स्त्री- विमर्श के मौजूदा दौर का भविष्य
[ समीक्षाकार -श्री प्रबोध गोविल जी व डॉ प्रणव भारती जी ]
`तर्णेतर ने रे अमे मेड़े ग्याता` शीर्षक से आप ये न समझें कि ये किसी प्राचीन संस्कृति की भूली बिसरी बात है। नीलम कुलश्रेष्ठ की ये बेहद उत्तेजक और खरी - खरी कहानियां उस दौर की झलकियां हैं जो आज उगते सूर्य की तरह क्षितिज पर फैलता दिख रहा है। जब हमने ये भांप लिया कि स्त्री और पुरुष के बीच कार्य का विभाजन, दायित्वों का बंटवारा दोषपूर्ण और अन्याय का पोषक है तो सब जानबूझ कर कुछ न करना अपने समय को और अपने आप को धोखा देना ही है। आधुनिक रहन- सहन के पर्दे में ढाक के तीन पात उघाड़ डाले हैं नीलम जी ने। इन कहानियों को पढ़ना शुरू कर के आप फंस जाते हैं, न तो इन्हें छोड़ा जा पाता है और न अपने आप को कोसने से आप बच ही पाते हैं। सच तो है, ग्लानि तो होती ही है न, कि हम एक ऐसे समय में हैं जो सामान्य मनुष्यता के विरुद्ध बह रहा है! नीलम कुलश्रेष्ठ की हर कहानी एक गहन शोध का नतीजा दिखाई देती है। ये समाज का ही नहीं, वरन कहानियों का भी नव- विमर्श है।
---- श्री प्रबोध गोविल
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'तर्णेतर ने रे अमे मेड़े ग्याता'
डॉ.प्रणव भारती
अहमदाबाद
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अस्मिता की संस्थापिका प्रिय नीलम कुलश्रेष्ठ की यह पुस्तक लंबे समय से पास थी लेकिन जैसे मेरे बहाने होते हैं, वही बहाना इसके साथ भी लागू है, अधिक काम होने के.
एक लंबे अर्से से उनकी पहचान व उनके लेखन के साथ सफ़र कर रही हूँ । साथ भी रही हूँ उन मार्गों पर जो बीहड़ भी रहे हैं और टूटे-फूटे भी, जिनमें गड्ढे रहे हैं और समतल भूमि भी ! लेकिन कुछ परिस्थितियों ने ऐसे राग सुनाए कि चाहते हुए भी मैं नीलम जी के लेखन पर कुछ प्रस्तुत न कर सकी जबकि उनके साहित्य पर काफ़ी कुछ लिख चुकी थी ।
समय बड़ा बलवान है, न जाने क्या कुछ करवा दे। उनके उपन्यास 'दहशत' पर लिखकर भी मेरी कलम अटककर, अनेकों खुरदुरे रास्तों से गुज़रते हुए न जाने कितने -कितने सवाल मुझसे पूछने लगी, मुझे परेशान कर दिया उसने।
उपरोक्त कहानी संग्रह की अधिकांश कहानियाँ मैं पहले ही पढ़ चुकी हूँ लेकिन उन्हें समग्र रूप में पढ़कर एक बार पुन: विचार करने में कई बाध्यताओं के कारण लिखने में देरी होती रही। उनकी कहानियों में नारी समस्याओं का चित्रण सदा रहता है, उनके अन्य लेखन में भी एक चिंता है चाहे वह चिंता पर्यावरण से जुड़े पानी की हो अथवा महिलाओं के अस्तित्व की।
महिलाओं का जीवन पानी के महत्व से कहाँ कम है ? देखा जाए तो बहते पानी की समस्या से महिलाओं के तरल (बहते) व्यक्तित्व की समस्या जुड़ी है।
झरना अथवा नदी का बहता हुआ स्वच्छ पानी, स्त्री के सहज व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है। काश ! ऐसा हो सके कि स्त्री का जीवन एक स्वच्छ बहते पानी की भाँति निर्मल, अबाध, बिना अपनी गति को रोके बह सके ! नीलम के किसी भी लेखन में जीवन से जुड़ी और विशेषकर स्त्री-जीवन से जुड़ी कोई न कोई समस्या प्रदर्शित होती ही है। प्रश्न यह है कि कितने लोगों में जागृति का संचार हो पाता है ? अब यह लेखक के ऊपर नहीं पाठक व उसे समझने वाले के ऊपर निर्भर करता है। लेखक तो अपनी समझ के अनुसार पाठक के समक्ष अपनी समस्याएँ व चेतना परोस ही देता है।
बारह शीर्षकों में बँटी कहानियाँ विभिन्न कलेवर की कथाएँ प्रस्तुत करती हैं, उनके ह्रदय को छू लेने का अंदाज़, आकर्षण पाठक को बाँधकर रखता है, कहानियाँ कई प्रश्न छोड़ती हुई दिल में उतरती चली जाती हैं।
नीलम के लेखन की एक और बड़ी विशेषता यह है कि स्व-अनुभवों व काफ़ी भ्रमण करने के कारण उनकी कहानियों में यात्रा -वृत्तांत की पेंटिंग सी बन जाती है। किसी भी यात्रा में उनकी दृष्टि चौकन्नी रहती है। यह एक लेखक का बहुत बड़ा गुण है जो मुझे उनसे सीखना चाहिए था लेकिन वो सीखना 'लेकिन, ----पर---परंतु' होकर ही रह गया।
कहानी 'सफ़ेद पत्थरों में अटकी जान' में 'वाछड़ा दादा' के मंदिर में पहुँचने की यात्रा से लौटकर आने तक की यात्रा काफ़ी थ्रिल देती है | इसे पढ़ते हुए मुझे न जाने क्यों यह भी महसूस हुआ कि मैं भी तो कई दशकों से गुजरात में हूँ, मैं क्यों इन सबके बारे में अनभिज्ञ रही ? इस सुनसान रन की यात्रा भय से गुज़रती हुई अलौकिकता की ओर मन की एक यात्रा बन जाती है | महसूस होता है, सब कुछ ही तो विश्वास पर टिका है |
स्त्री समस्याओं को लेकर जहाँ उन्होंने 'तू पण कहाँजाएगी'जैसी सचोट कहानी दी है तो 'आप ऊपर ही बिराजिए ' जैसी व्यंग्यात्मक कहानी भी है, जो बहुत कुछ कह जाती है | इसी चरित्र को लेकर मेरी भी एक कहानी बरसों पूर्व लिखी गई थी 'अपॉर्चुनिटी'!जो मेरे कहानी-संग्रह बोधि-प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'शी-डार्लिंग', में सम्मिलित है। उन्होंने इशारों ही इशारों में इसके चरित्र की बात करते हुए मुझसे भी कई बातें उगलवा लीं थीं फिर मुझे कुछ ऐसा भी महसूस करवा दिया था कि यदि इस पर कहानी न लिखी जाती तब शायद आश्चर्य ही होता !
