िल्में शीर्षक तक में एक दूसरे की होड़ करती थीं।
साधना की "लव इन शिमला" और आशा पारेख की "लव इन टोक्यो" तो आपको याद होगी ही।
फिर साधना की "मेरे महबूब" और आशा पारेख की "मेरे सनम" को कौन भूल सकता है।
जब "आए दिन बहार के" तो "आप आए बहार आई"
"मेरा साया" के बाद आई "मेरा गांव मेरा देश"
जब एक गीतकार ने साधना के लिए गीत लिखा "गोरे- गोरे चांद से मुख पर काली- काली आंखें हैं...", तो आशा पारेख की फिल्म के लिए भी लिखा गया "तेरी आंखों के सिवा दुनियां में रखा क्या है"।
साधना जब तक रहीं तब तक शिखर पर रहीं,पर बीमारी के चलते उन्हें फिल्मी दुनिया छोड़नी पड़ी। लेकिन आशा पारेख ने उसके बाद लंबी पारी खेली।
साधना ने गबन में ग्लैमर विहीन भूमिका की, तो आशा पारेख ने "कटी पतंग" में।
सुनील दत्त और शम्मी कपूर की दोनों के साथ जोड़ी जमी।
धर्मेंद्र ने आशा पारेख के साथ जोड़ी बना कर साधना के साथ केवल एक फिल्म की, उसी तरह राजेन्द्र कुमार ने साधना के साथ जोड़ी बनाकर आशा पारेख के साथ एक ही फ़िल्म की।
अपनी प्रतिभा के बल पर साधना जहां बाद में फ़िल्म निर्देशक बनी, तो आशा पारेख फ़िल्म सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष बनी।
साधना को पति के देहांत के बाद लगभग सोलह साल अकेले बिताने पड़े, वहीं आशा पारेख ने शादी ही नहीं की, वो अकेली ही रहीं।
इस दौर की अन्य लोकप्रिय अभिनेत्रियों में नंदा और सायरा बानो थीं। इन्हें दर्शक लगातार पसंद तो कर रहे थे किन्तु नंबर गेम में इन्हें नहीं शामिल किया गया। इसकी वजह ये थी कि नंदा जहां फ़िल्मों को लेकर कुछ चूज़ी रहीं, वहीं सायरा बानो ने किसी भी हीरो के साथ, किसी भी डायरेक्टर की फ़िल्म की।
एक बार जब ऋषिकेश मुखर्जी ने फ़िल्म चैताली में सायरा बानो को साइन किया तो सायरा बानो के प्रशंसक कहने लगे- मुखर्जी साहब, सायरा बानो का कैरियर स्पॉइल मत कीजिए।
कुदरत को भी शायद इन प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों की आपसी प्रतिद्वंदिता में मज़ा आने लगा और उसने इन चारों को ही संतान सुख नहीं दिया!
साधना व आशा पारेख, दोनों का ज़माना चला गया पर दोनों के गीत आज भी गूंजते हैं:
झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में...
ओ- ओ - ओ, आया सावन झूम के !
इस तरह वैजयंती माला की लोकप्रियता के उतार और मेरे मेहबूब,वो कौन थी, वक़्त, आरज़ू,मेरा साया,एक फूल दो माली और इंतकाम के खुमार ने साधना को अपने दौर की "नंबर एक" तारिका बना दिया। साधना की सफलता और लोकप्रियता देखते देखते फ़िल्म उद्योग के सिर चढ़ कर बोलने लगी और उन्होंने अपनी अन्य समकालीन अभिनेत्रियों - सायरा बानो, आशा पारेख,नंदा, तनुजा आदि को पीछे छोड़ दिया। वो एक समय उद्योग की सर्वाधिक मेहनताना पाने वाली हीरोइन बन गईं।
नरगिस, मधुबाला ,मीना कुमारी ,वैजयंती माला के बाद साधना ने अपने दौर की नंबर वन एक्ट्रेस कहला कर दर्शकों के दिल पर इस तरह सर्वोच्च राज किया। कहा जाता है कि यदि साधना को थायरॉयड जैसी बीमारी ने न घेरा होता तो सौंदर्य, लोकप्रियता तथा बुद्धिमत्ता की ये मालकिन कई और सालों तक फिल्मी दुनिया पर छाई रहती।