Pal Pal Dil ke Paas - 18 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पल पल दिल के पास - 18

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पल पल दिल के पास - 18

भाग 18

अभी तक आपने पढ़ा की नीता मिनी को ले कर नियति से मिलाने गई थी। उसे बाहर से आते हुए नीना ने देखा था। पर ये ना तो नीता ने बताया की वो नियति से मिनी को मिलाने ले गई थी, ना ही नीना अंदाजा लगा पाई। बात छुप गई थी। तभी अचानक मिनी के मुंह से निकला शब्द वहां मौजूद सभी के चेहरे का रंग उड़ा गया। जैसे ही मिनी ने कहा, "मम्मा ने दिया।" नीता के चेहरे पर घबराहट छा गई। वो जल्दी से मिनी के पास आ गई और बात बिगड़ने से संभालने के लिए मिनी के निकट आकर उससे कुछ कहने को ही थी की मिनी को अपने गोद में समेटते हुए नीना ने नीता से परे कर दिया। नीता खुद को असहाय सा महसूस करने लगी। वो बात को संभाल कर दूसरा रुख देना चाहती थी। पर नीना ने उसकी कोशिश को असफल कर दिया। नीता परेशान थी की वो बात को अब कैसे संभाले?

शांता जो मिनी की साफ सफाई कर वापस जा रही थी, मिनी की बात सुनकर अपने जगह जहां खड़ी थी वही जड़ हो गई। अब आने वाले तूफान ने उसे भी परेशान कर दिया। उसे भी कोई उपाय नहीं सूझ रहा था कि इस अचानक आई समस्या से कैसे निपटा जाए?

नीना देवी जानती थी की अगर नीता मिनी के करीब आयेगी तो सच छुप जायेगा। वो मिनी की कही बात को घुमा फिरा कर दूसरा रुख दे देगी। इस आइए नीता को परे कर दिया।

नीना देवी को सच जानने का बस अब एक ही तरीका समझ आया की मिनी से प्यार से पूछे। नीना देवी ने मिनी को दुलारते हुए उसी की तरह तोतली भाषा में पूछा, "अले…..! हमाली… मिनी को चॉकलेट किछने दिया..? क्या उछकी मम्मा ने दिया चॉकलेट….?"

मिनी दादी से चिपकी हुई थी, उनकी आंखों में देख "हां"

में सर हियाया। मिनी का सर हिला कर "हां" करना था की तुरंत ही नीना देवी ने मिनी को खुद से अलग बिठा दिया। नन्ही मासूम मिनी कुछ समझ नहीं पाई की ऐसा क्या कर दिया उसने की दादी ने उसे गोद से उतार दिया। फिर क्रोध भरे स्वर में शांता की ओर देख कर बोली, "शांता…. मिनी को ले कर उसके कमरे में जाओ।"

शांता "जी.. दीदी" कहते हुए मिनी को ले जाने के लिए बढ़ी। मिनी का अभी से अपने कमरे में जाने का मन नहीं था। वो नीता के साथ अभी कुछ और देर तक रहना चाहती थी। इसलिए शांता को अपनी ओर आते देख रोने लगी। शांता के गोद में लेते ही "नीता मौसी…

नीता मौसी…. " कहते हुए नीता की ओर देख कर अपने नन्हे नन्हे हाथों को उसकी ओर फैला कर रोने लगी।

मिनी को रोते देख नीता से रहा नही गया। वो तड़प उठी बोली, "रोओ नही मिनी बेटा! मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूं ना तुम्हारे कमरे में।" इतना कह कर वो भी शांता और मिनी के साथ जाने को हुई। नीता ने सोचा कि अगर वो हट जाएगी यहां से बात कुछ समय के लिए टल जायेगी। फिर कुछ समय बीत जाने पर नीना दीदी का गुस्सा भी शांत हो जायेगा। उसके बाद वो बात संभाल कर उन्हें कुछ भी समझा देगी।

नीना देवी नीता को वहां से कैसे जाने देती.? नीता की खबर लेने के लिए ही मिनी को ऊपर के कमरे में भेज रही थी। जब नीता ही चली जायेगी तो फिर मिनी को भेजने का फायदा ही क्या होगा? वो मिनी को बहलाते हुए बोली, "मिनी अभी थोड़ी देर में नीता मौसी तुम्हारे पास जायेगी। जाओ तब तक शांता दादी तुम्हारे कपड़े चेंज कर देगी। तुम दूध पी लो फिर तुम मौसी के साथ आराम से देर तक खेलना।"

मिनी ने अपनी दादी की बातों का भरोसा कर लिया और चुप हो गई। वो समझी रोज की तरह अभी नीता मौसी उसके साथ खेलेगी। शांता उसे लेकर ऊपर चली गई। नीता दीदी की आज्ञा मान कर नीचे ही रुक गई।

नीता भी अब जानती थी की जीजी के क्या सवाल होंगे? उसे रोका है तो इसी कारण से। उसकी घबराहट अब गायब हो गई थी। उसने सोचा मैने कौन सा पाप किया है ? जो मैं इनके सवालों से डरूं! मैने एक तड़पती मां को उसके बच्चे से ही तो मिलवाया है।ये कोई अपराध नहीं बल्कि पुण्य ही है।

