अन्तिम भाग-3
“आपको देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई अपना मिल गया हो” - वो ऐसे ही लिपटी हुई चलने लगी । नवीन के अन्दर प्यार का सैलाब उमड़ रहा था । समय गुजरता रहा और इस दौरान दो बार नवीन और शांति उसे शांति के घर भी ले गये । वो नवीन को कभी मना नहीं करती थी । परन्तु जब शांति इच्छा जताता था तो हमेशा कह देती कि तुम तो मेरे भाई हो । शांति ने भी कभी ज्यादा जोर नहीं डाला । साथ घूमना फिरना तो चल ही रहा था ।
एक दिन नवीन निशा को लेकर फाईव स्टार होटल मे गया जहां वो पहले भी कई बार जा चुका था । दोपहर बाद का समय था जब रैस्टोरैंट मे भीड़ भाड़़ बिल्कुल नहीं थी । चार कुर्सियों वाली गोल टेबल्स बीच मे लगी थीं और कांच की छत तक ऊँची पारदर्शी दीवार के साथ दो कुर्सियों वाली टेबल लाइन में लगी थीं । कांच की दीवारों से स्विमिंग पूल का नजारा दिखाई देता था । साइड की दीवार मे केबिन बने थे जिनमे छै आदमियों के बैठने के लिये बड़ी टेबल थीं जिनके दोनों ओर थ्री सीटर सोफा सैट लगे थे । ऐसे ही एक केबिन के सामने गोल टेबल पर नवीन और निशा बैठ गये । इधर उधर की बातें होने लगी । नवीन को गर्व महसूस हो रहा था कि फाईव स्टार होटल के महंगे रैस्टोरैंट मे वो एक खूबसूरत लड़की के साथ बैठा था । सामने केबिन मे कुछ कम उम्र के स्कूली लड़के लड़कियां आमने सामने बैठे हंसी ठ्टठा कर रहे थे । बाद मे उनकी अटैंशन नवीन और निशा की तरफ हो गयी । वो चुइंगम से गुब्बारा बना कर निशा और नवीन की तरफ देखकर फोड़ रहे थे जैसे कि उनका मजाक उड़ा रहे हों । नवीन निशा को महसूस हो गया कि वो उनकी तरफ देखकर ये हरकत कर रहे हैं । नवीन ने सिगरेट सुलगा रखी थी जिसके वो कश ले रहा था । तभी निशा को न जाने क्या सूझी कि सिगरेट नवीन के हाथ से लेकर एक गहरा कश लगाया और धुंआ केबिन की तरफ ऐसे छोड़ा कि बैठे हुए बच्चों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी और वो सब कुछ भूलकर खामोश हो गये ।
सरीन फिर एक दिन बोतल लेकर आ गया । नवीन और शांति दोनों कार मे बैठकर पीने लगे । नमकीन और टिक्की पहले ही ले लीं थी । साथ ही चार अंडों की भुर्जी भी बनवा ली थी । धीरे धीरे सुरूर आया तो सरीन को निशा की याद आयी । शांति को मालूम था कि दूसरे ऑफिस के तीन बंदे अशोक काला और निशा को लेकर अहलूवालिया के फार्म हाउस गये हैं । सरीन, नवीन और शांति ने अहलूवालिया का फार्महाउस देख रखा था । वो पहले भी वहां जा चुके थे । जब नशा अच्छा खासा हो गया तो सरीन गाड़ी लेकर फार्महाउस की तरफ चल पड़ा । आधे घंटे मे सब वहां पहुंच गये । फार्म हाउस की बिल्डिंग के बाहर ही नरेश काला टहल रहा था । बाकि तीनों बंदे और निशा अंदर थे । काला ने बताया कि वो निकलने वाले हैं । जैसे ही नवीन, शांति, सरीन और काला अन्दर गये वो तीनों बंदे दूसरे दरवाजे से निकल गये । सामने सोफे की कुर्सी पर निशा अकेली बैठी थी । वो तीनों को वहां देखकर चौंक गयी । काला ने उसे समझाया कि तीनों काम के लिये आये हैं ।
“मै थकी हुई हूँ” - निशा कुछ थके हुए अंदाज़ मे बोली ।
“कोई बात नहीं । थोड़ी देर आराम कर ले” - काला ने कहा । काला निशा से तू करके ही बात करता था ।
इतनी बात सुनकर सरीन लपक कर कार से बोतल, पानी और नमकीन आदि उठा लाया । फटाफट ग्लास मे डाल कर तीनों पीने लगे । काला तो पीता था नहीं सो अलग बैठ गया था । निशा अन्दर के कमरे मे जाकर लेट गयी थी । काला इंतज़ार कर रहा था कि थोड़ा आराम कर ले तो काम शुरू हो ताकि जल्द खत्म हो सके । उसे अंदाज़ नहीं था कि तीन ओर आ धमकेंगें ।
पन्द्रह बीस मिनट बीते होंगे कि नवीन अन्दर निशा के पास पहुंच गया । उसको देखकर निशा खुश हो गयी ।
“आप कहां से आ गये” - वो पूछने लगी ।
“सरीन को आना था । शांति ने पता दे दिया कि तुम यहां हो । मुझे भी साथ आना पड़ा”
थोड़ी देर बातें करते रहे और फिर एक दूसरे से लिपट गये। काफी देर रतिक्रीड़ा मे रम जाने के बाद दोनों अलग होने लगे तो नवीन को पता नहीं क्या पिनक चढ़ी, सायद सरीन से चल रही लाग-डांट कहीं दिमाग में बैठी हुई थी, कि निशा को कहा:
“सरीन को बिल्कुल नहीं देनी”
“ठीक है । जैसा आप कहो ।” - कुछ आश्चर्य से उसने नवीन को देखा फिर सोचकर जवाब दिया ।
नवीन पहले बाहर आया और बैठ गया । जल्दी ही निशा भी बाहर आ गयी और काला को कहा:
"चलो ।" - काला उसे आश्चर्य से देख रहा था ।
“अभी मै भी हूँ ।” - सरीन थोड़ा विचलित होकर बोला । तो वो इतनी दूर इसी काम के लिये आया था।
“चलो । मेरी तबियत ठीक नहीं है । अब मै कुछ नहीं कर सकती” - वो सरीन की बातों को अनसुना करते हुए काला से मुखातिब होकर बोली । शांति तो बिल्कुल शांत बैठा था जैसे उसे कुछ लेना देना नहीं था ।
“ऐसे कैसे जा सकती है” - सरीन अधिकार वाले अंदाज़ मे बोला ।
"चलो ! उठो अब ।" - निशा उठ खड़ी हुई और चलने की तैयारी करने लगी । वो कालिया की तरफ देख रही थी और सरीन की तरफ उसकी पीठ थी ।
सरीन को तैश आ गया और उसने जेब से नोटों का एक पैकेट निकाला और मेज पर फेंकते हुए बोला:
"पकड़ और अन्दर चल ।" - वो निशा के रेट से पांच गुना कीमत के नोटों का बंडल था जिसे सरीन ने जोर से थे मेज पर पटक दिया । इस आवाज़ ने निशा का बरबस ही ध्यान खींच लिया था । उसने मुड़कर मेज पर पड़े नोटों को एक नज़र देखा और पलट कर फिर कालिया से कहा:
"चलो मुझे जाना है ।"
सरीन गुस्से मे तमतमा रहा था । सब बाहर आ गये और सरीन ने बिना किसी को बैठाये गाड़ी स्टार्ट कर दी । बाकी सब पैदल थे और सबको वापस जाने के लिये गाड़ी की सवारी की जरूरत थी । सरीन थोड़ा आगे गाड़ी रोककर बोला :
“नवीन साहब आप आ जाओ । मै छोड़ दूँगा” - उसका मतलब था कि वो नवीन और शांति को ले जाने को तैयार था पर निशा और काला को वहीं छोड़ जाना चाहता था ।
“जायेंगे तो सब जायेंगे नहीं तो मै नहीं जाऊंगा” - नवीन ने जोर देकर कहा । वो किसी भी कीमत पर निशा को यहां सुनसान मे छोड़कर नहीं जा सकता था । सरीन गाड़ी लेकर निकल गया ।
काला और शांति दोनो आगे आगे चल रहे थे । नवीन और निशा थोड़ा पीछे साथ साथ चल रहे थे । बराबर बराबर चलते हुए दोनों कब एक दूसरे के हाथ मे हाथ दे बैठे पता ही नहीं चला । दोनों हाथ मे हाथ डाले चलते रहे थे । इतना नज़दीक तो वो कभी नहीं थे ।
इतना प्यार करने वाली वो भी मोटे पैसों को ठोकर मारकर चल देने वाली थी निशा ? वो वेश्या तो बिल्कुल नहीं थी ।
समाप्त