Rasbi kee chitthee Kinzan ke naam - 12 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 12

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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 12

छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया?
हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं!
पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने बस में कहां थी? मैं भी तो बावली हुई घूम रही थी। उतावली कहीं की। बस, अब पड़ गया चैन? अपनी ही आंखों से देख लिया न सब कुछ!
बेटा, मुझे माफ़ कर दे।
लेकिन बाबू, सारी ग़लती मेरी भी तो नहीं है। तू कौन सा बाज आ गया था अपनी करनी के जुनून से। मैं डाल डाल तो तू पात पात!
सच, तेरी हरकतों ने मुझे जासूस तो बना ही दिया था। मैं ख़ुफ़िया तरीके से तेरा हर प्लान जानने को पागल रहती थी।
उस दिन ऐसा ही हुआ।
तू और अर्नेस्ट घर में किसी काम में लगे हुए थे। मैं सौदा- सुलफ़ लेने बाज़ार जा रही थी। मुझे न जाने क्या सूझी, मैं तुम दोनों से झूठ बोल गई कि मैं अपनी सहेली के घर जा रही हूं और शाम को वापस आऊंगी।
इतना ही नहीं बल्कि थोड़ी ही देर में वापस लौट कर आ गई और घर के पास वाले गैरेज में छिप कर बैठ गई। थोड़ी ही देर बाद मैंने तुझे और अर्नेस्ट को घर से बाहर निकल कर जाते देखा। तुम्हारे जाने के बाद मैं घर के भीतर चली आती पर मैंने छिपे- छिपे ही तुम दोनों की कुछ बातें सुन लीं।
हाय, मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ें। सब कुछ अपने कानों से सुन लेने के बाद भी मैं अनजान बनी रही। अर्नेस्ट तुझे कह रहा था कि वो अपने घर जाकर घंटे भर में खाना खाकर वापस आ जाएगा। पर तू उससे बोला- जल्दी नहीं, आराम से आना दो- तीन घंटे में, मैं "उसे" घर बुला कर ला रहा हूं...
हाय दैय्या। कैसी मां हूं मैं! सब कुछ सुन कर भी मेरे कानों में ये पिघलता सीसा क्यों न उतरा। जैसा शरारती तू, वैसी ही शैतान बच्ची मैं बन गई।
उधर तूने आंख मार कर अर्नेस्ट को जैसा इशारा किया मैं फ़ौरन समझ गई कि तू अपनी गर्लफ्रेंड उसी कलमुंही की बात कर रहा है जो सड़क पर आते- जाते चाहे जब मिल जाती है और फिर बीच सड़क पर तुझसे बात करते हुए ये भी नहीं सोचती कि आते- जाते लोग तुम्हें देख कर क्या सोचेंगे? कभी बात करते- करते तेरे बटन से खेलने लगती तो कभी अपनी शरारती अंगुलियां तेरे बालों में फिराने लगती।
हाय दैय्या, चौदह बरस के हम भी हुए थे मगर ऐसी वहशियाना आंधी तो अपने बदन पर मैंने कभी नहीं आने दी। कैसा घूरती थी तुझे, जैसे अभी उठा कर मुंह में रख लेगी।
मुझे पता चल गया था कि तू अर्नेस्ट को देर से आने को कह रहा है और उस लड़की को लाने की बात कर रहा है... मन में क्या है तेरे।
पर मेरी भी तो मति मारी गई थी। मैं बस इतना सोच पाई कि तेरी जासूसी करूं। पता लगाऊं कि तेरा प्लान क्या है।
जब तू लौट कर आ गया और तेरे साथ पीछे -पीछे वो लड़की भी चली आई तो मैं गैरेज के कौने में कबाड़ के पीछे सांस रोक कर बैठी रही।
मैंने आधा घंटा उन्हीं नट्स को कुतर कर चबाने में बिताया जो मैं बाज़ार से ख़रीद कर लाई थी।
और फिर मैं दबे पांव घर चली आई। मैंने सांस रोक कर चुपचाप अपनी चाबी से दरवाज़ा खोल लिया और घंटी नहीं बजाई।
हे ईश्वर, कैसी मां हूं मैं? कौन से गंगाजल से धोऊं निगोड़ी अपनी ये आंखें!