निम्मी और मधुबाला लगभग एक साथ ही दुनिया में और एक साथ ही फिल्मी दुनिया में आई थीं।
दोनों की ही दिलीप कुमार के साथ जोड़ी भी जमी।
निम्मी ने आन, अमर, उड़न खटोला जैसी बड़ी और लोकप्रिय फ़िल्में की। बरसात भी उनकी कामयाब मंज़िल थी।
लगभग इन्हीं वर्षों में मधुबाला भी मिस्टर एंड मिसेज 55, चलती का नाम गाड़ी, बरसात की रात जैसी हिट फिल्में लगातार दे रही थीं।
दोनों ही नाम बदल कर फ़िल्मों में आई थीं। मुस्लिम कलाकार उन दिनों न जाने क्यों हिन्दू नामों के साथ दिखाई दिए।
शायद इसका एक कारण ये था कि देश के विभाजन के साथ पाकिस्तान की छवि मुस्लिम देश की बन चुकी थी जबकि भारत में हिन्दुओं की तादाद ज़्यादा थी। पाकिस्तान में पैदा हुए कई बड़े- बड़े सितारे भी नाम बदल कर शायद ये जता देना चाहते थे कि वे स्टार हैं तो लोगों के कारण! जितने ज़्यादा लोग उन्हें देखेंगे, सराहेंगे, अपना समझेंगे, उतने ही वे सफल होंगे।
निम्मी और मधुबाला का जादू दर्शकों के सिर चढ़ कर बोला।
कहते हैं कि किसी रेस में साथ साथ दौड़ते हुए धावक भी क़दमों के ज़रा से फासले से विजेता, उपविजेता और पराजित कहलाए जाने लगते हैं।
फ़िल्मों की सफ़लता तो दोनों ओर थी पर अपूर्व सुंदरी मधुबाला की मादक सुंदरता ने दर्शकों के दिल में एक ख़ास मुकाम बना लिया था। वे फ़िल्म जगत की "वीनस" कहलाने लगी थीं। वीनस माने सौंदर्य की देवी!
लोग कहते थे कि देश भर से चुन चुन कर फ़िल्मों के लिए एक से एक बेहतरीन चेहरे लाए जाने के बावजूद मधुबाला जैसा चेहरा पहले कभी नहीं आया था। वे चेहरे पर भावाभिव्यक्ति की भी प्रतिमा कही जाती थीं।
ऐसे में सोने पे सुहागा!
मधुबाला की फिल्म "मुगलेआज़म" थियेटरतोड़ कामयाबी के साथ जब नगर - नगर में आई तो लोग पृथ्वीराज कपूर के अहम, दिलीप कुमार की दीवानगी और मधुबाला के नशीले सौंदर्य के मस्ताने हो गए।
फ़िल्म मील का पत्थर साबित हुई, और मधुबाला को "नंबर वन" कहा जाने लगा। नरगिस के रूप में मिली ममता मयी मां के बाद दर्शकों को जैसे शीशे के बुत सरीखी महबूबा मिल गई।
उधर निम्मी ने कई कामयाब फ़िल्में देते हुए भी फ़िल्म मेरे मेहबूब में साधना के साथ सहनायिका की भूमिका कर ली, जहां साधना के अप्रतिम सौंदर्य ने दर्शकों के सारे ध्यान को उलझाए रखा।
दर्शक नंबर एक तारिका उसी को मानते हैं जो कहीं किसी दूसरी प्रतिद्वंदी से उन्नीस नहीं, बल्कि इक्कीस ही दिखाई दे।
इस तरह सौंदर्य की देवी वीनस फ़िल्म जगत की दूसरी "नंबर एक" बनी।
"जब प्यार किया तो डरना क्या.." गीत में शीशमहल में नाचती मधुबाला भारतीय दर्शकों के मानस पटल से कभी मिटने वाली नहीं, चाहे पीढ़ियां बदलती चली जाएं।
लेकिन भारतीय सिने दर्शकों का मन ये सोच कर भीग जाता है कि फ़िल्मों की इस वीनस ने अपनी निजी ज़िंदगी में बहुत दुख झेले। दिलीप कुमार से लंबे समय तक चले प्रेम के बाद उनसे विवाह न हो पाने ने मधुबाला के जीवन के प्रति अनुराग को मानो सोख ही लिया। वे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए भी अनमनी सी रहने लगीं। उन्हें इस बात का दुख कहीं गहरे तक साल गया कि पिता के व्यवसायिक दृष्टिकोण के चलते ही दिलीप कुमार से उनका विवाह नहीं हो सका। ये आश्चर्यजनक है कि विवाह न हो पाने के कड़वे फ़ैसले ने उन्हें भीतर से एक ऐसे खालीपन से भर दिया कि रोग ने जब उन पर हमला किया तो वो कोई प्रतिकार तक न कर सकीं।