Ehsaas in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | एहसास 

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एहसास 

तीसरी कक्षा में पढ़ रही रूहानी बहुत ही सरल स्वभाव की लड़की थी। उसकी टीचर सभी बच्चों को हमेशा एक दूसरे की मदद करने के लिए कहती थीं । 
 
घर पर उसकी मम्मी भी हमेशा उसे सिखातीं, “रूहानी बेटा हमें सभी की मदद करनी चाहिए।”  
 
रूहानी अपनी मम्मी को भी सभी की मदद करते हुए देखती थी। इस तरह की परवरिश के कारण ही क्लास में किसी को यदि किसी भी चीज की ज़रूरत हो तो रूहानी मदद अवश्य ही करती थी। उसी के साथ पढ़ने वाली बिपाशा उसके इस स्वभाव का हमेशा ही फायदा उठाती थी।  
 
बिपाशा अक्सर ही रूहानी से पेन, पेंसिल, रबर, शार्पनर जैसी चीजें मांगा करती थीं। कभी वह वस्तुऐं लौटा देती और कभी स्वयं ही रख लेती थी। इस बात से बिपाशा की मम्मी अनजान थीं क्योंकि बिपाशा घर जाते ही वह वस्तुऐं कहीं भी छुपा देती थी। लंच ब्रेक में अक्सर वह रूहानी के पास आकर बैठ जाती। यदि उसकी पसंद की कोई खाने की चीज दिख जाए तो उठा कर खा लेती, फ़िर वह यह नहीं सोचती कि रूहानी क्या खाएगी। रूहानी अपने सरल स्वभाव के कारण कभी उसे मना नहीं कर पाती थी। वह ना तो टीचर से शिकायत करती और ना ही घर पर अपनी मम्मी को कुछ बताती थी।  
 
घर पहुंचते ही कई बार वह अपनी मम्मी से कहती, “मम्मी बहुत जोर से भूख लगी है, कुछ खाने को दो, मम्मी जल्दी करो ना।”  
 
कई बार रूहानी की मम्मी अनामिका हैरान हो जाती और सोचती, “इतनी तेज़ भूख कैसे लग सकती है। मैं तो टिफिन में कितना स्वादिष्ट और कितना कुछ भेजती हूँ।”   
 
जब अनामिका उसे खाना देती तो वह इस तरह जल्दी-जल्दी खाने लगती मानो उसने कब से कुछ खाया ही नहीं हो।   
 
अनामिका को धीरे-धीरे शक होने लगा कि शायद कोई बच्चा रूहानी का टिफिन खा लेता है और लगता है इस बात से उसकी टीचर भी अनजान हैं। हर हफ़्ते दो हफ़्ते में उसके रबर, पेंसिल, शार्पनर भी तो गायब हो जाते हैं। 
 
अनामिका ने एक दिन रूहानी से पूछा, “रूहानी बेटा तुम्हारे रबर, पेंसिल कहां चले जाते हैं ? मैं तो कितनी बार नए लाकर रखती हूँ, फ़िर गायब हो जाते हैं और तुम्हारा खाना ? तुम्हारा खाना कोई और खा लेता है क्या ?” 
 
“नहीं मम्मी कोई नहीं खाता, मैं ही खाती हूँ।”   
 
अनामिका के कई बार पूछने पर भी रूहानी ने कभी बिपाशा की शिकायत नहीं करी। वह तो उसे अपनी दोस्त समझती थी। 
 
अनामिका ने एक दिन रूहानी की टीचर को फोन लगाकर उन्हें सारी बातों से अवगत कराया। 
  
रूहानी की टीचर ने कहा, “जी आप बिल्कुल चिंता ना करें, मैं देखती हूँ। सब बच्चे साथ बैठ कर अपना टिफिन खाते हैं, पास-पास बैठते हैं इसलिए मेरा कभी ध्यान नहीं गया। रूहानी और बिपाशा काफी अच्छी दोस्त हैं। वह दोनों हमेशा साथ-साथ होती हैं। मैं अब ध्यान रखूंगी और तुरंत ही आपको खबर भी करूंगी।” 
   
तब टीचर ने ध्यान देना शुरू किया और जल्द ही उन्हें पता चल गया कि क्या चल रहा है। वह देख रही थीं कि बिपाशा कितने प्यार से रबर पेंसिल रूहानी से मांग कर ले लेती है और फ़िर वापस भी नहीं करती। टिफिन भी वह कई बार खा लेती है और रूहानी कुछ नहीं कहती बस चुपचाप देखती रह जाती है।  
 
