Jivan ka Ganit - 9 in Hindi Fiction Stories by Seema Singh books and stories PDF | जीवन का गणित - भाग-9

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जीवन का गणित - भाग-9

भाग - 9

मॉर्निंग ट्रेनिंग को अभी चार ही दिन हुए थे, कि नए मिले सर्कुलर ने धमाका किया कि थर्ड ईयर के सेकिंड सेमेस्टर एग्ज़ाम्स नियत तारीख़ से एक हफ्ते पहले ही स्टार्ट होने वाले थे।वैभव और आयुषी दोनों ही सकते में आ गये थे, पहले दूसरे साल के एग्जाम इतने कठिन नहीं लगे थे, तैयारी के लिए पूरा वक्त मिला था। मगर अब तो जैसे दुनिया भर की ज़िम्मेदारियाँ उन पर आ लदी थीं। उस पर हॉस्पिटल की ड्यूटी भी और ज़्यादा थका देने वाली होने लगी थी। कुछ और करने की हिम्मत नहीं बचती दिन ख़त्म होते-होते। पढ़ने के लिए वक्त कहां था उनके पास।

वैभव और आयुषी दोनों अपने-अपने ढंग से तैयारी में जुटे थे।

वैभव साथ ही एक और भी तैयारी करने में लगा था, आयुषी का जन्मदिन जो आने वाला था। उसे पता था कि इस बार आयुषी घर नहीं जा पा रही थी। वैसे तो बनारस और लखनऊ के बीच कोई लंबी चौड़ी दूरी नहीं थी, पर घर जाने का मतलब था बेवजह दो दिन खराब करना। आयुषी ने साफ़ बोल दिया था अपने घर, कि वे लोग पार्टी करना चाहते हैं तो कर लें, पर इस बार वह नहीं आ पाएगी।

कैलेंडर पर बढ़ती तारीख़ से वैभव के पेट में उड़ती तितलियों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इस बार वह आयुषी के लिए कुछ सरप्राइज प्लान कर रहा था।

देखते ही देखते, तीन दिन और बीत गए। आखिर “द बिग डे” आ ही गया।

रात में बारह बजते ही वैभव का मैसेज आयुषी के मोबाइल पर फ्लैश हुआ। वह उसको पढ़ती या कोई रिप्लाई करती, कि तब तक घर से वीडियो कॉल आ गया। फ़ोन पर मां का नंबर फ्लैश हो रहा था।

"हैलो दीदी! विश यू वेरी हैप्पी बर्थ डे।" ये छोटे चाचा का बेटा, अमय था। उसके साथ ही बड़े चाचा चाची और उनकी बेटी ने भी विश किया।

करीब दर्जन भर लोगों के विश करने के बाद मम्मी नज़र आई, "जन्मदिन मुबारक हो, मेरे बच्चे!"

"थैंक यू, मां!" आयुषी ने उत्तर दिया।

पीछे से इतना शोर मच रहा था घर में, किसी की बात समझ नहीं आ रही थी। आयुषी हंसती-मुस्कुराती रही, और सबकी बर्थडे विशिस समेट कर फ़ोन कट कर दिया आयुषी ने। वह अच्छी तरह से जानती थी कि अभी बात करती रही तो घरवाले दो-तीन घंटे यूं ही निकाल देंगे।

मगर उसे सोने से पहले किसी और से भी बात करनी थी, जो फ़ोन के उस पार उसके फ़्री हो जाने का इंतज़ार कर रहा था।

"हाय, विश यू अ वेरी हैप्पी बर्थडे!"

"थैंक्स!"

"और? तेरी फैमिली ने छोड़ दिया तुझे? मै तो सोच रहा था पूरी रात बातें चलेंगी उनकी… अपना नंबर तो सुबह ही आएगा!" वैभव ने हंसते हुए पूछा।

“अरे पूछ ही मत! मैंने ही बोला फ़ोन रखने को, नहीं तो वो लोग तो सच में पूरी रात ही जगाये रखते मुझे" आयुषी के स्वर में हमेशा जैसी खनक नहीं थी, जिसकी कमी को वैभव ने तुरंत पकड़ लिया।

"क्या बात है? बहुत थकी हुई साउंड कर रही है?" आयुषी के स्वर की उदासी वैभव तक पहुंच रही थी सो उसने पूछ ही लिया।

"हां, यार। पढ़ाई कर रही थी, थक गई हूं। कल संडे है, मॉर्निंग ट्रेनिंग से भी फुर्सत रहेगी, आराम से उठूंगी।" आयुषी ने कहा।

