Rasbi kee chitthee Kinzan ke naam - 11 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 11

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रस्बी की चिट्ठी किंजान के नाम - 11

किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं।
है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं।
शायद इसीलिए जवानी में लोग खतरों से खेलते हैं कि उन्हें कभी बूढ़ा न होना पड़े। बुढ़ापे से मौत भली। ठीक कह रही हूं न मैं?
पर बेटा ऐसा नहीं है। बुढ़ापा बहुत शान और सलीके का दौर है। मैं तुझे बताऊं, इंसान को असली आराम तो इसी समय मिलता है। बुढ़ापा जीवन का ऐसा दौर है कि सब तब तक ज़िन्दगी में जो कुछ भी करना चाहें, कर चुके होते हैं। दायित्व बाक़ी नहीं रहते।
न कहीं जाने की जल्दी और न ही न जा पाने का दुख। घर ही भला लगता है।
जवानी जैसी उखाड़- पछाड़ नहीं रह जाती कि ये करना है, यूं करना है।
तू मुझे वचन दे कि तू बूढ़ा होगा। मरेगा नहीं। क्या फ़ायदा बेटा, जियो न जितनी ज़िन्दगी मिले।
दुष्ट, मैं सब देख रही हूं। हंस रहा है न तू।
जवानी में तो साथी के होंठों को चूमने की इच्छा भी इसलिए होती है कि अपने ख़ुद के होठों में बला की प्यास होती है और उसके बदन में रस होता है। मगर बुढ़ापे में इसलिए चूमने का दिल करता है कि देखो, यही इंसान है जिसने जीवन भर हमारा साथ दिया। हमारे सब काम किए। इसका शुक्रिया!
बेटा, जिस बुखार में तप कर इंसान जवानी में शादी करने के लिए छटपटाता है, घर वालों को छोड़ने तक को तैयार हो जाता है वही बुखार बुढ़ापा आते ही एक मंद- मंद समीर में बदल जाता है। कोई हो तो उससे हंस- बोल कर जी बहला ले, और न हो तो उसकी यादों के सहारे ही समय काट ले।
जिन्हें सब चेहरे की झुर्रियां कहते हैं न, वो कोई ग़म के गीत गाती शहनाइयां नहीं होतीं, वो तो उन शरारतों की लहरें होती हैं जो हमने जीवन भर कीं। हमारे बदन पर पड़ी झाइयां उन अंगुलियों के पोरों के अक्स होते हैं जिन्होंने हमें छुआ या हमसे छेड़छाड़ की। हमें गुदगुदाया। हमें चूमा।
ओह! मैं भी क्या बेकार की कहानी लेकर बैठ गई। तू भी तो पक्का ढीठ है। मानेगा थोड़े ही कुछ। तेरा फितूर तो बदस्तूर तेरे सिर पर चढ़ कर नाच रहा है। वो आ गया तेरा दोस्त अर्नेस्ट। न जाने क्या- क्या कबाड़ इकट्ठा कर रहे हो दोनों। कमरे को भूसे से भर रखा है। न जाने किस ऊतपंच में लगे हो। मरने की कोई ऐसी तैयारी भी करता है भला?
और ये तेरा दोस्त भी क्या साथ में मरेगा तेरे? मैं अभी दोनों का सिर फोड़ दूंगी। नालायक कहीं के। शरम नहीं आती अपनी मां की बात की अनदेखी कर रहा है। तूने मुझे पैदा किया है या मैंने तुझे जन्म दिया है? क्या मेरा तुझ पर इतना सा भी हक़ नहीं है कि तुझे ऊटपटांग काम करने से रोक सकूं।
मान जा बेटा! आ, हम सब मिल कर लूडो खेलेंगे। चल मैं तुम दोनों के लिए सैंडविच और पुडिंग बनाती हूं। वो ख़ास, तेरी पसंद वाला। जो तुझे बहुत अच्छा लगता था, तू मेरे हिस्से में से भी खा जाता था। छोड़ दे बेटा ये सब। क्या फ़ायदा?
नहीं मानता???
ले, मैं जा रही हूं घर छोड़ कर। फ़िर रोना बैठ कर।