टीचर को अब पता चला कि दोस्ती की आड़ में बिपाशा क्या कर रही है। हालांकि वह भी छोटी बच्ची ही थी किंतु उसके कदम गलत दिशा की ओर जा रहे थे। अतः उसे रोकना भी बहुत जरूरी था। रूहानी का भी इस तरह का स्वभाव सही नहीं था कि मदद के नाम पर कोई इस तरह से फायदा उठाता रहे और वह चुप रहे।   
 
यह सब देखने के बाद टीचर ने बहुत सोच समझकर एक योजना बनाई, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे। टीचर ने अपनी क्लास में कहानी प्रतियोगिता रखी। सभी बच्चों से कहा अपने घर से एक-एक कहानी सीख कर आना। क्लास के एक लड़के युवान से उन्होंने कहा, “युवान तुम्हें कहानी मैं दूंगी, तुम मेरी लिखी हुई कहानी याद करके आना।”  
 
युवान बहुत ही अच्छी स्पीच बोलता था इसलिए टीचर ने अपनी कहानी के लिए उसे पसंद किया था।  
 
तीन दिनों के बाद कहानी प्रतियोगिता थी। सभी बच्चे कहानी तैयार करके आए थे। वह एक-एक करके अपनी कहानी बोल रहे थे और हर कहानी के अंत में टीचर कहानी में छुपा हुआ संदेश बच्चों से पूछती थीं। सही गलत का निर्णय भी बच्चों से ही करवाती थीं । रूहानी और बिपाशा ने भी अपनी अपनी कहानी बोली। सबसे आख़िर में युवान का नंबर आया और उसने अपनी टीचर की लिखी कहानी बोली।   
 
युवान की कहानी में वही सब लिखा था जो कुछ उनकी क्लास में घट रहा था, बच्चों के नाम अलग थे बस। जिस तरह से बिपाशा अपनी ही दोस्त रूहानी के सरल स्वभाव का फायदा उठा रही थी, गलत दिशा की तरफ जा रही थी, कुछ इसी तरह की कहानी युवान ने अपने अनोखे अंदाज़ में सुनाना शुरू किया। पूरी क्लास में  सभी बच्चे ध्यान से कहानी सुन रहे थे। किसी भी बच्चे को कोई आइडिया नहीं था कि यह कहानी उन्हीं की क्लास में हो रही घटना का जीता जागता उदाहरण है। युवान के कहानी सुनाते समय बिपाशा एकदम शांत थी और नीचे सर झुका कर बैठी थी। शायद वह समझ रही थी कि इस कहानी की खलनायिका वह ख़ुद ही है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ रही थी बिपाशा की आँखें आँसुओं से भीग रही थीं।   
 
टीचर का ध्यान बिपाशा की तरफ ही था। वह उसके हाव-भाव देख रही थीं कि उस पर क्या असर हो रहा है। 
 
कहानी के अंत में संदेश था कि हमें कभी किसी का फायदा नहीं उठाना चाहिए, मदद करनी चाहिए किंतु हमें कोई मूर्ख बनाए ऐसा नहीं होने देना चाहिए।  
 
जब कहानी ख़त्म हुई तब टीचर ने बच्चों से एक प्रश्न पूछा, “अच्छा बच्चों बताओ यदि ऐसा बच्चा तुम्हारी क्लास में हो तो क्या तुम उस बच्चे से दोस्ती करना पसंद करोगे ?”  
 
सारे बच्चे एक साथ चिल्लाए, “नहीं टीचर।” 
 
बिपाशा शांत थी साथ ही रूहानी यह कहानी सुनकर सोच रही थी कि क्या यह कहानी उसके लिए है। उसे भी अपनी गलती का एहसास हो रहा था। इतनी शिक्षा बिपाशा को उसकी गलती का एहसास कराने और उसे बदलने के लिए काफी थी। वह सब कुछ समझ गई थी और शर्मिंदा भी थी।  
 
उस दिन के बाद बिपाशा ने अपनी गलत आदत हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ दी। वह शेयरिंग करना भी सीख गई। 
 
यह सारी बातें टीचर ने अनामिका को बताईं।  अनामिका ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, अरे वाह आपने तो दोनों बच्चियों को सही रास्ता दिखा दिया।  
 
रूहानी की मम्मी बहुत ख़ुश थी।  वह सोच रही थीं कि रूहानी की टीचर का यह तरीका कितना असाधारण, कितना प्रशंसा करने योग्य था। ना डांटा, ना उसके घर पर शिकायत की, ना उसे सबके समक्ष शर्मिंदा किया। सिर्फ़ एक कहानी से उन्होंने उस बच्ची को बदल दिया साथ ही रूहानी को भी ।  
 
यह होती है एक अच्छे शिक्षक की पहचान। बच्चे के मन को उन्होंने समझा और एक मनोचिकित्सक की तरह उसकी गलतियों का उसे एहसास कराते हुए कहानी के द्वारा उसे सही रास्ता भी सिखा दिया। 
 
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक