"मैं उससे मिलने कहाँ जाती हूं।अगर कभी सामने पड़ जाता है तो बात कर लेती हूं"मीरा ने झूठ बोला था।
"अब मत मिलना।अगर अब मिली तो सही नही होगा,"मीरा के पिता बोले,"अब मैं जा रहा हूं"
"अभी।रात मैं क्यो?सुबह चले जाना।"
"नही।मुझे अभी जाना होगा।"
मीरा के पिता चले गए।दरवाजा बंद करने के बाद काफी देर तक नीचे बैठी रही।फिर वह ऊपर छत्त पर आयी थी।मीरा के आने पर वह उसके पास पहुंच कर बोला था,"क्या कह रहे थे,तेरे पापा?तूने कही मेरा नाम तो नही बता दिया?"
"तुम्हे अपने प्यार पर विश्वास नही है?"
"मेरी जान तुम पर पूरा विश्वास है।"
"लेकिन मुझे लगता है कुछ तो गड़बड़ है"
"कैसी गड़बड़?"
"लगता है किसी ने मेरे पापा के कान जरूर भरे है,तभी वह तेरा नाम ले रहे थे।"
"फिर/"
"अभी हमे दूर रहना होगा।जब तक मैं न कहनु मुझ से मिलने का प्रयास मत करना।"
मीरा के समझाने पर मनोहर अपने घर चला गया।उसने न मीरा से मिलने का प्रयास किया न उसके घर ही गया।लेकिन मीरा से मिले बगैर उसका मन भी नही लगता था।मीरा ने घर आने के लिए मना किया था।एक दिन वह सुशीला के घर पर बैठा हुआ था।सुशीला का पति रेलवे में ड्राइवर था।वह गाड़ी लेकर बाहर जाता रहता था।उस दिन भी वह गया हुआ था।इसलिए सुुशीला घर मे अकेली थी।मनोहर ,सुुशीला से बात कर रहा था। अचानक वह सुुशीला से बोला,"भाभी एक काम करोगी?"
"बोलो क्या काम है?"सुशीला बोली।
"पहले वादा करो ना नही करोगी?"
"क्या तुम को मेरे पर विश्वास नही है?"
"विश्वास है,तभी तो कह रहा हूं।"
"फिर पूछ क्यो रहे हो।कहो क्या काम करना है?"
"बहुत दिन हो गए मीरा से मिले।उसने घर आने के लिए मना किया है।मेरी उस से मुलाकात करवा दो।"
"बस इतना सा काम है।"मनोहर की बात सुनकर सुशीला बोली थी।
"भाभी तुम्हे ये काम इतना सा लग रहा है।हम कई दिनों से नही मिले हैं।मेरे दिल पर क्या गुज़र रही है।भाभी तुम क्या जानो प्रेम की पीड़ा।किसी दिन मीरा से मिलवा दो।उसे यहां बुलवा लो।"
"देवरजी बुलवा तो दूंगी पर मेरी भी एक शर्त है।"
"केसी शर्त?"मनोहर,सुशीला की बात सुनकर चोंका था।
"पहले वादा करो।इनकार नही करोगे?"
"भाभी मुझ पर विश्वास नही है।"
"तुम कह रहे हो तो विश्वास कर लेती हूँ।"
"तो बताओ भाभी तुम्हारी क्या शर्त है?"
"मीरा के साथ जो तुम्हारे सम्बन्ध है।जो तुम मीरा के साथ करते हो मेरे साथ भी करना होगा।"
"भाभी कैसे सम्बन्ध?क्या करता हूँ मीरा के साथ?मेरी समझ मे नही आ रहा आप क्या कह रही है?"
"सचमुच मैं तुम्हे समझ मे नही आ रहा।"
"सच मे भाभी।"
"बनो मत।मैं भी औरत हूँ।मैने मीरा से सब पता कर लिया है।उसने मुझे बता दिया है।तुम रात को चोरी छिपे उसके घर जाते हो।रात के अंधेरे में छत पर वासना का खेल खेलते हो।मीरा मुझ से कुछ भी नही छिपाती।सब कुछ बता देती है,वह मुझे।"
सुशीला ने सच बताया तो मनोहर ने नज़रे झुका ली थी।
"अरे सरमा क्यो रहे हो। मर्द होकर नज़रे नीची मत करो,"सुशीला बोली,"मीरा से मैं तुम्हे मिलवाती रहूंगी।लेकिन मुझे भी अपनी मीरा बनाना होगा।तुम्हे एक नही दो मीरा मिल जाएगी।कभी एक तो कभी दूसरी।"
मनोहर, सुशीला की बात सुन कर भी कुछ नही बोला।वह समझ गयी तीर निशाने पर लगा है
"