innovation in Hindi Short Stories by praveen bhargava books and stories PDF | नवसृजन

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नवसृजन

"पूर्वी मुझे उम्मीद नहीं है कि, स्थिति जल्दी ठीक होने वाली है। क्यों न तुम कुछ दिन के लिए अपने घर चली जाओ? मैं भी गाँव चला जाता हूं, वहां खेती..."

पूर्वी ने बात काट दी "वहां खेती करोगे ?"

"समझने की कोशिश करो पूर्वी, नौकरी के बिना यहां रहना संभव नहीं है। मुझे उम्मीद नहीं है, ऐसे हालात में मुझे कहीं नौकरी मिलेगी। तुम्हे अपने साथ लेकर जाना,मुझे ठीक नहीं लग रहा।"

पूर्वी उदास होकर बोली "क्या मैं इतनीं कमजोर हूँ कि आपके साथ गाँव में नहीं रह सकती?"

"बात कमजोर होने या न होने की नहीं है। तुम्हे वहां रहने की आदत नहीं है और तुम साथ रहोगी तो मेरा पूरा ध्यान तुम्हारी तरफ होगा। मैं वहां जाकर घर की हालत ठीक करता हूं, फिर तुम भी अा जाना।"

"मैं समझती हूं प्रशांत, जैसा तुम ठीक समझो। हिम्मत रखो, ये समय भी निकल जाएगा।

प्रशांत, महानगर में एक अच्छी कम्पनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत था। नौकरी लगते ही उसने, अपने कॉलेज की दोस्त पूर्वी से शादी कर ली। सब अच्छा चल रहा था पर, अचानक आई वैश्विक महामारी के चलते कंपनी का सारा काम बंद हो गया। बहुत सारे लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। प्रशांत को समझ अा गया था कि, नौकरी के बिना महानगर में रहना संभव नहीं है।उसने गांव जाने का निर्णय लिया। पूर्वी को उसके मायके छोड़कर, प्रशांत अपने गांव अा गया।

गांव में प्रशांत के काका काकी रहते थे। प्रशांत के माता पिता के गुजरने के बाद,काका ने ही उसका पालन पोषण किया था। वहां प्रशांत की थोड़ी बहुत खेती थी, जिसकी देखभाल भी काका ही करते थे। गांव जाते हुए प्रशांत पूरे रास्ते सोचता रहा - "काका ने कितना किया है मेरे लिए, अब फिर से उनके ऊपर बोझ बनकर रहना। जीवन मैं ऐसा समय भी आएगा इसकी कल्पना नहीं की थी।"

गांव आकार प्रशांत ने अपने घर की हालत ठीक की।काका से मिलकर उन्हें सारी स्थिति के विषय में बताया। काका से बात करके पता चला कि, गांव में पिछले दो साल से बारिश नहीं हुई। सूखे की स्थिति है। खेती की हालत खराब है। गांव वाले किसी तरह गुजारा कर पा रहे हैं।

प्रशांत की सारी रात सोचते हुए निकली, एक उम्मीद थी, वह भी ख़तम होती दिख रही है। कोई रास्ता समझ नहीं अा रहा। जीवन कहां ले जाएगा।

सुबह काका ने प्रशांत को उदास देखकर समझाया - "बेटा तुम थोड़ी सी विपदा में ही हिम्मत हार बैठे। इन ग्रामवासियों को देखो, दो साल से बारिश नहीं हुई है, फिर भी हिम्मत नहीं हारे। जीवन में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। संघर्ष ही जीवन है। भगवान की कृपा रही, तो इस साल बारिश अच्छी होगी। तुम जब तक यहां हो, कुछ ऐसा करो जिससे ग्रामवासियों को भी तुम्हारी शिक्षा का लाभ हो।

जहां चाह वहां राह, प्रशांत को भी काका की बात ठीक लगी। अपनी पढ़ाई और नौकरी के अनुभव का उपयोग वह यहां भी कर सकता है। उसने खेती के बारे में और अधिक जानकारी लेना प्रारंभ किया। किस तकनीक से खेती की जाए, कौन सी फसल ग्राम की जलवायु के अनुकूल है। कम लागत में ज्यादा पैदावार कैसे की जाए ऐसे अनेक विषय थे, जिन्होंने प्रशांत को सोचने की एक दिशा दी। खेती को भी लाभदायक व्यापार में कैसे बदला जाए प्रशांत को समझ अा गया था। अब प्रतीक्षा थी बारिश की।

ईश्वर की कृपा से नभ में मेघों की छटा दिखाई देने लगी। बारिश ने पूरे गांव में उत्साह भर दिया है।

प्रशांत सोचने लगा, ग्रीष्म ऋतु में यही स्थान कितना निर्जन प्रतीत होता था। बारिश होते ही, जैसे जीवन का संचार हो गया है।

निर्जन हो चुकी शाख में, कोंपल अंकुरित हो रही है। भूमि हरित त्रणो से आच्छादित है। इन्द्रधनुष अपने रंग बिखेर रहा है। मयूर नृत्य कर रहे हैं। पक्षियों का कलरव अत्यंत मधुर है। विभिन्न प्रकार के जीव जंतु दृष्टिगोचर होने लगे हैं। प्रकृति नव सृजन कर रही है। जीवन संचारित हो रहा है। भूमि वर्षा जल से अपनी क्षुधा शांत कर स्वयं हरित होकर, समस्त आश्रित जीवों का पालन पोषण कर रही है।

सुख - दुःख, दिन - रात्रि, धूप - छांव।
संपूर्ण जीवन का रहस्य तो इस बारिश में ही छिपा है।

वृक्ष ग्रीष्म,शीत सहकर भी अपने स्थान पर अडिग है।
मैं क्यों हतोत्साहित था जीवन से। जब मूक वृक्ष, पशु ,पक्षी, समस्त जीव तथा मेरे ग्रामवासी बारिश की प्रतीक्षा कर सकते हैं और अपने कर्म का त्याग नहीं करते, तब मैं कैसे पराजित होकर, एक ओर बैठ सकता हूं।

सूर्य का ताप, भूमि जल को शोषित न करे, तो बारिश होना संभव नहीं है।इसी प्रकार जीवन में संघर्ष न आए, तो जीवन का विकास संभव नहीं है।

प्रशांत ,पूर्वी को लेने चल पड़ा है। एक नवीन उत्साह के साथ एक नवीन जीवन की ओर...।


इति


✍️प्रवीण भार्गव