वैभव ने दुबारा जन्मदिन की शुभकामनाएं दी और कल मिलने के वादे के साथ फ़ोन काट दिया।

वैभव ने बहुत कुछ प्लान करके रखा था आयुषी के लिए। पिछले तीन सालों के साथ में पहला मौका था जब आयुषी का जन्मदिन मनाने का मौका मिला था उसे। वह अपनी स्पेशल का बर्थ डे बहुत स्पेशल ढंग से मनाना चाहता था।

बड़ी मेहनत के बाद वह आयुषी को हॉस्टल से बाहर आने के लिए राज़ी कर पाया था, क्योंकि वह जाने किस चिंता में कहीं जाना ही नहीं चाह रही थी। पहले पढ़ाई का बहाना किया, फिर थकान का। जब दोनों बहाने वैभव के आगे न टिके, तो तबियत खराब होने का न फेल होने वाला बहाना बना दिया।

"ना तो तुझे बुखार है, और न ही तेरा गला खराब है फिर बाहर जाने में बहाने क्यों?"

वैभव देर से खुशामद करते करते थक गया था। आयुषी उसकी बात सुनने को तैयार तक ना थी।

"आज नहीं,वैभव फिर कभी, प्लीज़ बात समझा कर ना!"

आयुषी ने वही घिसापिटा सा जुमला फिर से दोहराया तो वैभव भड़क उठा।

"हद करती है तू भी यार बर्थ डे आज है और बाहर फिर कभी चलेंगे! क्या मतलब है इस बात का?"

"प्लीज़ मूड खराब मत कर वैभव,आज मेरा मन नहीं है कहीं भी जाने का।" आयुषी ने अनमनेपन से कहा तो वैभव हत्थे से ही उखड़ गया।

"कितनी सेलफिश हो जाती है तू कभीकभी, lसिर्फ अपने बारे में बात करती है मैं तो जैसे तेरे लिए कुछ हूं ही नहीं।" अचानक वैभव उठ खड़ा हुआ।

"चल ठीक है, फिर मैं चलता हूं।जैसा तुझे सही लगे आखिर बर्थ डे भी तो तेरा ही है।"

वैभव के स्वर में गहरी उदासी थी। आयुषी ने उसकी हफ्तों की तैयारी पर पानी फेर दिया था।

"तू इतना अपसेट क्यों हो रहा है?" शायद इस बार वैभव की उदासी आयुषी तक पहुंच गई थी। उसने घास पर बैठे बैठे ही दूसरी ओर मुंह करके खड़े वैभव का हाथ थाम लिया।

"तुझे क्या?"वैभव ने हाथ झटकने की कोशिश की मगर आयुषी जैसे इसके लिए पहले से ही तैयार थी।उसने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली थी।

"छोड़ मेरा हाथ,जाने दे मुझे…" वैभव ने बिना आयुषी की ओर देखे अपना हाथ छुड़ाना चाहा।

"तो तू अब मेरी तरफ़ देखेगा तक नहीं?" आयुषी ने छेड़ने के अंदाज़ में वैभव से कहा तो वैभव ने सिर हिला कर इनकार कर दिया।

"तुझे काट लूं तब भी नहीं देखेगा…" कहते हुए आयुषी ने वैभव की कलाई पर अपने दांत गड़ा दिए। वैभव टस से मस न हुआ।

"अच्छा तेरे साथ चलूं तो? तब तो पलट कर देखेगा या तब भी नहीं देखेगा!" आयुषी ने अपनी आवाज़ में शरारत भरते हुए कहा तो वैभव ने तुरंत पलट उसकी ओर देखा तो आयुषी खिलखिला कर हंस पड़ी।

"तू नहीं जाएगी ना?" वैभव ने अविश्वास भरे अंदाज़ से आयुषी की ओर देखकर अपना सिर झटका।

"बस पांच मिनट दे, अभी रेडी होकर आती हूं।" आयुषी ने अपनी चमकीली आंखे झपकाते हुए कहा तो जैसे वैभव का चेहरा हज़ार वाट के बल्ब की तरह दमक उठा।

"पांच नहीं तू दस मिनट लेले, मैं यहीं इंतज़ार कर रहा हूं तेरा।" वैभव ने अपनी खुशी जताते हुए कहा। आयुषी दौड़ती हुई हॉस्टल रूम की बढ़ गई। वैभव ने मोबाइल निकालकर मैसेज चेक किए और फटाफट रिप्लाई भी कर दिया। अपनी पहनी हुई शर्ट के कॉलर सेट कर अपने आप को जांचा परखा। फिर टकटकी लगाकर हॉस्टल के गेट की ओर देखते हुए आयुषी का इंतजार करने लगा।