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जीवन की कठोर वास्तविकता यह है कि हँसी-ख़ुशी का समय पँख लगाकर जाने किस पुरवाई के साथ निकल लेता है लेकिन तकलीफ़ का, पीड़ा का, अकेलेपन का समय जैसे वहीं ठहर जाता है, धुंध भरे रास्तों में न जाने कहाँ छिपा लेता है समय अपने आपको, फिर उसमें से निकलकर कभी भी आ खड़ा होता है सामने जैसे हमें चिढ़ाना चाहता हो |
उस घटना के बाद भानुमति बिलकुल अकेली रह गई थी, एकाकी ! तन और मन दोनों ! स्वयं को सँभालने में असमर्थ पाती हुई सी ! पैट, पत्नी दोनों की मन:स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो चुकी थी कि एक-दूसरे को सह पाना भी कठिन होता जा रहा था| भानु के गर्भ की बात सुनकर उसने जो प्रतिक्रिया दी थी, उससे भानु को ऐसा महसूस हुआ जैसे राज शायद में के गर्भ से उत्पन्न ही नहीं हुआ था, ऊपर से किसी पेड़ से जैसे यूँ ही टपक गया था |उसने अपनी गर्भवती पत्नी की परवाह करने के स्थान पर और भी अधिक समय बाहर रहना शुरू कर दिया था |
राजेश भानुमति के उभरते हुए पेट को देखकर इतनी गंदी शक़्ल बना लेता मानो उसने कोई बड़ी घिनौनी वस्तु देख ली हो | भानु का मन करता, उसके सड़े हुए चेहरे पर थप्पड़ रसीद करती रहे और तब तक न छोड़े जब तक वह उससे अपने हर कृत्य के लिए माफ़ी न माँग ले | उसने तो कुछ किया भी नहीं था और न जाने कितनी बार माफ़ी मांगी थी उससे, आखिर कब तक ? भानु जानती थी कि वह कहाँ जाता है ? किसके साथ रहता है ? लेकिन उसे अब कुछ भी नहीं कहना था | राज की ज़रूरतें पूरी हो रही थीं और भानु का एकाकीपन बढ़ता जा रहा था ---लेकिन ठीक था न ! इस प्रकार एक छत के नीचे रहकर जानवरों की तरह रहना, उसके लिए अधिक कठिन था | यह तो उसने बिलकुल ही सोच लिया था कि अगर राज ने उसे मानसिक या शारीरिक रूप से कष्ट दिया तब वह सीधी रिपोर्ट ही कर देगी | कोई तब तक ही समझ सकता है जब तक समझना चाहे और उससे बार-बार किसी एक विषय पर बात करना जैसे दीवार पर सिर मारना ! वह बिलकुल तैयार नहीं थी अपना सिर दीवार से फोड़ने के लिए !व्यर्थ में भैंस के आगे बीन बजाना ---नहीं भैंसे के आगे --उसके मन ने सोचा |
भानु अपने आपको एक सकारात्मक ऊर्जा देना चाहती थी, अपने गर्भ के बच्चे के लिए उसे किसी नकारात्मकता, नेगेटिविटी की ज़रुरत नहीं थी |अपने गर्भ के बच्चे को महसूसते हुए उसने मुस्कुराकर अपने उदर पर हाथ फेरा और बड़े विवेक से सोचा कि वह अपने बच्चे के लिए एक कंफ़र्टेबल, सकारात्मक वातावरण तैयार करेगी| अच्छी पुस्तकें पढ़ना, सूदिंग संगीत सुनना, स्वास्थ्य-वर्धक भोजन --ये सब उसने भावी मेहमान की तैयारी के लिए ज़रूरी थे|
भानु की दृष्टि में उसका बच्चा जीवन की बेहद महत्वपूर्ण इकाई था और उसके जन्म का स्वागत उसे अकेले ही करना था, यह वास्तविकता उसे स्वीकार करनी थी |इस 'एलोन' शब्द को उसे अपने मन से खरोंचकर बाहर फेंक देना था | अब उसका बच्चा उसके पास था, क्यों वह अपने आपको एकाकी, अकेला समझने की हिकारत करे ?लेकिन फिर भी इंसान तो थी, एक अलग देश में, परिवेश में --कभी जब राजेश और रिचार्ड के शब्द उसने कानों में आ टकराते, वह खुद को कमज़ोर महसूस करने लगती |
रिचार्ड उससे बात करता रहता और भानु को अपने ऊपर क्षोभ होता, पहले उसे लगा था कि रिचार्ड उससे संबंध स्थापित करने के लिए ही, उससे मित्रता का हाथ बढ़ा रहा था लेकिन अब जो वह बात करता, उसमें उसे मित्रता दिखाई देती और यह भी बड़े स्पष्ट रूप से समझ में आता कि उसका एक और सबसे बड़ा 'वैल-विशर' वही था |
जब से उसने बच्चे की बात की थी, बच्चे का बाप यानि राज तो लगभग उससे कट ही गया था, एक तरह से उससे अलग ही हो गया था | उसकी परवाह करने वाला कोई भी नहीं था वह बेहद व्यस्त व्यक्ति था लेकिन भानु की गर्भावस्था देखकर वह कैसे भी थोड़ा सा समय निकालकर उसके पास आ जाता था | शनैः शनैः उसकी रिचार्ड से अच्छी मित्रता होती जा रही थी | अब भानु को रिचर्ड का आना न तो बुरा लगता और न ही उसे इरादे उसे खराब लगते | रिचार्ड भी कभी उससे कोई ऎसी बात नहीं करता था जो उसे पसंद न हो | जैसे जानता हो कि गर्भवती स्त्री को किस प्रकार का ट्रीटमेंट मिलना चाहिए |