'झुकी हुई फूलों भरी डाल' गुजरात के रंग-बिरंगे वातावरण की कहानी महका जाती है तो इस प्रदेश के बारे में बहुत सी सूचनाएँ भी देती हुई गरबे के उत्फुल दिनों की वास्तविकता से परिचय कराती हुई वे एक व्यंग्यात्मक सच्चाई भी कह बैठती हैं ;
'हमारा यू.पी होता तो अब तक लोग औरतों को ट्रक में भरकर किडनैप करके ले जाते'!
नीलम के लेखन में कुछ गंभीर तत्व प्रतीत होते हैं जिसके कारण पाठक प्रत्येक कहानी के लिए कुछ सोचने के लिए बाध्य होता ही है। 'जगत बा' एक अशिक्षित स्त्री के जुनून की कहानी पढ़कर मन में उनके प्रति सम्मान उभरता है।
समाज में कुछ मूल्यों की हमेशा ही आवश्यकता रहती है, उन्हीं मूल्यों को उकेरते हुए बहुत सी बातें बड़े स्पष्ट रूप में लिखी गईं हैं । सच कहूँ तो नीलम कुलश्रेष्ठ की कहानियाँ मुझे सीधे-सीधे उस भावना से जोड़ती हैं जो विशेषकर महिला-जीवन के लिए आवश्यक हैं । ये टटोलती हैं, टोकती हैं, जैसे झिंझोड़कर सोते हुए समाज को जगाने के अपने प्रयत्न में सफ़ल होती हैं। इसलिए इनको गंभीरता से पढ़कर बेचैन होना ज़रूरी है क्योंकि जैसे बिना शिद्द्त के कोई भी काम पुख़्ता रूप से नहीं हो पाता, बेचैनी के बिना किसी विशेष बात पर चिंतनशील भी नहीं हुआ जा सकता। ये समाज से जुड़ी, महिलाओं से जुड़ी चिंता की कहानियाँ हैं जो मांगती हैं अपनी समस्याओं के हल !
`हंस `में प्रकाशित ` सफ़ाई `कहानी को पढ़कर अच्छा लगा कि पिछली सदी से पहले ही नीलम ने पर्यावरण सरंक्षण की चिंता आरम्भ कर दी थी। 'रेस्क्यू' में डैम से अचानक पानी छोड़ने की बात का स्पष्टीकरण करते हुए लोगों की जान की चिंता में एक स्वाभाविक पर धारदार प्रश्न उठाकर लेखिका ने कई लोगों को जगाने की कोशिश की है, कुछ समझने के लिए प्रेरित किया है |
नीलम विज्ञान की छात्रा रहीं हैं इसलिए `लेकिन ----` में एक वैज्ञानिक की कथा को सशक्त रूप से बयान कर सकीं हैं। 'लेकिन ---' में जहाँ दर्दीले सच की बयानगी दिखाई देती है तो 'रिले रेस 'में फिर से गंभीर समस्या का दर्शन होता है।
सभी कहानियों का कथ्य संवेदनशील है और चिंतन को विवश करता है। कहनियाँ इतनी लम्बी नहीं हैं जिनके पठन से थकान होने लगे। कहानियों की शैली सरल, सहज है क्लिष्ट नहीं इसलिए एक तारतम्यता से कहानी दिमाग़ की गली में उतरती चली जाती है। सभी कहानियों में एक सार्थक संदेश दिखाई देता है।
नीलम जी को बहुत सारी प्यार भरी
बधाई
प्रेषित करते हुए उनके जीवन के उत्तरोत्तर प्रगतिशील लेखन के प्रति शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ |
लेखिका -नीलम कुलश्रेष्ठ
पुस्तक - 'तर्णेतर ने रे अमे मेड़े ग्याता' [कहानी संग्रह ]
समीक्षा - डॉ.प्रणव भारती
अहमदाबाद
प्रकाशक – वनिका पब्लिकेशन्स, देल्ही
मूल्य- 280 रुपए