नीना देवी गुस्से से तो भरी ही ही थी क्रोध से बोली, "वाह … नीता वाह….जिसकी तुम्हारे जैसी बहन हो ना.. उसे तो दुश्मन की कोई जरूरत ही नही है..! मेरी आंखों के सामने मेरे घर से मेरी ही पोती को लेकर तुम चली जाती हो उस मनहूस औरत से मिलवाने..! और मुझे भनक भी नहीं लगती। ये खेल पता नहीं कब से चल रहा है? मेरी नाक के नीचे। यहां मैं मिनी की कस्टडी के लिए दिन रात एक किए हूं, पानी की तरह पैसे बहा रही हूं और तुम मेरी ही जड़ खोदने पर तुली हो। मैं चाहती हूं उस…

निय…. (फिर गुस्से से) मैं तो उसका नाम भी अपनी जबान पर नहीं लाना चाहती। उस औरत को अदालत में मिनी पहचाने ही ना। तो फिर वो कैसे ले जा पाएगी? पर तुम हो ना मेरे हर मंसूबे की ध्वस्त करने के लिए।"

बीच में नीता बोली, "जीजी सुनो तो… वो नियति मुझे अचानक मिल गई थी।"

नीता की बात को बीच में ही काटते हुए नीना देवी चिल्ला पड़ी, "बस करो...नीता बस… करो और कितना झूठ बोलोगी? मुझे धोखा देते हुए तुम्हे शर्म नही आई!"

नीता वैसे तो बहुत ही सहन शील और गंभीर थी। पर इन आरोपों को सुन कर उस का धैर्य भी अब जवाब दे गया था। अब वो अपनी बड़ी बहन के उल्टे सीधे आरोप को झेलने को बिलकुल भी तैयार नही थी। जब मैं गलत नहीं हूं तो दीदी के आरोप क्यों सहूँ..? अब उसने एक निर्णय अपने मन में ले लिया इस पार या उस पार। अब वो खुल कर सच का साथ देने को तैयार थी। और सच नियति के साथ था। उसे बेटी माना था तो उसका साथ देने से पीछे क्यों हटना..? अब चाहे जीजी नाराज हो या उससे रिश्ता तोड़ ले..? अब वो नियति का साथ हर हाल में देगी। अब ये निश्चय नही डिगेगा नीता ने मन ही मन सोच लिया।

नीता गंभीर स्वर में एक एक शब्द को पूरे विश्वास से बोलना शुरू किया। "जीजी आपने सदा ही अपने मन की की है, कभी दूसरे के बारे में नही सोचा। मैने हर सही गलत में आपका ये सोच कर साथ दिया की आप मेरी बड़ी बहन हो। पर नही जीजी अब नहीं… । आपको मयंक के जाने का बहुत बड़ा दुख है, मुझे भी आपसे कम दुख नहीं है।" इतना बोलते हुए नीता की आवाज रूंध गई। अपने आंखो में भर आए आंसू को पोछते हुए फिर बोली, "मगर उसमे मेरा या आपका कोई वश नहीं था। पर आपने कभी नियति के बारे में सोचा? उसकी मांग तो भगवान ने उजाड़ दी.. और गोद… आपकी अहंकार और नफरत की वजह से सुनी हो गई।वो बिचारी किसे देख कर जिए? उसकी ममता अपनी छोटी सी बच्ची के लिए कितना तड़पती होगी!

हां मैं मिलाने ले कर गई थी, और ये पहली बार नहीं था। इसके पहले भी मैं मिनी को लेकर नियति से मिलाने गई हूं। मैं मां तो नही बन पाई जीजी.. पर मेरे अंदर एक मां का दिल है। पर आप मां बन कर भी एक मां की ममता को नही समझ पाई! मैं एक मां से उसके बच्चे से मिलाने का नेक काम जरूर करूंगी। अब आपको जो समझना है समझ लीजिए।"

नीना, के कानों में नीता की बाते गर्म शीशे की तरह उतर रहे थे। वो जोर से दहाड़ी "नीता!!!!!" नीना ने कभी भी अपनी मां सामान दीदी की अवहेलना या उनसे कोई बहस नहीं की थी। आज जब नीता ने नीना को इतना सब कुछ कह कर सच का आइना दिखा दिया । ये नीना देवी से सहन नही हुआ।

अपनी बात कह कर बिना बहन की कोई बात सुने नीता तेज कदमों से सीढ़ी चढ़ती हुई ऊपर चली गई। वहां कमरे में मिनी खेल रही थी। जैसे ही नीता पर उसकी निगाह पड़ी खुशी से उसने अपनी बाहें फैला दी। नीता ने मिनी को अपनी बाहों में भर लिया। उसे गले से लगा कर नीता भावुक हो गई। उसे पता था की अब शायद ही वो मिनी को मिल पाएगी। कब मिल पाएगी कुछ पता नहीं..? उसे जी भर प्यार किया और कल फिर जल्दी आने का वादा कर मिनी से बाय कर विदा लिया। नीता जानती थी की वो मिनी को झूठी तसल्ली दे रही है। पर मासूम बच्ची का दिल वो नही तोड़ दे सकती थी ये कह कर की कल वो उससे मिलने नही आयेगी। नीता मिनी से मिल कर नीचे आई और बिना नीना से कुछ कहे सीधा अपने घर के लिए चली गई। उसके एक एक कदम भारी हो रहे थे। इस घर का उसके जीवन में एक अलग ही स्थान था। अब कल से उसे इस घर में नही आना है। ये खयाल उसे दुखी कर रहा था।

क्या इस तरह नीता का विरोध नीना के मंसूबे पर पानी फेर देगा? क्या नीता के सहयोग से मिनी की कस्टडी नियति को मिल जायेगी? पढ़े अगले भाग में।