Apanag - 17 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | अपंग - 17

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अपंग - 17

17 ---

माँ-बाबा के पत्र बराबर आते रहते थे | माँ उसे लिखती रहतीं कि वह अपना ध्यान रखे | हाँ, उन्हें राजेश के पत्र न लिखने से शिकायत रहती | भानु टाल जाती, लिख देती कि राजेश बहुत व्यस्त रहता है | माँ को चैन न पड़ता, सोचतीं और लिख भी देतीं की ऎसी क्या व्यस्तता हो सकती है आख़िर जो राजेश अपने पहले बच्चे के लिए भी थोड़ा समय नहीं निकालता, कम से कम उसे माँ-बाबा के साथ अपना उल्लास तो शेयर करना चाहिए था| उन्हें उससे बात करने की लालसा बनी रहती लेकिन जब वह पत्नी से ही बात नहीं करता था तो उसके माँ -पिता से कैसे बात करता ?

माँ उसके गर्भ की खबर सुनते ही आना चाहती थी लेकिन अचानक बाबा की तबियत ख़राब होने से उनका आना रद्द हो गया | भानु भी घबरा गई थी माँ के आने की बात जानकर लेकिन उनका आना स्थगित होने का जानकर उसने चैन की साँस ली यद्यपि बाबा की तबियत की चिंता हो गई थी उसे ! उसने रिचार्ड से भी यह बात शेयर की थी। उसका कहना था कि आखिर वह कब तक छिपा पाएगी अपनी टूटी हुई रिलेशनशिप के बारे में ? सोचती तो वह खुद भी यही थी 'आख़िर कब तक ?' फिर सोचती, जब तक चल रहा है तब तक ही सही ! अभी तो वह खुद को खुश रखने की कोशिश करती थी, जानती थी कि उसके बच्चे पर उसकी प्रसन्नता व उदासी का प्रभाव पड़ सकता था | उसे अपनी तकलीफ़, अपनी पीड़ा को खुद से ही छिपाना पड़ता था |

एक बार माँ ने उसे भारत का चक्कर मारने के लिए कहा भी था | इससे पहले तो दोनों ने माँ के पास एक चक्कर लगाया भी था लेकिन तब जब माँ ने कहा था तब वह अपने संबंध को टूटने से बचाने के प्रयत्न में लगी थी | उसे तब कोई राह दिखाई भी दे जाती लेकिन अब केवल टूटन थी | बहुत देर हो चुकी थी | हाँ, बच्चे के जन्म के बाद एक बार तो उसे जाना ही होगा, यही सोचकर वह घबराती भी थी |

आख़िर प्रतीक्षा का वह दिन भी आ ही गया जिसको याद करते ही उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगती थीं | उस दिन सुबह से ही उसकी तबियत कुछ खराब सी थी | पर, किससे कह सकती थी? पिछली रात राजेश दो बजे एपार्टमेंट पहुंचा था | वह सोया पड़ा था | लगभग दस बजे के करीब उसे अधिक तकलीफ़ होने लगी | अचानक उसने स्वयं को बहुत कमज़ोर महसूस किया और न चाहते हुए भी उसके पैर उस कमरे के दरवाज़े की और बढ़ गए जिसमें राजेश गहरी नींद सोया पड़ा था | उसने दरवाज़ा नॉक किया | हल्का सा झांककर देखा, वह बाहर के कपड़ों में ही रजाई में लिपटा पड़ा था |

"राज --"उसने कराहते हुए उसे आवाज़ दी |

"राज ! प्लीज़ हैल्प मी, प्लीज़ कम विद मी टू द डॉक्टर---" उसने रोते हुए राज से इल्तिजा की | पीड़ा से बेहाल हुए जा रही थी वह!

राज अचानक आँखें मलते हुए उठा और उसकी ओर अजनबी दृष्टि से घूरने लगा | आँखें फाड़ते हुए कसाई की तरह बोला ;

"आई टोल्ड यू, यू हैव टू सफ़र एलोन ---"

"आई नो राजेश, आई विल --लेकिन--अभी तो मुझे हैल्प करो --कम से कम एक मनुष्य होने का फ़र्ज़ तो अदा कर दो ! डॉक्टर के पास ---" वह पीड़ा के कारण अधमरी हुई जा रही थी |

" नो --नो गैट आउट ऑफ़ द रूम--आई एम नाट ए मैन और इवन नॉर द ह्यूमन बींग ---जाओ एंड डू व्हाटएवर यू वॉन्ट टू डू --मैं भी तो देखूं, कैसे सब कुछ झेलोगी ? आई लीस्ट बौदर---"

वाकई भानुमति को लगा, वह कहीं से मनुष्य है ही नहीं | जानवर भी एक-दूसरे के दुख -दर्द में काम आ जाते हैं पर मनुष्य---?? एक बड़ा प्रश्नचिन्ह था उसके सामने !यूं तो ईश्वर ने सभी जीव-जंतुओं के जैसे भी मनुष्य को बनाया है लेकिन एक मस्तिष्क ऐसा दिया है जिससे वह उपयोग करके अपने जीवन को बेहतर बनाता है | लेकिन कोई यदि उसका उपयोग ही न करना चाहे तो ?

ऎसी कठिन परिस्थिति में कोई अजनबी या कोई राहगीर भी काम आ सकता है लेकिन ---वह अधिक कुछ नहीं सोच पाई और किसी प्रकार उठते, गिरते उसने डॉक्टर को फ़ोन लगा दिया |

डॉक्टर ने उसकी स्थिति सुनकर उसे शीघ्र ही हॉस्पिटल आने का परामर्श दिया | किसी प्रकार उठते, गिरते हुए उसने अपना बैग तैयार किया कि उसे एम्बुलैंस का सायरन सुनाई दिया | अपने बैग और शरीर को ढोते हुए वह किसी प्रकार एम्बुलेंस तक आ पहुँची |

हॉस्पिटल स्टाफ़ के दो लोग अंदर बैठे थे | उन्होंने उसे सहारा दिया और कुछ ही देर में वह 'लेबर-रूम' में थी |