रिचार्ड ने भानु को बताया कि वह हिंदी और बांग्ला सीखने का प्रयास कर रहा था | उसे 'रवींद्र-संगीत 'में बेहद रूचि थी और वह बांग्ला के साहित्य को उसी भाषा में पढ़ना चाहता था | हिंदी बोलना उसे अच्छा लगता था --उसने रट लिया था --'मुझे अकेला छोड़ दो' कभी-कभी भानुमति उसके बचकाने रवैये पर हँस पड़ती थी | वह भानु से कहता कि वह उसे हँसती हुई बहुत अच्छी लगती है | अब भानु को उसके मुँह से यह सुनना अच्छा लगने लगा था | वह ऐसा कहता तो भानु और भी खुलकर-खिलकर हँस पड़ती |
रिचार्ड कहता था कि वह जल्दी से हिंदी सीखकर उसकी सारी कविताएँ पढ़ेगा | कभी राजेश भी उससे कहा करता था कि भानु की सभी कविताएँ उसके दिल में उतर जाती हैं | वह कहा करता था कि कविता की कोमल, कामिनी सी अनुभूति भानु को अपने पास रखेगा | ऐसा राजेश आखिर कहाँ खो गया था? भानु के मन में अभी वे बातें घूमती रहतीं, कहाँ आसान होता है किसी प्रेम को इस प्रकार भुला देना लेकिन अब राज को वह दुःख और अफ़सोस से याद करती लेकिन मन में कहीं पीड़ा तो होती ही थी | अब उन दिनों का लौटकर आना कठिन ही नहीं असम्भव सा ही था | उसके साथ एपार्टमेंट शेयर करना लेकिन इस गर्भावस्था में मज़बूरी थी |बच्चे के जन्म के जुछ समय बाद में कुछ सोचेगी, उसने मन में निर्णय ले लिया था |
अब उसे रिचार्ड के साथ समय बिताना अच्छा लगने लगा था | एक दिन बातों ही उसने भानु को बताया था कि रुक ने उसे विवाह के लिए प्रपोज़ किया था |
"दैन ?" भानु ने आगे जानना चाहा |
"हाऊ कैन आई मैरी ए लेडी लाइक हर ----?" उसने उल्टा भानु पर ही प्रश्न दाग दिया |
"बट यू वांटेड एन इंडियन लेडी टू मैरी ---"
"यूं थिंक शी इज़ ए लेडी, आई कैन हैव रिलेशन विद ?" रिचार्ड तुरंत बोल उठा |
"शी इज़ एन इंडियन लेडी ---" भानु अब रिचार्ड से इतनी खुल गई थी कि उसे टीज़ कर सकती थी | दोनों एक-दूसरे के साथ काफ़ी कम्फर्टेबल हो गए थे | हल्का-फुल्का मज़ाक चलता रहता | इससे भानु का एकाकीपन दूर भी होता और वह प्रसन्न भी रहती |
"आई एम सरप्राइज़्ड भानुमति, इज़ शी एन इंडियन लेडी ? " रिचार्ड ने उसीको पूछ लिया |
"शी लव्ज़ राजेश एंड विल मैरी मी, आई एम सरप्राइज़्ड शी इज़ एन इंडियन, व्हाई ?" रिचार्ड ज़ोर से हँसा तो भानु भी खिसिया गई |
इस 'व्हाई' के साथ वह भी जुड़ी थी --उसका मन उससे बार-बार पूछता ---व्हाई ? व्हाई ?व्हाई ?"
उसके पास भी कोई उत्तर कहाँ था ? वह अचानक अस्वस्थ होने लगी तो रिचार्ड को मौन हो जाना पड़ा | थोड़े दिनों की मित्रता से कितना समझ गया था वह उसे !
"डिड यू राइट योर पेरेंट्स एबाउट ---?"
"एबाउट व्हाट --?"
"योर रिलेशनशिप विद राजेश ---?"
"नो, आई रोट एबाउट द प्रेग्नेंसी ---"
"शी मस्ट बी वेरी हैप्पी ----"
"ऑफ़कोर्स--यस ---" भानु की बात माँ से हुई थी और माँ-बाबा बहुत खुश थे | उन्हें बेचारों को क्या पता कि क्या चल रहा था उनकी प्यारी बिटिया की ज़िंदगी में !!
"आई स्वेयर भानु, कितना खुशी का बात है !!"
"ओह! क्या बात है ---रिचार्ड ! तुम हिंदी बोल रहे हो ?"
"यस, नाऊ आई कैन रीड 'फर्स्ट' हिंदी बुक एन्ड आई स्पीक विद माई टीचर --"
:व्हाई नॉट विद मी ? मरे साथ में क्यों बात नहीं करते ?"
"नो, नॉट यट ---योर हिंदी ीज़ वैरी गुड, स्वीट एंड लिट्रेरी ---"
भानुमति हँस पड़ी --
"तुम हँसता बौत स्वीट हो --यू ऑलवेज़ मस्ट स्माइल बानू, गॉड ब्लैस यू ---"
रिचार्ड उसे जब भी मिलता दुआ ही देता लेकिन वह कहाँ जानता था की उसी हँसी तो सात समुन्दर पर छिपी थी | यहाँ तो वः खोखली हँसी हँस सकी थी। एक आवरण युक्त हँसी !अब वह खुद को कुछ तनावमुक्त महसूस करने लगी थी |उसका गर्भ बढ़ता जा रहा था और राजेश हे तो उसका चेहरा भी देखना बंद कर दिया था |